एक पुरानी कहावत है कि ‘घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने’। वही बिहार में दिख रहा है। बिहार सरकार का कुल बजट 2.62 लाख करोड़ रुपए का है और राज्य सरकार ने अगले पांच साल में ढाई लाख करोड़ रुपए नकद बांटने का फैसला किया है। इसका मतलब है कि हर साल 50 हजार करोड़ रुपए नकद बांटे जाएंगे। राज्य सरकार ने सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े जारी करके बताया था कि राज्य में 94 लाख परिवार ऐसे हैं, जिनकी मासिक आय छह हजार रुपए से कम है। अगर पांच लोगों का परिवार का है तो प्रति व्यक्ति मासिक आय 12 सौ रुपए है। मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि ऐसे परिवारों को दो दो लाख रुपए दिए जाएंगे। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि भूमिहीनों को एक एक लाख रुपए दिए जाएंगे ताकि वे अपने लिए घर बनाने की जमीन खरीद सकें। नीतीश कुमार की कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है।
अब सवाल है कि पैसा कहां से आएगा? क्या बिहार सरकार अपने 2.62 लाख करोड़ रुपए के बजट से हर साल 50 हजार करोड़ रुपया लोगों को बांटने के लिए निकाल सकती है? ध्यान रहे बिहार सरकार का वित्त वर्ष 2023-24 का बजट 2.62 लाख करोड़ रुपए का है, जो पिछले साल से 24 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। इस आकार के बजट में से हर साल 50 हजार करोड़ रुपए निकालना मुश्किल है। तभी राज्य सरकार चाहती है कि केंद्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे ताकि उसे अतिरिक्त पैसे मिलें और वह गरीब लोगों को नकद पैसे बांट सके। सोचें, इस प्रत्याशा में कि केंद्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगी, वहां से पैसे मिलेंगे तो लोगों में बांटेंगे, राज्य सरकार ने ढाई लाख करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दे दी! बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता इसे मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। उनका कहना है कि अगर केंद्र सरकार विशेष राज्य का दर्जा देकर अतिरिक्त पैसा नहीं देती है तो भाजपा को जिम्मेदार ठहरा कर उसको गरीब और पिछड़ा विरोधी बताया जाएगा। सवाल है कि क्या लोग इस बात को नहीं समझेंगे कि हर बार जब नीतीश केंद्र में सत्तारूढ़ दल के विरोधी खेमे में रहते हैं तभी विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते हैं और जब केंद्र में सत्तारूढ़ दल के साथ होते हैं तो चुप हो जाते हैं?