प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी में कटौती की बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस बार डबल दिवाली मनेगी। हालांकि उनकी घोषणा से हजारों कारोबारियों का तात्कालिक नुकसान यह हुआ कि गणेश उत्सव और ओणम जैसे त्योहारों पर होने वाली खरीदारी में कमी आएगी। लोगों ने इंतजार शुरू कर दिया कि जीएसटी में कटौती से कीमतें कम होंगी तो खरीदारी करेंगे। ऊपर से अमेरिकी टैरिफ की वजह से भी हजारों कारोबारियों का माल अटक गया है और वे सस्ते में बेचने के लिए दूसरा बाजार खोज रहे हैं। हालांकि आम लोगों को इससे मतलब नहीं है। वे दिवाली का इंतजार कर रहे हैं, जब जीएसटी की दरों के दो स्लैब हटाए जाएंगे और जैसा कि दावा किया जा रहा है, रोजमर्रा की जरुरत की ज्यादातर चीजों के दाम कम होंगे।
परंतु उससे पहले यह चिंता भी शुरू हो गई है कि क्या आम लोगों को सचमुच उतना लाभ मिल पाएगा, जितने का दावा किया जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि लाभ के नाम पर झुनझुना हाथ लगे? यह आशंका इसलिए है क्योंकि राज्यों की ओर से कहा जाने लगा है कि उनको राजस्व का नुकसान होगा तो केंद्र सरकार उसकी भरपाई के उपाय करे। राज्यों ने समग्र रूप से एक साल में डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका जताई है। केंद्र का कहना है कि कटौती से बाजार का आकार बढ़ेगा, उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा तो नुकसान की भरपाई हो जाएगी। लेकिन राज्य सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि सालाना 14 फीसदी से कम दर से राजस्व की बढ़ोतरी कबूल नहीं है। ध्यान रहे इससे कम बढ़ोतरी पर मुआवजा देने का जो प्रावधान था उसकी अवधि भी समाप्त हो गई है। इसलिए राज्य सरकारें खास कर विपक्षी पार्टियों की सरकारें मुआवजा मांग रही हैं। विपक्षी पार्टियों की सरकारें चाहती हैं कि पांच साल तक मुआवजे का प्रावधान किया जाए। अगर ऐसा होगा तो मुआवजे का पैसा निकालने के लिए सरकार सेस, सरचार्ज आदि लगाएगी। इससे आम लोगों को मिलने वाला लाभ निश्चित रूप से कम होगा।
जीएसटी में कटौती को लेकर इस बात का सबसे ज्यादा प्रचार हुआ कि स्वास्थ्य व जीवन बीमा के प्रीमियम में बड़ी कमी आएगी। गौरतलब है कि अभी इस पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है, जिसे कम करके पांच फीसदी या शून्य करने की बात कही जा रही है। लेकिन उससे पहले ही बीमा कंपनियों ने अपनी लॉबिंग शुरू कर दी है। बीमा कंपनियों का कहना है कि उनका ऑपरेटिंग खर्च बढ़ जाएगा और इनपुट क्रेडिट का रास्ता बंद हो जाएगा।
बीमा कंपनियां अपनी समस्या बता कर सरकार पर दबाव डाल रही हैं कि वह टैक्स की दरों को तर्कसंगत बनाए लेकिन उनके हितों का भी ध्यान रखे। सबको पता है कि बीमा कंपनी या किसी भी कॉरपोरेट के हित के सामने आम आदमी का हित कंप्रोमाइज्ड होता है। भाजपा शासित राज्यों ने एक प्रस्ताव पास करके जीएसटी कटौती का समर्थन किया है लेकिन उनको भी राजस्व के नुकसान का अंदेशा है। सो, राज्यों के दबाव और कॉरपोरेट के हित को देखते हुए ऐसी आशंका दिख रही है कि आम लोगों के हितों से कुछ समझौता हो सकता है। जीएसटी में कटौती होगी लेकिन उसका पूरा लाभ आम लोगों को नहीं मिलेगा। जैसे दुनिया के बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने पर आम लोगों को लाभ नहीं मिलता है। तभी यह आशंका भी है कि कहीं जीएसटी की दर कम होने पर भी लाभ आम आदमी की बजाय कंपनियों को न मिलने लगे।