Politics

  • उम्मीदवार नहीं नेता लड़ेंगे चुनाव

    भारतीय राजनीति में यह प्रवृत्ति अब सांस्थायिक रूप लेती जा रही है। नरेंद्र मोदी की कमान में भाजपा ने इस प्रवृत्ति को एक सिद्धांत में बदला और अब सारी पार्टियां इसे अपना रही हैं। सिद्धांत यह है कि उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ेगा, बल्कि एक सर्वोच्च नेता चुनाव लड़ेगा और एक दूसरे बड़ा नेता चुनाव की रणनीति बनाएगा। इस सिद्धांत के मुताबिक हर सीट पर उम्मीदवार एक सर्वोच्च नेता के नाम पर वोट मांगेंगे और हर उम्मीदवार के लिए ही एक नेता  रणनीति बनाएगा। जैसे भाजपा में लोकसभा चुनाव हो या किसी भी राज्य का विधानसभा चुनाव या स्थानीय निकाय का...

  • वक्त राजनीति की नई परिकल्पना का

    अक्सर देखा गया है कि समाज में नई उम्मीदें जन्म लेती हैं। ऐसी बहसें यह भरोसा बंधाती हैं कि मानव प्रयास से एक अलग, नए किस्म की दुनिया का निर्माण संभव है। जबकि ऐसे प्रयासों के अभाव में लोग हताशा का शिकार होते हैं, जैसा श्रीलंका, नेपाल, या बांग्लादेश में हुआ है। अनुभव यह है कि असंगठित और अराजक विद्रोहों से कुछ नया बनता नहीं है। बल्कि अंततः उन समाजों के प्रभुत्वशाली तबके ही उसका लाभ उठा ले जाते हैं, क्योंकि वे अधिक संगठित होते हैं। दीर्घकाल में इससे समाज में हताशा और गहराती है। नेपाल की घटनाओं ने चुनाव...

  • वंशवादी पार्टियों में ज्यादा जमीनी लोग

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वंशवादी पार्टियों को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते रहे हैं। उन्होंने कुछ समय पहले कहा था कि वे एक लाख युवाओं को प्रशिक्षण देकर राजनीति में ले आएंगे। हालांकि कहने के बाद उस दिशा में क्या हुआ यह किसी को पता नहीं है। वंशवादी राजनीति पर प्रधानमंत्री जब हमला करते हैं तो उन पार्टियों की ओर से गिनाया जाता है कि भाजपा में कितने वंशवादी नेता हैं या भाजपा ने कितने नेताओं के बच्चों को आगे बढ़ाया है। यह अंतहीन सूची है। अभी ही भाजपा ने जो प्रदेश अध्यक्ष बनाए हैं उनमें से कम से...

  • जाति से आगे नहीं बढ़ते हैं नेता

    भारत के नेता किसी भी घटनाक्रम को और किसी भी व्यक्ति को जाति के चश्मे से ही देखते हैं। कई मौके पर खास कर सेना से जुड़े घटनाक्रम में आम नागरिक जाति का भेद भूल जाते हैं लेकिन नेता तब भी नहीं भूलते हैं। वे तब भी जाति के हिसाब से ही काम करते हैं। आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर के बाद अनेक नेताओं ने जाति और धर्म के आधार पर खूब राजनीति की। बिहार के निर्दलीय सांसद हैं पप्पू यादव वे पूर्णिया में भारत के वायु सेना के एय़र मार्शल अवधेश भारती के घर गए। सोचें, एयर...

  • पानी पर राजनीति चुनाव के लिए

    पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर पहले भी विवाद होता था, जैसे दिल्ली और हरियाणा के बीच होता है। सभी राज्य एक दूसरे पर पानी रोकने या उसके हिस्से का पानी इस्तेमाल करने के आरोप लगात रहे हैं। इसी तरह का विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच भी होता है। लेकिन ऐसा कभी सुनने को नहीं मिला कि राज्यों के बीच इतना तनाव हो जाए कि पुलिस की तैनाती होने लगे और बांध प्राधिकरण के लोगों को बंधक बनाया जाने लगे। इस तरह के फिल्मी डायलॉग भी सुनने को नहीं मिलते थे कि एक बूंद पानी नहीं दिया...

