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नीतीश पर कयास लगाना बेमानी

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अचानक दिल्ली आए तो दिल्ली से पटना तक अटकलें लगाई जाने लगीं कि उनकी दिल्ली यात्रा का क्या मकसद है? कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी उस समय दिल्ली में थे तो उनसे मिलने और विपक्षी गठबंधन के कुछ अन्य नेताओं से मिलने की चर्चा हुई। भाजपा से सीधे सम्पर्क रखने वाले उनके मंत्री भी दिल्ली में थे तो यह भी कयास लगाया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसी करीबी व्यक्ति से उनकी मुलाकात होने वाली है। पटना में आधिकारिक रूप से बताया गया कि वे आंख के रूटिन चेकअप के लिए दिल्ली गए हैं। आंख के चेकअप के लिए विशेष विमान से दिल्ली यात्रा!

नीतीश पिछले हफ्ते जिस दिन दिल्ली आए उस दिन पटना में भाजपा के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि राजद के नेता नीतीश की पार्टी जदयू को तोड़ने में लगे हैं और जल्दी ही जदयू टूट जाएगी। यह बात उन्होंने नीतीश के प्रति सहानुभूति जाहिर करने के लिए कही। भाजपा के कई नेता ऐसा मान रहे हैं कि राजद को लेकर डर पैदा करने से नीतीश कुमार उसका साथ छोड़ सकते हैं। इस काम में जदयू के भी कई नेता लगे हुए हैं। लेकिन जितनी बार इस तरह का डर पैदा किया जाता है उतनी बार लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव किसी न किसी तरह से नीतीश को भरोसा दिलाते हैं कि उनकी पार्टी ऐसा कुछ नहीं कर रही है।

पार्टी टूटने का भय दिखाने के लिए भाजपा की ओर से नीतीश पर दबाव बनाने का एक तरीका यह है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद के पूरे परिवार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई तेज की जाए। पिछले दिनों ईडी ने दिल्ली में अमित कात्याल को गिरफ्तार किया। उनको लालू परिवार का करीबी बताया जाता है और कहा जाता है कि फ्रेंड्स कॉलोनी के जिस बंगले में तेजस्वी रहते हैं वह कात्याल ने दिया है। कात्याल पर पैसे लेकर रेलवे में नौकरी देने के मामले में लालू प्रसाद के साथ मिल कर काम करने का आरोप है। इसके अलावा जदयू के बड़े नेताओं के करीबी कारोबारियों के ऊपर भी आयकर की कार्रवाई हुई है। हालांकि अभी ईडी या सीबीआई की कार्रवाई नहीं हुई है लेकिन आयकर की कार्रवाई से भी नीतीश के ऊपर अंदर से दबाव बढ़ रहा है। इसके बावजूद उनके बारे में किसी तरह का कयास लगाना बेमानी है।

असल में नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव तक राष्ट्रीय जनता दल के ही साथ रहने के विचार में हैं। हालांकि उनका कोई भी विचार अंतिम नहीं होता है और उनकी पार्टी के एक जानकार नेता का कहना है कि तीन दिसंबर को पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद वे कोई अंतिम फैसला करेंगे। अगर भाजपा कमजोर होती है और उसके बाद उनके सामने कोई अच्छा प्रस्ताव रखती है तो वे उससे बातचीत कर सकते हैं और अगर कांग्रेस कमजोर होती है तो वे विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की कमान अपने हाथ में देने का दबाव बढ़ाएंगे। जो हो इतना तय है कि तीन दिसंबर के बाद वे अपने लिए कोई अच्छी डील हासिल करने का प्रयास करेंगे।

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