बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने कहा है कि 30 जनवरी को बिहार के पूर्णिया में राहुल गांधी की रैल में नीतीश कुमार शामिल होंगे। गौरतलब है कि राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 29 जनवरी को बिहार में प्रवेश कर रही है और 30 जनवरी को वे सीमांचल के पूर्णिया में रैली करेंगे। पूर्णिया की लोकसभा सीट से जनता दल यू के सांसद हैं और बगल की किशनगंज इकलौती सीट है, जहां से 2019 में कांग्रेस का सांसद जीता था। तब नीतीश कुमार की पार्टी भाजपा के साथ लड़ी थी और उस गठबंधन ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं। अब नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन से बाहर हैं। कुछ दिन पहले तक कहा जा रहा था कि वे महागठबंधन में खुश नहीं हैं और सबसे बड़ी पार्टी राजद के दबाव की वजह से एक बार फिर भाजपा के साथ जाने क सोच रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम से ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार की बात भाजपा के साथ नहीं बन रही है।
दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में भी नीतीश कुमार को कुछ मिला नहीं है। उनको उम्मीद थी कि उन्होंने विपक्ष की सभी पार्टियों को एकजुट किया है तो उनको गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा। उनकी पार्टी तो नीतीश को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने की मांग कर रही थी। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर नीतीश का नाम काट दिया। हालांकि बाद में नीतीश को संयोजक पद ऑफर किया गया लेकिन तब तक वे नाराज हो गए थे। उन्होंने पार्टी के भाजपा विरोधी चेहरे यानी ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाया और उनके तमाम करीबियों को कमेटी से भी निकाल दिया है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि राजद ने अपना दबाव वापस ले लिया है और नीतीश कुमार को खुली छूट दे दी है। ललन सिंह के हटने के बाद लालू और तेजस्वी के साथ नीतीश की सीधी बातचीत हुई है और नीतीश ने राजद कोटे के तीन मंत्रियों के विभागों में बदलाव किया। कहा जा रहा है कि राजद ने तेजस्वी को अभी तुरंत मुख्यमंत्री बनाने की जिद छोड़ दी है। हालांकि नीतीश को पता है कि लोकसभा चुनाव के बाद यह दबाव फिर शुरू होगा। लेकिन मुश्किल यह है कि वे अगर भाजपा के साथ जाते हैं तो वह भी लोकसभा चुनाव के बाद उनको सीएम बनाए रखेगी इसमें संदेह है। तभी ऐसा लग रहा है कि नीतीश फैसला नहीं कर पा रहे हैं और अब भी दुविधा में हैं। 30 जनवरी की राहुल की रैली और चार फरवरी की बिहार में प्रस्तावित मोदी की रैली से पहले इस बारे में फैसला होगा।