कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में बड़ा जोखिम लिया है। उसने अपने दो विधायकों को लोकसभा चुनाव में उतार दिया है। सोचें, 68 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस के पास अभी सिर्फ 34 विधायक हैं। यानी बहुमत से एक कम। फिर भी पार्टी दो विधायकों को लोकसभा का चुनाव लड़ा रही है। ध्यान रहे राज्य विधानसभा में कांग्रेस के छह विधायकों ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया था। कांग्रेस की शिकायत पर विधानसभा स्पीकर ने उनकी सदस्यता समाप्त कर दी थी।
उनकी खाली हुई सभी छह सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इसके अलावा राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोट करने वाले तीन निर्दलीय विधायकों ने भी इस्तीफा दिया है, जिस पर स्पीकर को फैसला करना है। बहरहाल, कांग्रेस यह कांफिडेंस दिखा रही है कि उसके छह बागी विधायकों की सीट पर हो रहे उपचुनाव में वह जीत जाएगी और उसका फिर से सदन में बहुमत हो जाएगा। इसलिए दो विधायकों को चुनाव लड़ाया गया है।
लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा? क्या कांग्रेस मान रही है कि उसके दोनों विधायक लोकसभा का चुनाव नहीं जीतेंगे और विधायक बने रहेंगे इसलिए बहुमत की कमी नहीं होगी? कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि छह में से दो-तीन सीटें कांग्रेस आराम से जीत जाएगी। अगर नहीं जीती तब तत्काल तीनों निर्दलीय विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाएगा ताकि सदन 65 सदस्यों का रहे और बहुमत का आंकड़ा 33 का रहे।
गौरतलब है कि कांग्रेस ने मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा की कंगना रनौत के मुकाबले वीरभद्र सिंह के बेटे और राज्य सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह को उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह शिमला सीट से एक दूसरे विधायक विनय सुल्तानपुरी को मैदान में उतारा गया है। अगर ये दोनों जीतते हैं तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या 32 रह जाएगी। ऐसे में उसे साधारण बहुमत के लिए भी विधानसभा उपचुनाव में कम से कम तीन सीट जीतनी होगी