  • तृणमूल के मुकाबले कहां है भाजपा?

    west bengal politics : पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। चुनाव में एक साल बचे हैं। तभी ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। परंतु उसके मुकाबले भाजपा की तैयारियां जमीन पर कहीं नहीं दिख रही हैं। कह सकते हैं कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत खुद पश्चिम बंगाल पहुंचे थे और कई दिन तक प्रवास किया था, जिसके बाद संघ और भाजपा के कार्यकर्ता सक्रिय हुए हैं। लेकिन वह सक्रियता जमीन पर बहुत असरदार नहीं दिख रही है। कुछ शहरी इलाकों में भाजपा की तैयारी...

  • टकराव की राजनीति जारी रखेगी आप

    आम आदमी पार्टी की राजनीति नहीं बदलने वाली है। वह पहले की तरह भारतीय जनता और केंद्र सरकार के खिलाफ टकराव की राजनीति जारी रखेगी। अब तो दिल्ली सरकार के खिलाफ भी उसको लड़ना है, जिसका संकेत उसने विधानसभा में दे दिया है। पहले दिन से आम आदमी पार्टी ने टकराव शुरू कर दिया है। उसके पास कामकाज के मुद्दे हैं तो कुछ भावनात्मक मुद्दे भी हैं। जैसे पहले ही दिन आम आदमी पार्टी के विधायकों ने इस बात पर हंगामा किया कि मुख्यमंत्री के कार्यालय में से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीर हटा दी गई है...

  • क्षेत्रीय पार्टियों में दूसरी लाइन समाप्त

    indian political parties : देश की लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां एक जैसी दशा में पहुंचती दिख रही हैं। हर पार्टी में संस्थापक नेताओं के निधन या उनके कमजोर होने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कमान संभाली है और उन उत्तराधिकारियों की कोई दूसरी लाइन तैयार नहीं है। सभी प्रादेशिक क्षत्रपों के साथ कभी एक करिश्मा जुड़ा था या एक जातीय समीकरण था, जिसके दम पर वे सफल हुए। इसके बावजूद उनके पास पुराने, विचारधारा के प्रति समर्पित और मजबूत जमीनी आधार वाले नेता भी थे। लेकिन अब किसी भी ऐसे प्रादेशिक क्षत्रप के बेटे ये बेटी के साथ ऐसे नेताओं...

  • कांग्रेस की दलित, मुस्लिम वोट की राजनीति

    congress vote politics: राहुल गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार कांग्रेस को पूरी तरह से पिछड़े, दलित और मुस्लिम वोट की पार्टी बनाने की प्रतिबद्धता में काम कर रहे हैं और यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के संबंध सहयोगी पार्टियों से बिगड़ते जा रहे हैं। असल में ज्यादातर प्रादेशिक पार्टियों ने कांग्रेस का पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोट तोड़ कर ही अपने को मजबूत बनाया है। तभी उनको लग रहा है कि अगर यह वोट कांग्रेस की ओर लौटता है तो उनको नुकसान होगा। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से लेकर पश्चिम बंगाल में...

  • चुनावी लुभावने वादे किसके दम पर….?

    भोपाल। पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में एक फिल्म आई थी, जिसमें एक गाने के बोल थे- ‘‘कसमें वादे प्यार वफा, सब बातें है, बातों का क्या....’’ वैसे फिल्म में तो यह गाना उसके कथानक पर था, किंतु वास्तव में देखा जाए तो यह गाना फिल्म के कथानक से ज्यादा हमारे देश की राजनीति पर अवतरित होता है, अब इसे हमारे प्रजातंत्र या चुनाव प्रणाली का दोष कहे? या और कुछ, किंतु यह सही है कि चुनावों के समय विजय प्राप्त करने के लिए बढ़-चढ़कर आकर्षित व लोक-लुभावन नारे और वादे मतदाताओं के सामने परोसे जाते है और विजय...

