यह बड़ा सवाल है कि भाजपा के जो सांसद अब विधायक बन गए हैं वे क्या करेंगे? क्या सिर्फ विधायक रह कर अपने क्षेत्र की जनता की सेवा करेंगे या सरकार में जगह मिलेगी या संगठन की कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी? पुराने ट्रेंड को देखते हुए पहले लग रहा था कि विधानसभा चुनाव जीतने वालों सांसदों को पार्टी संसद में ही रखेगी। यानी उनको विधायक सीट छोड़नी होगी। ऐसा ही पश्चिम बंगाल में हुआ था या इस साल त्रिपुरा में हुआ। लेकिन इस बार भाजपा ने रणनीति बदल दी क्योंकि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में उसे बड़ी संख्या में नए चेहरे उतारने हैं। इसलिए भाजपा ने सांसदों से इस्तीफे करा दिए अब वे विधायक बने रहेंगे। आमतौर पर लोग पार्षद से विधायक और फिर विधायक से सांसद बनते हैं। लेकिन भाजपा ने सांसदों को विधायक बना कर छोड़ दिया।
तभी चुनाव जीते सांसद उम्मीद कर रहे हैं उन्हें सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है या संगठन का काम मिल सकता है। चुनाव जीते हाई प्रोफाइल सांसदों को ज्यादा चिंता है। राजस्थान में बाबा वालकनाथ, पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ और दीया कुमारी तीनों को लग रहा है कि कुछ बड़ी जिम्मेदारी मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री, मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बनने तक की उम्मीद लगाए हुए हैं ये तीनों नेता। इसी तरह मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल जैसे दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री पद छोड़ कर क्या सिर्फ विधायक रहेंगे? उनको भी इंतजार है कि पार्टी उनके लिए क्या भूमिका सोचती है। मध्य प्रदेश के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह भी अब सिर्फ विधायक हैं। छत्तीसगढ़ में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव भी सरकार में कुछ जिम्मेदारी मिलने की संभावना देख रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और पूर्व सांसदों को राज्य सरकार में मंत्री बनाने से लेकर स्पीकर तक की जिम्मेदारी मिलने की चर्चा हो रही है।