बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐन मौके पर विदेश चले गए। लोकसभा चुनाव की किसी भी समय घोषणा हो सकती है लेकिन 16 सांसदों वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विदेश गए हैं! उनकी हेल्थ इमरजेंसी के बारे में कुछ बताया नहीं जा रहा है लेकिन इसके अलावा कोई और कारण दिख भी नहीं रहा है। ऐसा भी नहीं है कि बिहार में सीटों का बंटवारा फाइनल हो गया है और सबकी उम्मीदवारी तय हो गई है।
अभी सब कुछ उलझा हुआ है। भाजपा और जदयू में भी सीटों का बंटवारा फाइनल नहीं हुआ है और न सहयोगी पार्टियों के साथ तालमेल की रूपरेखा स्पष्ट हुई है। गौरतलब है कि बार में एनडीए के सहयोगियों की लंबी सूची है। लोक जनशक्ति पार्टी के दो खेमे हैं, जिनके नेता चिराग पासवान है और पशुपति पारस हैं। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की पार्टी है। इसके अलावा मुकेश सहनी की पार्टी को भी एनडीए में लाने का प्रयास हो रहा है।
सोचें, भाजपा और जदयू के अलावा पांच पार्टियों के बीच सीट का बंटवारा होना है। सीटों की संख्या के अलावा सीटों की अदला बदली भी होनी है क्योंकि पिछले चुनाव के बाद लोजपा टूट कर दो हिस्सों में बंटी है और दो नए सहयोगी आए हैं। तीसरे नए सहयोगी को लाने का प्रयास हो रहा है। बिहार एनडीए में सीट बंटवारा इस वजह से उलझा क्योंकि नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ दिया था। जब वे राजद और कांग्रेस के साथ थे तब भाजपा ने नए सहयोगी जोड़े और सबको ज्यादा सीटों देने का भरोसा भी दिया।
अब सहयोगी परेशान हैं। भाजपा अपनी सहयोगी पार्टियों से कह रही है कि अगर उनको ज्यादा सीट चाहिए तो नीतीश कुमार से बात करें। भाजपा और जदयू दोनों एक ही बात कह रहे हैं कि वे लोकसभा की 40 सीटों को तो नहीं बढ़ा सकते हैं। भाजपा का कहना है कि उसने नीतीश को साथ लाकर उनको सीएम बनाने का दांव तो सिर्फ इसलिए चला कि उसकी अपनी 17 सीटें सुरक्षित हों। इसलिए वह इससे कम सीट पर कैसे लड़ सकती है? सो, अब सब कुछ अटक गया है और अगले हफ्ते नीतीश के स्कॉटलैंड से लौटने के बाद ही तालमेल की बात आगे बढ़ेगी।