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बिहार, झारखंड मे रातों रात बदली तस्वीर

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में बिसात तो बहुत कायदे से बिछाई थी लेकिन ऐसा लग रहा है कि विपक्षी पार्टियां भी चुपचाप खेल की तैयारी कर रही थीं। चुनाव की घोषणा के बाद विपक्ष ने पत्ते खोलने शुरू किए हैं। कुछ भाजपा और उसके गठबंधन एनडीए के अंदरूनी टकराव से और कुछ विपक्ष की तैयारियों से बिहार और झारखंड दोनों राज्यों में रातों रात तस्वीर बदल गई है।

घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला है कि भाजपा को सोचने और विपक्ष के दांव की काट निकालने का मौका नहीं मिला है और चुनाव के लिए नामांकन शुरू हो गया है। दोनों राज्यों की 54 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से भाजपा की अपनी 38 सीटें हैं, जबकि एनडीए को पिछले चुनाव में 51 सीटें मिलीं थीं। अगर पशुपति पारस को हटा दें तब भी उसके पास 50 सीटें हैं। इनमें से कम से कम आधी सीटें मुश्किल लड़ाई वाली हो गईं।

पहले झारखंड की बात करें तो वहां भाजपा ने शिबू सोरेन की बहू और जामा सीट से विधायक सीता सोरेन को तोड़ कर अपनी तरफ कर लिया था। इससे भाजपा को उम्मीद है कि संथालपरगना के इलाके में उसे कुछ फायदा हो सकता है। लेकिन इसके अगले ही दिन कांग्रेस ने बड़ी सेंधमारी की और मांडू सीट से भाजपा के विधायक जेपी पटेल को तोड़ कर अपनी पार्टी में मिला लिया। वे शिबू सोरेन के सबसे करीबी सहयोगी रहे दिवंगत टेकलाल महतो के बेटे हैं।

वे मांडू सीट पर पहले जेएमएम के विधायक थे और पिछली बार भाजपा की टिकट से जीते थे। उनको कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस को एक मजबूत कुर्मी नेता मिला है, जिसका असर हजारीबाग, गिरिडीह और कोडरमा तीन लोकसभा सीटों पर प्रत्यक्ष रूप से होगा। सो, भाजपा ने सीता सोरेन से जो एडवांटेज लिया था उसे जेपी पटेल ने बराबर कर दिया। अब छोटानागपुर से लेकर संथालपरगना तक कांग्रेस गठबंधन मजबूत लड़ने की स्थिति में आ गया है।

उधर बिहार में एक बड़ा घटनाक्रम यह हुआ कि राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। उनकी पत्नी रंजीता रंजन पहले से कांग्रेस में हैं और राज्यसभा सांसद हैं। पप्पू यादव का असर सीमांचल के इलाके में बहुत ज्यादा है। वे पूर्णिया से तीन बार और मधेपुरा से दो बार सांसद रहे हैं। निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और राजद तीनों से सांसद रहे हैं। उनकी पत्नी सुपौल से कांग्रेस की सांसद रही हैं। सो, वे पूर्णिया, मधेपुरा, सुपौल, खगड़िया, कटिहार, अररिया और किशनगंज इन सात सीटों पर असर डाल सकते हैं।

उधर पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को एनडीए में जगह नहीं मिली है तो अकेले लड़ने के लिए ताल ठोंक रहे हैं। वे हाजीपुर सीट पर विपक्ष के साझा उम्मीदवार हो सकते हैं। अगर उन्होंने पांच सीटों पर चिराग पासवान को नुकसान पहुंचाने के लिए उम्मीदवार उतारा तो एनडीए को नुकसान होगा। ऐसे ही गठबंधन में ज्यादा पार्टियां होने से एनडीए में सीट बंटवारा उलझा है, इसका भी नुकसान एनडीए को हो सकता है। दूसरी ओर मुकेश सहनी के महागठबंधन के साथ जाने से महागठबंधन को मजबूती मिल सकती है। सो, कह सकते हैं कि दो राज्यों की 54 सीटों पर भाजपा जैसा चाह रही थी उस तरह का माहौल नहीं बन रहा है।

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