हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी जाट वोटों को लेकर अपनी गलती सुधारने का प्रयास कर रही है। असल में भाजपा ने हरियाणा में अपने किस्म का ध्रुवीकरण कराया था। वह ध्रुवीकरण गैर जाट वोटों का था। इसके लिए ऐसा नहीं है कि सिर्फ जाटों की अनदेखी की गई, बल्कि ऐसी राजनीति की गई, जिससे जाट नाराज हों। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को गठबंधन से बाहर करना इसी राजनीति का हिस्सा था। साढ़े नौ साल बाद मनोहर लाल खट्टर को हटा कर नायब सिंह सैनी को इसी राजनीति के तहत मुख्यमंत्री बनाया गया। बताया जाता है कि सैनी पहले जाटों को लेकर कई तीखे बयान देते रहे हैं। भाजपा को उम्मीद थी कि सैनी को लाकर और चौटाला से दूरी दिखा कर वह गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण करा देगी और चुनाव जीत जाएगी। लेकिन यह दांव उलटा पड़ा। उसे हरियाणा के साथ साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी बड़ा नुकसान हुआ। उसके बड़े जाट नेता चुनाव हारे।
सो, अब कहा जा रहा है कि भाजपा दूरी को कम करना चाहती है। वह गैर जाट राजनीति तो करना चाहती है लेकिन जाटों से दुश्मनी नहीं दिखाना चाहती है। तभी कांग्रेस की किरण चौधरी और श्रुति चौधरी को पार्टी में शामिल करने का दांव चला गया है। इसकी बिसात तभी बिछ गई थी, जब भिवानी महेंद्रगढ़ सीट पर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौधरी बंशीलाल के साथ अपनी निकटता के किस्से सुनाए थे। सोचें, इमरजेंसी के तीन खलनायकों में से एक बंशीलाल भी हैं लेकिन जरुरत हुई तो प्रधानमंत्री मोदी उनकी तारीफ भी करने लगे। बहरहाल, दिवंगत बंशीलाल की बहू और पोती के जरिए भाजपा जाटों को संदेश देने का प्रयास कर रही है।
हरियाणा में भाजपा के अपने जाट नेता कैप्टेन अभिमन्यू थे, जिनको पहले ही किनारे कर दिया गया था और कांग्रेस से लाए गए बीरेंद्र सिंह व उनके बेटे बृजेंद्र सिंह दोनों वापस कांग्रेस में लौट गए हैं। तभी भाजपा को एक मजबूत जाट चेहरे की जरुरत थी। किरण चौधरी और श्रुति चौधरी ने कांग्रेस में रहते ही भाजपा के लिए अपनी उपयोगिता साबित कर दी थी। बताया जा रहा है कि भिवानी महेंद्रगढ़ में भाजपा की जीत के पीछे उनका सहयोग भी काम आया थी।