बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देश के उन गिने चुने नेताओं में से हैं, जिन्होंने अपने परिवार को किसी सदस्य को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया। उनका बेटा इंजीनियरिंग करने के बाद बेरोजगार है लेकिन पार्टी के तमाम नेताओं के आग्रह के बावजूद नीतीश ने बेटे को राजनीति में नहीं उतारा। तभी उनकी पार्टी का कोई सर्वमान्य नंबर दो नेता नहीं है और किसी को उत्तराधिकारी नहीं माना जाता है। नीतीश ने इस दिशा में कई प्रयास किए लेकिन कामयाबी नहीं मिली। पहले उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी रहे आरसीपी सिंह को उनका उत्तराधिकारी माना जा रहा था। वे नीतीश की जाति के यानी कुर्मी थे और नालंदा के ही रहने वाले थे। लेकिन बाद में भाजपा से नजदीकी और मनमानी की वजह से नीतीश ने उनको दूर कर दिया। अब वे राजनीतिक बियाबान में हैं। उनके बाद नीतीश ने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर दांव लगाया। उनको उपाध्यक्ष पद देकर नंबर दो बनाया। लेकिन जल्दी ही उनसे भी नीतीश का मोहभंग हो गया।
अब एक दूसरे पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा को उनका उत्तराधिकारी माना जा रहा है। ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा 2012 में डेपुटेशन पर बिहार आए थे और 2018 में उन्होंने वीआरएस ले लिया था। तब नीतीश ने उनको आपदा प्रबंधन प्राधिकार का सदस्य बनाया था और 2022 में उनको मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया गया। अब वे आधिकारिक रूप से जनता दल यू में शामिल हो गए हैं। गाजे बाजे के साथ उनको शामिल किया गया है। उनको वही पद दिया जा रहा है, जो पर कभी आरसीपी सिंह थे। वे संगठन महासचिव होंगे। पहले भी सरकार और संगठन में तालमेल का काम वे देखते रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में पहली बार उन्होंने सभी जिलों का दौरा किया और सक्रिय राजनीति की। वे भी नालंदा के हैं और कुर्मी हैं। नीतीश कुमार उनको अपना उत्तराधिकारी बना सकते हैं। हालांकि ओडिशा में वीके पांडियन और उत्तर प्रदेश में आकाश आनंद के मामले से सबक लेकर नीतीश धीमी रफ्तार से आगे बढ़ेंगे। माना जा रहा है कि इस बार अगर नीतीश विधानसभा चुनाव जीत जाते हैं तो उसके बाद किसी समय मनीष वर्मा को गद्दी सौंप सकते हैं। लेकिन उससे पहले पार्टी और सहयोगी भाजपा के साथ बहुत खींचतान होनी है।