बिहार में अंतिम तौर पर राजनीतिक समीकरण क्या होगा यह कोई नहीं बता सकता है क्योंकि नीतीश कुमार ऐसी जगह खड़े दिख रहे हैं, जहां से वे कोई भी पक्ष चुन सकते हैं। हो सकता है कि वे वापस एनडीए में लौटें और भाजपा के साथ मिल कर सरकार चलाएं। यह भी संभव है कि वे राजद के साथ ही बने रहें और विपक्ष गठबंधन ‘इंडिया’ में रह कर चुनाव लड़ें। लेकिन उससे पहले जो वे पोजिशनिंग कर रहे हैं उससे एक साथ वे राजद, कांग्रेस को मैसेज दे रहे हैं तो उसी बहाने भाजपा को भी संदेश दे रहे हैं। उन्होंने राजद के तीन मंत्रियों के विभागों में परिवर्तन किया है तो उसका जितना स्पष्ट संदेश राजद को गया है वैसा ही संदेश भाजपा को भी गया है।
नीतीश कुमार ने यह बताया है कि वे जिस भी गठबंधन में रहेंगे उसमें उनका विरोध करने वाले नेता की जगह नहीं होगी। यह स्थिति पहले से रही है लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश की पार्टी को सिर्फ 43 सीटें मिलीं तो उनकी स्थिति कमजोर हुई और उसके बाद पहले भाजपा और बाद में राजद के नेता मनमानी करने लगे। ऐसे ही मनमानी करने वाले एक राजद नेता चंद्रशेखर थे, जिनको लालू प्रसाद ने शिक्षा मंत्री बनवाया था। चंद्रशेखर लगातार हिंदू धर्म को अटैक कर रहे थे और रामचरितमानस को लेकर अनाप-शनाप बयान दे रहे थे। इतना ही नहीं नीतीश कुमार द्वारा नियुक्त शिक्षा विभाग के अपर सचिव केके पाठक के साथ उनके लगातार टकराव चल रहा था। इस टकराव की वजह से केके पाठक छुट्टी पर चले गए थे।
इससे नाराज होकर नीतीश ने चंद्रशेखर को शिक्षा विभाग से हटा दिया। उनको गन्ना उत्पादन का मंत्री बनाया गया है। उनकी जगह नीतीश ने पूर्व सांसद और पुराने नेता आलोक मेहता को शिक्षा मंत्री बनाया है। नीतीश ने इस एक तीर से दो शिकार किए हैं। एक तो शिक्षा विभाग में बेहतर काम कर रहे केके पाठक को संतुष्ट किया है और राजद नेताओं को चुप करा दिया है तो दूसरी ओर भाजपा को भी यह मैसेज दिया है कि अगर तालमेल करना है यानी एनडीए में नीतीश को लाना है कि उनके विरोधियों को किनारे करना होगा।
गौरतलब है कि भाजपा के अंदर या उसकी सहयोगी पार्टियों में कई ऐसे हैं, जिनको नीतीश बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। ऐसे तमाम नेताओं को किनारे करना होगा तभी नीतीश के साथ भाजपा की बात बन सकती है। ऐसे नेताओं में सबसे पहला नाम विधानसभा में नेता विपक्ष विजय कुमार सिन्हा का है, जिनके विधानसभा का अध्यक्ष रहते नीतीश कुमार से बड़ा विवाद हुआ था। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को भी नीतीश खतरा मानते हैं क्योंकि वे कोईरी समुदाय के मजबूत नेता हैं। भाजपा के सहयोगी चिराग पासवान से नीतीश कुमार को सबसे ज्यादा समस्या है। चिराग पासवान की वजह से ही 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी को सिर्फ 43 सीटें मिली थीं। इसलिए नीतीश चाहेंगे कि अगर वे एलायंस में लौटते हैं तो चिराग को हटाया जाए या उनको नाममात्र की सीटें दी जाएं।