पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के चार राज्यों में हारने के बाद प्रादेशिक पार्टियों खास कर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों ने म्यान से तलवारें निकाल ली हैं। समाजवादी पार्टी से लेकर जनता दल यू और सीपीएम से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक सब कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं। बिना आंकड़ा देख सब यह ज्ञान दे रहे हैं कि अगर ‘इंडिया’ एकजुट होकर लड़ता तो कांग्रेस इस तरह से नहीं हारती। हालांकि यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। कांग्रेस के ऊपर सबसे ज्यादा हमलावर ममता बनर्जी हैं, जिन्होंने कांग्रेस पर तीखा बयान दिया और अब उनकी पार्टी के मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ ने लिखा है कि कांग्रेस अपनी जमींदारी मानसिकता के कारण हारी और इस नतीजे का असर गठबंधन पर होगा।
लेकिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से प्रादेशिक पार्टियों को भी सबक लेने की जरुरत है। खास कर तेलंगाना के चुनाव नतीजे से। तेलंगाना में 10 साल सरकार चलाने वाली भारत राष्ट्र समिति चुनाव हार गई है। उसे इस विधानसभा चुनाव में 60 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने उसको रिप्लेस किया है। लेकिन उससे भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी को करीब 14 फीसदी वोट मिले हैं और उसके आठ विधायक जीते हैं। पिछली बार भाजपा सिर्फ एक सीट पर जीती थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में उसे बड़ा फायदा हुआ था और वह चार सीट जीतने में कामयाब रही थी।
इस बार लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन भाजपा ने विधानसभा चुनाव में किया है। इसका मतलब ह कि भाजपा इस दक्षिणी राज्य में एक बड़ी ताकत के तौर पर उभर रही है। इससे पहले कर्नाटक में यह कहानी दोहराई जा चुकी है। वहां भी कांग्रेस जीती और 36 फीसदी से ज्यादा वोट के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर रही। वहां एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल एस खत्म होने की कगार पर है और खुद देवगौड़ा ने कहा कि उन्होंने पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा के साथ तालमेल किया है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा को नहीं, बल्कि दो बड़ी प्रादेशिक पार्टियों को हराया है और उनका वोट लिया है। भाजपा न सिर्फ अपना वोट बचाने में कामयाब रही, बल्कि तेलंगाना में उसे बढ़ा लिया।
इन दो राज्यों का एक एक मैसेज दक्षिण की दूसरी प्रादेशिक पार्टियों के लिए तो है ही साथ ही उत्तर और पूर्वी भारत की प्रादेशिक पार्टियों के लिए भी है। ममता बनर्जी को ध्यान रखना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में भाजपा को लोकसभा में 41 फीसदी और विधानसभा में 38 फीसदी वोट मिले थे। ध्रुवीकरण की मात्रा थोड़ी भी बढ़ी तो भाजपा की सीटें बढ़ जाएंगी। हिंदी पट्टी में जिस तरह से जातीय गणना, सामाजिक न्याय और आरक्षण का मुद्दा पिटा है उसे देखते हुए बिहार और उत्तर प्रदेश की प्रादेशिक पार्टियों- राजद, जदयू और सपा को सावधान होने की जरुरत है तो छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजे झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए चिंता की बात हैं। सबसे ज्यादा चिंता की बात ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के लिए है, जहां अगले साल लोकसभा के साथ विधानसभा का चुनाव है। जिस तरह से नवीन पटनायक ने तमिलनाडु के रहने वाले आईएएस अधिकारी वीके पांडियन को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर आगे किया है उससे भाजपा के लिए वहां भी अवसर बन रहे हैं।