Wednesday

30-07-2025 Vol 19

नेताओं का आचरण कैसे सुधरेगा?

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indian Politics: चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के भड़काऊ, उत्तेजक या आपत्तिजनक बयानों की शिकायत चुनाव आयोग से होती है तो आयोग की ओर से संबंधित पार्टी के अध्यक्ष को नोटिस भेज कर जवाब मांगा जाता है।

यह बिल्कुल नई परंपरा है, जिसकी शुरुआत का श्रेय वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को जाता है।

उन्होंने सबसे पहले अपने इस महान विचार का उपयोग तब किया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों की शिकायत आयोग के पास पहुंची थी। तब उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को नोटिस भेज कर जवाब मांगा था।

उसके बाद इस सिद्धांत को स्थापित करने के लिए उन्होंने राहुल गांधी के भाषणों की शिकायत पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को नोटिस भेजा।(indian Politics)

अभी हाल के चुनावों में भी नड्डा और खड़गे को नोटिस भेजे गए थे। पहले जिस नेता की शिकायत आती थी उसके खिलाफ कार्रवाई होती थी।

वैसे चुनाव आयोग के पास ज्यादा अधिकार होते नहीं हैं फिर भी वह निंदा करता था या प्रचार पर रोक लगा देता था। परंतु अध्यक्षों को नोटिस भेजने से वह भी बंद हो गया है।

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चुनाव आयोग द्वारा अपनाए एक नए सिद्धांत का इतने विस्तार से जिक्र इसलिए है क्योंकि क्या इसी तरह चुनाव से अलग सामान्य राजनीति में भी नेताओं के आचरण और उनके बयानों के लिए पार्टियों के प्रमुखों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

भारत की राजनीति में जैसे जैसे शुचिता कम हो रही है और जैसे जैसे नेताओं के आपत्तिजनक बयान बढ़ते जा रहे हैं उन्हें देखते हुए इस बात की बहुत जरुरत है कि नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाए और उनके खिलाफ सांस्थायिक कार्रवाई की कोई व्यवस्था बनाई जाए।

राजनीति में विरोधियों को बारे में कुछ भी कहने का चलन अगर अभी नहीं रोका गया तो बाद में यह नासूर बन जाएगा।(indian Politics)

पहले भी नेता एक दूसरे के खिलाफ बयान देते थे लेकिन उसमें निजी कटुता नहीं होती थी, अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को दुश्मन मानने का भाव नहीं होता था और अपने विरोधी को अपमानित करने की सोच नहीं होती थी।

एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी मुद्दों और सिद्धांतों पर आधारित होती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जानी दुश्मन माने जाने लगे हैं और उन्हें अपमानित करने वाले बयान दिए जाने लगे हैं।

केंद्र में सत्तारूढ़ दल यानी भाजपा में तो इस बात की होड़ मची है कि कौन सा नेता विपक्ष के नेताओं को कितनी बुरी तरह से जलील कर सकता है, कौन सा नेता कितनी खराब बात कह सकता है और कौन सा नेता कितना बड़ा आरोप लगा सकता है।

कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती….

संसद के शीतकालीन सत्र में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिला। भाजपा के सांसदों और यहां तक की मंत्रियों में भी विपक्ष के नेताओं को अपमानित करने की होड़ मची थी।

ऐसे ऐसे आरोप लगाए जा रहे थे, जिनकी सभ्य और लोकतांत्रिक व्यवस्था में कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के ऊपर संसद के अंदर देश विरोधी होने का आरोप लगा, विदेश में भारत विरोधी शक्तियों से संपर्क रखने और मेल मुलाकात के आरोप भी लगे और कांग्रेस की मांग के बावजूद इन आरोपों को संसद की कार्यवाही से हटाया नहीं गया।

तभी सवाल है कि क्या फिर किसी बड़ी एजेंसी से इन आरोपों की जांच नहीं कराई जानी चाहिए? अगर सरकार ने जांच कराने की जरुरत नहीं समझी है तो इसका मतलब है कि आरोप झूठे हैं।

फिर ऐसे झूठे आरोप लगाने वालों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती है?(indian Politics)

शीतकालीन सत्र में तो नेता प्रतिपक्ष के ऊपर गुंडागर्दी करने और महिला सांसद के नजदीक जाकर उनको असहज करने के आरोप भी लगे। थाने में उनकी शिकायत भी की गई लेकिन पता नहीं आगे उन आरोपों में क्या होता है!

