कांग्रेस पार्टी में नियुक्तियों का दो सिस्टम है। एक है प्रादेशिक क्षत्रपों की सहमति से नियुक्ति का और दूसरा है राहुल गांधी की कोर टीम की मनमाने तरीके से नियुक्ति का। जहां भी प्रादेशिक क्षत्रपों की सहमति से नियुक्ति हुई है वहां सब कुछ ठीक चल रहा है या ठीक चलता दिख रहा है। चुनाव तो पार्टी वहां भी नहीं जीत रही है लेकिन सार्वजनिक विवाद नहीं हो रहे हैं। जिन राज्यों में कांग्रेस का आधार खत्म हो गया है वहां भी किसी को बना देन पर कोई विवाद नहीं होता है। जैसे उत्तर प्रदेश में अजय राय अध्यक्ष हैं तो उनका होना न होना कोई मायने नहीं रखता है। सबको पता है कि कोई फैसला करना होगा तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सीधे अखिलेश यादव से बात करेंगे या प्रभारी अविनाश पांडे के जरिए बात होगी। लेकिन जहां पार्टी का कुछ आधार है या पार्टी के पास अच्छे नेता हैं वहां मनमाने तरीके से हुई नियुक्तियों का विरोध हो रहा है।
जहां सहमति से नियुक्ति हुई है, जैसे हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाने के बाद नरेंद्र यादव को अध्यक्ष बनाया गया तो सब ठीक है। ऐसे ही हिमाचल प्रदेश में विनय कुमार को बनाया गया है तो प्रतिभा सिंह और सुखविंदर सिंह सुक्खु दोनों खेमे संतुष्ट हैं। लेकिन महाराष्ट्र में हर्षवर्धन सपकाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा है। वहां कांग्रेस के पास दर्जनों बड़े नेता हैं, जिनके पास अपना आधार है। उनमें से किसी को बनाने पर खींचतान चलती, गुटबाजी होती लेकिन पार्टी के पास एक आधार होता। पर सपकाल को बनाने के बाद कांग्रेस अपना आधार तेजी से खो रही है। ऐसे ही केरल में सन्नी जोसेफ को अध्यक्ष बनाने का फैसला भी कांग्रेस के ज्यादातर नेता हजम नहीं कर पाए। वहां भी कांग्रेस के पास मजबूत नेता हैं। महाराष्ट्र और केरल दोनों का फैसला राहुल गांधी की इन दिनों की कोर टीम, जिसे ‘जय जगत’ समूह कहा जा रहा है उसकी पसंद से हुआ है। हर्षवर्धन सपकाल को इस समूह में शामिल माना जाता है।
इससे पहले जम्मू कश्मीर में तारिक हमीद कारा को अध्यक्ष बनाने के फैसले का भी भारी विरोध हुआ था। लेकिन कांग्रेस नेताओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हारी तो गुलाम अहमद मीर को विधायक दल का नेता बना दिया गया। झारखंड के प्रभारी रहते उन पर कई गड़बड़ियों के आरोप लगे थे। लेकिन पार्टी जीत गई तो उनको पश्चिम बंगाल का प्रभारी बना दिया गया। सबसे ज्यादा विरोध बिहार की नियुक्तियों का हो रहा है। चुनाव से पहले ही विरोध शुरू हो गया था लेकिन अब तो खुल कर पार्टी के नेता लड़ने लगे हैं। पार्टी के कई नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और राहुल गांधी से मिलने की मांग कर रहे हैं। बिहार कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी नाराजगी जताई और टिकट बेचे जाने के आरोप लगाए। पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक डॉक्टर शकील अहमद खान ने पार्टी छोड़ दी। उससे पहले कांग्रेस का दलित चेहरा रहे अशोक राम जनता दल यू में चले गए। तारिक अनवर ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई। वहां ‘जय जगत’ समूह के कृष्णा अल्लावरू को प्रभारी और राजेश राम को अध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस ने बिहार में अब तक का दूसरा सबसे खराब और गठबंधन में रह कर सबसे खराब प्रदर्शन किया है।


