तेजस्वी यादव को किस बात की जल्दी थी? यह लाख टके का सवाल है। उन्होंने चुनाव नतीजों के तीन दिन बाद ही समीक्षा बैठक बुलाई और उसके साथ ही विधायक दल की बैठक करा कर नेता भी चुन लिए गए। तत्काल पार्टी की ओर से कह दिया गया कि चूंकि राजद के 25 विधायक हैं इसलिए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद पर पार्टी का दावा बनता है। राजद की ओर से विधायक दल की बैठक में तेजस्वी को नेता चुने जाने के बाद कहा गया कि विधानसभा गठित होने की स्पीकर का चुनाव हो जाने के बाद पार्टी तेजस्वी के लिए नेता प्रतिपक्ष पद की मांग करेगी। सोचें, अभी विधानसभा गठित नहीं हुई, सत्र आहूत नहीं किया गया और न स्पीकर का कोई अता पता है लेकिन राजद ने तेजस्वी को नेता चुन कर नेता प्रतिपक्ष पद पर दावा भी कर दिया!
तभी सवाल है कि क्या तेजस्वी यादव को कोई खतरा दिख रहा था? क्या परिवार के अंदर चल रही कलह के कारण उन्होंने यह फैसला कराया या पार्टी में किसी तरह की टूट या किसी विधायक के साथ छोड़ने का खतरा दिख रहा था? हालांकि अभी पार्टी के अंदर उनको कोई चुनौती नहीं है। फिर भी कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कई तरह की साजिश थ्योरी की चर्चा है। पहले तो यहां तक खबर आ रही थी कि तेजस्वी के काफी विधायक जनता दल यू में जा सकते हैं। इसके बाद यह भी कहा गया कि तेजस्वी के सारे विधायक इस्तीफा दे सकते हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। तेजस्वी ने समीक्षा के लिए बैठक बुला कर अपने को नेता चुनवा लिया। दोनों बड़ी पार्टियों भाजपा और जदयू से पहले। कहा जा रहा है कि इसकी सलाह भी संजय यादव ने दी।