सांसद को संसदीय राजनीति से प्रतिबंधित…(indian Politics)

शीतकालीन सत्र से पहले नए संसद भवन के उद्घाटन सत्र में भाजपा के एक सांसद ने बहुजन समाज पार्टी के एक अल्पसंख्यक सांसद के लिए जिस तरह सड़कछाप गुंडों वाली गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल किया था, वह संसदीय मर्यादा के क्षरण की सबसे बड़ी मिसाल थी।

इस तरह की भाषा के इस्तेमाल के लिए उस सांसद को हमेशा के लिए संसदीय राजनीति से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए था और आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए था।

लेकिन वह भाजपा का सम्मानित नेता बना रहा। अब उस नेता को भाजपा ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव की टिकट दी है और टिकट मिलने के बाद उस नेता का पहला बयान दो महिला नेताओं को अपमानित करने वाला आया है।

भाजपा उम्मीदवार ने कांग्रेस की एक महिला सांसद और दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री के दोनों के लिए बेहद आपत्तिजनक बातें कहीं।

लेकिन भाजपा ने इसके लिए उनसे सवाल जवाब करने की भी जरुरत नहीं समझी, कार्रवाई तो दूर की बात है। क्या यह माना जाए कि भाजपा की मौन सहमति है?(indian Politics)

मीडिया में जब भाजपा नेताओं के इस किस्म के बयानों की ज्यादा चर्चा होती है तो उसके नेता और खास कर आईटी सेल वाले एक सूची लेकर सामने आते हैं और बताते हैं कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने प्रधानमंत्री का कितनी बार अपमान किया है।

पिछले ही दिनों उन तमाम अपमानजनक विशेषणों की सूची भाजपा की आईटी सेल ने जारी की थी, जो विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री के लिए इस्तेमाल किए थे।

राजनीति का क्या स्तर होगा?

लेकिन क्या इस आधार पर भाजपा नेताओं की ओर से विपक्ष के बारे में कही जाने वाली बातों को जायज ठहराया जा सकता है?

क्या इसे सामान्य नियम के तौर पर स्वीकार कर लिया जाए कि विपक्ष के नेता आपत्तिजनक बातें कह रहे हैं इसलिए सत्तापक्ष के नेता भी उसी भाषा में जवाब देंगे?

कल्पना करें इससे आने वाले दिनों में राजनीति का क्या स्तर होगा? वैसे भी हर संसद सत्र के साथ विधायी कामकाज में कमी आ रही है और एक दूसरे के प्रति अपमानजनक बातें करने और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ बढ़ती जा रही है।

बात तो अब धक्कामुक्की, मारपीट और मुकदमेबाजी तक पहुंच गई है। यही प्रवृत्ति सामान्य राजनीति में भी दिख रही है।

तभी अब यह आवश्यक है कि इसकी जिम्मेदारी तय की जाए। भड़काऊ या उत्तेजक बयानों के अलावा अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के प्रति अपमानजनक बातें करने वाले नेताओं को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

किसी नेता के बयान या सार्वजनिक जीवन में उसके आचरण को लेकर पार्टी को या पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष को तो जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना सकता है लेकिन अगर पार्टी उस पर कार्रवाई नहीं करती है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष से सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए।

क्योंकि अंततः कोई भी नेता सार्वजनिक जीवन में उन्हीं मूल्यों और सिद्धांतों का प्रदर्शन करता है, जिसका उसको प्रशिक्षण मिला होता है।

अगर किसी पार्टी का नेता, सांसद या विधायक महिलाओं के प्रति अपमानजनक बयान देता है और पार्टी उस पर कार्रवाई नहीं करती है तो यह मानना चाहिए कि संबंधित पार्टी की सोच महिलाओं के प्रति ऐसी ही है।

पार्टी की सार्वजनिक निंदा(indian Politics)

महिला सांसद, महिला मुख्यमंत्री या महिला पहलवानों से जुड़े मामलों की मिसाल बनाई जा सकती है। इसी तरह जाति या धर्म के आधार पर कोई नेता अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करता है और पार्टी कार्रवाई नहीं करती है तो पार्टी को इसके लिए जिम्मेदार मानना चाहिए।

ऐसे ही किसी नेता के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं और पार्टी सिर्फ इसलिए कार्रवाई नहीं करती है कि आरोप राजनीति से प्रेरित हैं या जब तक सर्वोच्च अदालत में आरोप प्रमाणित नहीं होते हैं, तब तक ईमानदार मानेंगे या नेता मजबूत है, कार्रवाई की तो चुनाव हरा सकता है, तो उस पार्टी की सार्वजनिक निंदा होनी चाहिए।

अब समय आ गया है कि राजनीति से जुड़े लोगों के आचरण की शुचिता सुनिश्चित करने का अभियान चलाया जाए।

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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