अगर सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं पर यकीन किया जाए तो कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की विदाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण हुई है। सोशल मीडिया में नारा लग रहा है कि, ‘जो मोदी से टकराएगा चूर चूर हो जाएगा’। कूटनीतिक जानकार यह जरूर मान रहे हैं कि भारत के प्रति उनके नकारात्मक रुख और खालिस्तानी अलगाववादियों को समर्थन देने की वजह से पार्टी में उनकी पकड़ कमजोर हुई है। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि खालिस्तान समर्थन जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस लिया तो वे कमजोर हुए। जगमीत सिंह की पार्टी के 25 सांसद हैं और कुछ समय पहले उन्होंने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।
इससे अपनी पार्टी के अंदर भी ट्रूडो की स्थिति कमजोर हुई। ऊपर से अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद ट्रूडो की विदाई साफ दिखने लगी थी। सबको पता है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में ट्रूडो के साथ उनके संबंध कितने खराब थे। चुनाव जीतने के तुरंत बाद ट्रंप के करीबी और दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी इलॉन मस्क ने कह दिया था कि ट्रूडो की विदाई होगी। सो, जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफा देने के पीछे कई फैक्टर हैं। लेकिन भारत में इस बात का प्रचार है कि मोदी की वजह से उनकी विदाई हुई है। असल में मोदी विरोधी कुछ समय पहले तक अभियान चलाते थे, जिस भी वैश्विक नेता से मोदी गले मिले वह चुनाव हार गया। नवाज शरीफ से शुरू करके ट्रंप तक के नाम गिनाए जाते थे। लेकिन अब पाकिस्तान में शरीफ की पार्टी भी जैसे तैसे जीत गई और ट्रंप भी अमेरकिका में जीत गए। नेतन्याहू तो हारने के बाद भी जैसे तैसे जोड़तोड़ करके सत्ता में बने ही रहते हैं।
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