बिहार में इस बार विधायक बने सुजीत सिंह मंत्री नहीं बन पाए हैं। इससे अनेक लोगों में निराशा हुई है। एक बड़ा समूह चाहता था कि भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे सुजीत सिंह को कोई अहम मंत्रालय मिले। वे भले पहली बार के विधायक हैं लेकिन प्रशासनिक अनुभव बहुत बड़ा है। बहरहाल, वे मंत्री नहीं बने लेकिन उनके विधायक बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से लेकर विधायक बनने तक का काम गोली की रफ्तार से हुआ। वैसे उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह पहले से जिस सीट से विधायक थीं वे वहीं से विधायक बने हैं।
सुजीत सिंह और उनके बैच के अधिकारियों का 13 सितंबर को प्रमोशन हुआ था। इसके 10 दिन के बाद उनकी पोस्टिंग हुई। लेकिन दो दिन के बाद ही उन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया। आमतौर पर वीआरएस का आवेदन स्वीकार होने में तीन महीने का समय लगता है। लेकिन उनका आवेदन 15 दिन के भीतर मंजूर हो गया। इसके बाद 13 अक्टूबर को वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। उस समय तक चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। भाजपा में शामिल होने के 24 घंटे के अंदर उनको टिकट मिली। छह नवंबर को मधुबनी की गौराबौड़ाम सीट पर चुनाव हुआ और 14 नवंबर को वे विधायक बन गए। यानी वीआरएस आवेदन करने के बाद डेढ़ महीने में वे विधायक बन गए। उनके चुनाव में एक दिलचस्प घटनाक्रम यह भी रहा कि चार नवंबर को प्रचार बंद होने से ठीक पहले महागठबंधन की पार्टी वीआईपी के उम्मीदवार संतोष सहनी ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। इसका सीधा लाभ सुजीत सिंह को हुआ। ध्यान रहे सुजीत सिंह की पत्नी वीआईपी से ही विधायक थीं और भाजपा में चली गई थीं।


