बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार का प्रशासन और उनकी पुलिस उनकी अपनी पार्टी जनता दल यू से लेकर एनडीए के सभी घटक दलों के लिए सिरदर्द बनी है। चुनाव से ठीक पहले शासन, प्रशासन के जैसे बेलगाम होने का मैसेज बन रहा है और पुलिस की विफलता प्रमाणित हो रही है उससे घटक दलों में चिंता बढ़ी है। पटना शहर में गांधी मैदान के पास प्रदेश के जाने माने कारोबारी और भाजपा के नेता गोपाल खेमका की हत्या के बाद यह चिंता और बढ़ी है। इससे एक दिन पहले सीवान में जबरदस्त हिंसा हुआ। दो परिवारों के विवाद में सैकड़ों लोग बंदूक, तलवार और दूसरे हथियार लेकर जुटे और इस संघर्ष में तीन लोग मारे गए। कई लोग घायल हुए हैं। इस घटना से पूरे इलाके में दहशत है। पिछले दिनों पटना के सबसे सुरक्षित इलाके में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के आवास के सामने गोलियां चलीं और आज तक गोली चलाने वाले पकड़े नहीं गए। उससे पहले पटना शहर में एडीजी लेवल के अधिकारी की गाड़ी के सामने गोलियां चलाते गुंडों के वीडियो वायरल हुए।
बहरहाल, गोपाल खेमका की हत्या ने पुलिस और प्रशासन दोनों की विफलता साबित कर दी है। हत्या के दो घंटे बाद तक पुलिस घटनास्थल तक नहीं पहुंची और जैसा कि हर वारदात के बाद होता है, बिहार पुलिस ने पटना की बेऊर जेल में छापा मारा और दावा किया कि सुराग मिले हैं। सोचें, बिहार में पुलिस खुद ही मान रही है कि जेल से आपराधिक गतिविधियां चलती हैं। खेमका की हत्या के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुलिस अधिकारियों की उच्चस्तरीय बैठक ही। वे खुद गृह मंत्री भी हैं। लेकिन उस बैठक की तस्वीर नहीं जारी की गई, सिर्फ प्रेस विज्ञप्ति जारी हुई। तभी यह कयास लगाया जा रहा है कि सीएम बैठक में नहीं मौजूद थे। उनकी मानसिक स्थिति को लेकर पहसे से सवाल उठ रहे हैं। तभी यह धारणा बनने लगी है कि नीतीश के शासन में सब बेलगाम हो गए हैं। किसी पर किसी का कंट्रोल नहीं है। सारे मंत्री और पदाधिकारी सिर्फ लूट में लगे हैं। कुछ पूर्व अधिकारी और कुछ मंत्री मिल कर सरकार चला रहे हैं। सुशासन के कुशासन में बदलने की धारणा बन रही है, जिसका बड़ा चुनावी नुकसान हो सकता है।