  • नेताओं का आचरण कैसे सुधरेगा?

    indian Politics: चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के भड़काऊ, उत्तेजक या आपत्तिजनक बयानों की शिकायत चुनाव आयोग से होती है तो आयोग की ओर से संबंधित पार्टी के अध्यक्ष को नोटिस भेज कर जवाब मांगा जाता है। यह बिल्कुल नई परंपरा है, जिसकी शुरुआत का श्रेय वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को जाता है। उन्होंने सबसे पहले अपने इस महान विचार का उपयोग तब किया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों की शिकायत आयोग के पास पहुंची थी। तब उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को नोटिस भेज कर जवाब मांगा था। उसके बाद इस सिद्धांत को...

  • वर्ष 2024 का राजनीतिक सूत्र क्या है?

    year 2024: दुनिया भर में अंग्रेजी शब्दकोष के लिए वर्ष के शब्द चुने जाते हैं। जैसे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ‘ब्रेन रॉट’ को वर्ष का शब्द चुना है। जब से इसे वर्ष का शब्द चुना गया है, इसके बारे में जानने के लिए करोड़ों लोगों ने इसे सर्च किया। भले ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने इसे वर्ष 2024 का शब्द चुना लेकिन असल में यह शब्द समकालीन समय की वास्तविकताओं का प्रतीक शब्द है। जिस तरह से सोशल मीडिया का कंटेंट देखने पर अरबों घंटे बरबाद हो रहे हैं उससे औसत दिमाग सड़ जाने की स्थिति में ही पहुंच गया है। ‘ब्रेन रॉट’...

  • दिल्ली जैसी कश्मीर में राजनीति

    केंद्र सरकार ने अभी तक जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया है। जम्मू कश्मीर अब भी केंद्र शासित प्रदेश है। यह सही है कि उसका राज्य का दर्जा बहाल करने के मसले पर केंद्र सरकार सिद्धांत रूप से सहमत है। कहा जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इसका प्रस्ताव आ सकता है। लेकिन क्या राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद भी जम्मू कश्मीर की सत्ता संरचना में कोई बदलाव होगा या दिल्ली की तरह उप राज्यपाल ही असली सरकार बने रहेंगे? यह संसद में लाए जाने वाले प्रस्ताव से कुछ हद तक पता...

  • जोड़ियों में राजनीति करने की जरुरत नहीं

    पता नहीं राहुल गांधी और हेमंत सोरेन को कोई यह समझाता है या नहीं कि उनको जोड़ियों में Politics करने की जरुरत नहीं है। राहुल ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ जोड़ी बनाई है तो हेमंत सोरेन की जोड़ी उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ बनी है। उसके बाद से ये जोड़ियों में ही राजनीति करते हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ हर जगह राहुल गांधी मौजूद रहने लगे हैं। उनके प्रचार में वे चार दिन गए और उसके बाद वे जीतीं तो वायनाड की पहली यात्रा में भी राहुल उनके साथ गए। प्रियंका संसद में पहली बार...

  • जीत गए तब भी सब जायज नहीं है!

    Politics जीत जारी कमियों को ढक देती है। जो जीत जाता है वह सिकंदर कहलाता है और कोई उस पर सवाल नहीं उठाता है। जीत गए तो गलतियां भी मास्टरस्ट्रोक कहलाती हैं। हार के कारणों पर तो अक्सर चर्चा होती है लेकिन जीत के तरीके पर कोई चर्चा नहीं करता है, बल्कि जितनी चीजें जीत का कारण बनी होती हैं उनकी अंधी नकल शुरू हो जाती है। खेल के मैदान में भी कहा जाता है कि विनिंग कॉम्बिनेशन नहीं बदला जाता है, भले जीतने वाली टीम के कई खिलाड़ी बहुत खराब खेल रहे हों लेकिन उनको गुडलक मस्कट के तौर...

  • न शर्म न हया: संविधान की रोज हत्या.?

