दलबदल वैसे तो बहुत सामान्य परिघटना बन गई है लेकिन अगर अलग अलग समूहों में दलबदल की घटना की श्रेणियां बनाएं तो एक बड़ी दिलचस्प तस्वीर बनती है। जैसे जितने भी बड़े नेताओं के बेटे या बेटियां हैं उनको सत्ता के बगैर ज्यादा समय तक नहीं रहा जाता है और वे जल्दी से जल्दी पाला बदलते हैं और सत्तारूढ़ दल के साथ जाते हैं।
उसी तरह राजाओं या राज परिवार से जुड़े नेताओं की कहानी है। वे भी ज्यादा समय तक सत्ता से दूर नहीं रह सकते हैं। चाहे कांग्रेस ने उनको जितना कुछ दिया हो लेकिन अगर अब नहीं दे रही है या देने की स्थिति में नहीं है तो वे फटाफट पाला बदल ले रहे हैं। इस सिलसिले में सबसे ताजा नाम महारानी पटियाला का है। वे अभी तक कांग्रेस की सांसद थीं और तीन साल पहले तक उनके पति कैप्टेन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे। लेकिन मुख्यमंत्री से हटाने के साथ कैप्टेन ने पाला बदल लिया और अब परनीत कौर भी भाजपा में चली गई हैं।
उधर हिमाचल प्रदेश में भी एक राज परिवार को कांग्रेस ने जीवन भर सत्ता में रखा। जब तक वीरभद्र सिंह जीवित रहे और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तब तक उनको सीएम बना कर रखा गया। अगर राज्य में सरकार नहीं होती थी और केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती थी तो वे केंद्र में मंत्री बनते थे। लेकिन कांग्रेस ने दूसरे नेता को मौका दिया तो उनकी पत्नी और बेटा दोनों मिल कर सरकार गिराने में लगे हैं। उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह ने मंडी सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है।
उनका कहना है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री सुखविंद सिंह सुक्खू के राज में काम ही नहीं हुआ है तो वे किस नाम पर वोट मांगने जाएं। सोचें, सुक्खू को सीएम बने डेढ़ साल भी नहीं हुए हैं लेकिन उनके काम के बहाने चुनाव नहीं लड़ना है। इस विरोध का मकसद बेटे को सीएम बनवाना है। अगर कांग्रेस ने नहीं बनाया तो भाजपा के साथ जाने में भी दिक्कत नहीं है।
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया यह काम बहुत पहले कर चुके हैं और राजस्थान में फिर से मानवेंद्र सिंह के बारे में चर्चा है कि वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जाने की बातचीत कर रहे हैं। आरपीएन सिंह की भी उत्तर प्रदेश में छोटी मोटी रियासत थी या है। उनको भी कांग्रेस ने केंद्र में मंत्री, पार्टी का महासचिव आदि बनाया था लेकिन कांग्रेस कमजोर हुई तो वे भाजपा में चले गए। उनसे काफी पहले अमेठी की छोटी से रियासत के राजा रहे संजय सिंह भाजपा में चले गए थे। कांग्रेस ने उनको असम से राज्यसभा में भेजा था। लेकिन राज्यसभा समाप्त होते ही वे पाला बदल कर चले गए।
 
								 
								
								


 
												 
												 
												 
												 
												 
																	 
																	 
																	 
																	 
																	 
																	 
																	