बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी में क्या हो रहा है? यह सवाल दिल्ली में इसलिए चर्चा में है क्योंकि दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता को इस बार नीतीश कुमार ने सहारा दिया हुआ है। एनडीए की सरकार बनाने में नीतीश के 12 सांसदों का अहम योगदान है। इसलिए उनकी पार्टी में कुछ भी होता है तो उसको भाजपा की राजनीति के साथ जोड़ कर देखा जाने लगा है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी का इस्तीफा इस लिहाज से बहुत अहम है। वे नीतीश के प्रति हमेशा निष्ठावान रहे हैं लेकिन पहले भी वे सभी पदों से हटे थे, उनको दूसरी बार राज्यसभा नहीं मिल पाई और अब फिर राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया है। सवाल है कि वे अपनी पार्टी की अंदरूनी राजनीति में उलझ गए हैं या उनके हालिया बयानों की वजह से भाजपा की ओर से दबाव डाला गया?
यह सही है कि उन्होंने इजराइल को हथियारों की आपूर्ति रोकने की बात कही या आरक्षण और जाति गणना पर भाजपा से अलग राय जाहिर की लेकिन यह तो जनता दल यू की लाइन है। अगर मुस्लिम मामले पर उनके नरम रुख से भाजपा या जदयू को दिक्कत होती तो पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार पर भी कार्रवाई होती, जिन्होंने असम में नमाज की छुट्टी खत्म किए जाने पर तीखी टिप्पणी की और असम सरकार को कठघरे में खड़ा किया। तभी ऐसा लग रहा है कि भाजपा के दबाव के साथ साथ पार्टी की अंदरूनी राजनीति का मामला भी है। यह अनायास नहीं है कि उधर बिहार में राज्य सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने अतिपिछड़ों को खुश करने के लिए भूमिहारों के खिलाफ बयान दिया और उस पर बहस चल रही थी उसी बीच केसी त्यागी का इस्तीफा हो गया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि ललन सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाने के फैसले को बैलेंस करने के लिए नीतीश की पार्टी रणनीति के तहत यह सब करा रही है? पिछले नीतीश की कुर्मी जाति के पूर्व आईएएस मनीष वर्मा को पार्टी का संगठन महासचिव बनाया गया और उसी जाति से आने वाले राजीव रंजन को केसी त्यागी की जगह राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है।
 
								 
								
								


 
												 
												 
												 
												 
												 
																	 
																	 
																	 
																	 
																	 
																	 
																	