    भोपाल। भारतीय आजादी के इस हीरक वर्ष में कभी ‘विश्वगुरू’ का दर्जा प्राप्त हमारा देश अब किसी का ‘शिष्य’ बनने के काबिल भी नही रहा है, यद्यपि हमारे भाग्यविधाता सत्तारूढ़ नेता विश्वभर में जाकर अपनी खुद की प्रशंसा करते नहीं थकते, किंतु वास्तव में हमारी स्थिति उस मयूर जैसी है जो प्रगति के बादल देखकर अनवरत् नाचता है और उपलब्धि के अभाव में बाद में आंसू बहाता है। आजादी के बाद से हमारे देश में भी राजनीति के अलग-अलग दौर रहे है, जवाहरलाल के जमाने की राजनीति प्रगति की कल्पना पर आधारित थी तो इंदिरा जी के जमाने से सत्ता...

  • नैतिकता अब है कहां जो नेता इस्तीफा दे!

    याद नहीं आ रहा है कि नैतिकता के आधार पर आखिरी बार किसी नेता या लोक सेवक का इस्तीफा कब हुआ था। मौजूदा राजनीतिक बिरादरी में नीतीश कुमार संभवतः इकलौते नेता हैं, जिन्होंने प्रशासनिक नैतिकता के आधार पर रेल मंत्री पद से इस्तीफा दिया था और राजनीतिक नैतिकता के आधार पर बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। हालांकि दोनों बार उन्होंने वापसी की और नैतिकता को ताक पर रख कर केंद्रीय मंत्री भी बने और मुख्यमंत्री भी बने। फिर भी थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन उन्होंने इस्तीफा दिया। अब तो किसी तरह की नैतिकता का कोई...

  • ‘घृणा’ अब अपना धर्म

    ईमानदारी से सोचे, यदि मनुष्य है तो जरूर सोचे। हम क्या होते हुए है? क्या ईमानदारी, सदाचारी, सत्यवादी, विन्रम, संतोषी,  विश्वासी और प्रेम व करूणा, अंहिसा के सनातनी व्यापक धर्म की नैतिक मंजिले पाते हुए है या भ्रष्ट-बेईमान, झूठे, अंहकारी, भूखे, अविश्वासी, घृणा-नफरत, हिंसा से मन-मष्तिष्क, चित्त-वृति को भरते हुए है? मेरा मानना है हम बतौर नागरिक, समाज, धर्म व राष्ट्र उन वृतियों, प्रवृतियों, मन और व्यवहार में वे अवगुण धारते हुए है जिसकी कल्पना कलियुग के सर्वाधिक बुरे समय में भी नहीं थी। निश्चित ही किसी कौम और धर्म का नैतिक पतन देश-काल की आबोहवा की लीला से है।...

  • मंत्र, जात और जोड़ तोड़!

    नरेंद्र मोदी और अमित शाह हकीकत में जीते हैं। और दोनों ने जान लिया है कि उनका लोगों में क्रेज खत्म है। वे बासी हो गए हैं। और अपने आपको नए सिरे से रिइनवेंट भी नहीं कर सकते। फिल्म फ्लॉप है तो है उसे नया बना कर वापिस कैसे रिलीज किया जा सकता है? लेकिन बाजार में तो रहना है, राजनीति का धंधा तो चल रहा है? तभी सवाल है हरियाणा, जम्मू कश्मीर के दो चुनावों में मोदी की भाजपा के जीतने के मंत्र और फॉर्मूले क्या हैं? एक, किसी का भी इस्तेमाल करो। भारत विरोधी और कश्मीर में आतंकी...

  • कहानी में अब है क्या!

    ‘गपशप’ लिखते-लिखते चालीस साल बाद अब वह मुकाम है जब न सुर्खियों और चेहरों से कहानी निकलती है और न सत्ता और राजनीति से कहानी में तड़का है। सोचें, इस सप्ताह क्या था? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ जस्टिस के घर जा कर कहानी बनानी चाही। परिणाम क्या हुआ?  मराठी टोपी, ड्रेस, गणेश पूजा के फोटो के बावजूद मोदी महाराष्ट्र में क्लिक नहीं हुए। उलटे चीफ जस्टिस बदनाम हुए। यह अखिल भारतीय मैसेज अलग से बना कि मोदी के साथ खड़ा दिखना भी खराब! फिर आरोपी आतंकी इंजीनियर राशिद के जेल से छूटने की खबर। पर क्या इससे घाटी में...

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