लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के नेता चिराग पासवान बिना मतलब के परेशान हैं। असल में दिल्ली की अंग्रेजी मीडिया ने, मुंबई की कॉरपोरेट, फिल्मी जमात ने और मां की साइड की पंजाबी लॉबी ने उनमें ऐसी हवा भर दी है कि वे बिना अपनी जमीनी ताकत का अंदाजा लगाए अपने को बिहार के मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानने लगे हैं। वे एक साल से ज्यादा समय से केंद्रीय मंत्री हैं लेकिन बिहार में उनके मंत्रालय ने एक रुपए का काम नहीं कराया है। लेकिन वे बिहार में घूम कर बिहार बदलने, विकास करने और पलायन रोकने के दावे कर रहे हैं। प्रशांत किशोर अपने कारणों से उनमें हवा भर रहे हैं। उनको लग रहा है कि अगर किसी तरह से चिराग एनडीए से अलग हो जाएं तो दो चार प्रतिशत वोट काट लेंगे, जिससे जन सुराज को फायदा हो सकता है। हालांकि उसका ज्यादा राजद और कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन को होगा।
असल में चिराग पासवान की सारी राजनीति दबाव डाल कर ज्यादा सीटें हासिल करने की है, जो एनडीए में संभव नहीं है। एनडीए में 243 सीटों का बंटवारा इस अंदाज में होगा कि चिराग को 25 के आसपास ही सीटें मिलेंगी। उनके बहनोई और जमुई के सांसद अरुण भारती ने कहा है कि लोजपा पिछली बार 135 सीटों पर लड़ी थी और उससे पहले एनडीए में 43 सीटों पर लड़ी थी तो उसे इसके बीच की संख्या में सीटें चाहिएं। इसके बाद उन्होंने कहा कि लोजपा इकलौती पार्टी है, जिसने अकेले लड़ने का साहस दिखाया। लेकिन वे भूल गए कि वह साहस भाजपा के दम पर दिखाया गया था और उनका सिर्फ एक विधायक जीता था वह भी बाद में जदयू में चला गया। अगर चिराग 40 सीट की पोजिशनिंग कर रहे हैं तो वह संभव नहीं है। तभी सवाल है कि क्या वे एनडीए से अलग हो सकते हैं? अभी वे कैबिनेट मंत्री हैं। अगर एनडीए से अलग होंगे तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना होगा। उसके बाद उनकी पार्टी पर खतरा मंडराएगा। अगर वे भाजपा की मर्जी के बगैर एनडीए से अलग होते हैं तो पार्टी के तीन सांसद टूट सकते हैं। इसलिए ऐसा लग रहा है कि तमाम पोजिशनिंग के बाद वे जितनी सीटें मिलेंगी, उतनी लेकर लड़ेंगे। उनका ज्यादा दबाव सीटों की संख्या की बजाय अच्छी सीटें हासिल करने के लिए है।


