मीडिया में यह खबर ज्यादा चर्चा में नहीं आई थी लेकिन हैरान करने वाली खबर है कि केंद्र सरकार मतदाताओं की निगरानी कराना चाहती थी। इसके लिए उपकरण खरीदे जाने थे और टेंडर भी जारी हो गया था लेकिन कुछ गैर सरकारी संगठनों की ओर से सवाल उठाने पर चुनाव आयोग ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और सरकार का टेंडर रद्द कराया। खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार के सूचना व प्रौदयोगिकी यानी आईटी मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर सर्विसेज इंक यानी एनआईसीएसआई ने ऐसे उपकरणों के लिए टेंडर जारी किया था, जिनसे मतदान के समय मतदाताओं की निगरानी की जा सके और फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर के जरिए उनकी पहचान की जा सके। इतना ही नहीं ड्रोन्स के लिए टेंडर जारी किए गए थे ताकि मतदान के दिन मतदाताओं की आवाजाही पर नजर रखी जा सके।
सोचें, भारत सरकार को ऐसा कराने की क्या जरुरत है? अगर चुनाव आयोग स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने के नाम पर ऐसा करे तब भी कोई तर्क समझ में आता है लेकिन सरकार क्यों ऐसा कराएगी? बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग की मंजूरी के बगैर इसका टेंडर जारी किया था। विवाद होने के बाद टेंडर रद्द हो गया। चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने खुद इस बात की पुष्टि की है कि टेंडर रद्द हो गया है। हालांकि इससे ज्यादा उन्होंने कुछ नहीं बताया। सवाल है कि क्या सरकार का मकसद मतदाताओं की प्रोफाइलिंग करना था? क्या सरकार देखना चाह रही थी कि किस पार्टी के लिए काम कर रहे कार्यकर्ता किस मतदाता से मिल रहे हैं? यह बहुत चिंताजनक बात है क्योंकि केंद्र सरकार के विभाग एनआईसीएसआई का काम सरकार को डिजिटल तकनीकी सपोर्ट उपलब्ध कराना है।