nayaindia Loksabha election 2024 पंजाब, केरल में एक जैसी मुश्किल

पंजाब, केरल में एक जैसी मुश्किल

विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ में केरल और पंजाब में एक जैसी समस्या दिख रही है। दोनों राज्यों में तालमेल में मुश्किल आ रही है और उसका कारण यह है कि दोनों जगह सत्तारूढ़ दल और मुख्य विपक्षी दल दोनों विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा हैं। ऐसी किसी और राज्य में नहीं है। इसलिए यह एक वास्तविक समस्या है। अगर सत्तारूढ़ दल और मुख्य विपक्षी पार्टी आपस में मिल जाते हैं या तालमेल कर लेते हैं तो तीसरे और चौथे नंबर की पार्टी के लिए मौका बन जाएगा। विपक्ष का पूरा स्पेस तीसरे नंबर की पार्टी को मिलेगा। इसका सबसे बड़ा नुकसान दूसरे नंबर की पार्टी को यानी मुख्य विपक्षी पार्टी को भुगतना होगा। इन दोनों राज्यों में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस है।

पंजाब में पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीट जीत कर आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस को सिर्फ 18 सीटें मिलीं। उसको 59 सीटों का और 15 फीसदी वोट का नुकसान हुआ। आप को 42 फीसदी और कांग्रेस को 23 फीसदी वोट मिले। यानी दोनों पार्टियों को मिला कर 65 फीसदी वोट मिला। तीसरे नंबर पर अकाली दल रही थी, जिसे 18 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिला था लेकिन सीटें सिर्फ तीन मिली थीं। चौथे नंबर की पार्टी भाजपा को 6.6 फीसदी वोट मिले थे और उसने दो सीटें जीती थीं। अकाली दल और भाजपा का वोट मिला कर 25 फीसदी के करीब होता है। लेकिन अगर लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस का तालमेल होता है तो उनके कॉमन एजेंडे पर 65 फीसदी वोट नहीं मिलेगा। उनको सारी सीटें जीतने लायक वोट हो सकता है मिल जाए लेकिन कांग्रेस अपना वोट गंवा देगी, जिसका उसको विधानसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना होगा। तभी कांग्रेस के नेता तालमेल का विरोध कर रहे हैं और पंजाब में गठबंधन की संभावना कम हो गई है।

यही मुश्किल केरल में है। वहां पिछले विधानसभा चुनाव में लेफ्ट मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के बीच टक्कर हुई थी। सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ को 45 फीसदी और कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे। राज्य के कुल मतदान का 85 फीसदी वोट दोनों गठबंधनों में बंटा था और भाजपा और उसकी सहयोगी भारत धर्म जन सेना को मिला कर 12 फीसदी वोट मिला था। अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन आपस में तालमेल कर लेते हैं तो निश्चित रूप से वे 85 फीसदी वोट नहीं ले पाएंगे। राज्य की सरकार और मुख्य विपक्षी पार्टी का जो भी विरोधी वोट होगा वह भाजपा के साथ जाएगा। उसे सीटें हो सकता है एक भी नहीं मिले लेकिन उसका वोट दोगुने से ज्यादा हो जाएगा और वह केरल की राजनीति में मजबूत तीसरी ताकत बन जाएगी। वहां भी लेफ्ट के साथ जाने का नुकसान कांग्रेस को ही उठाना होगा क्योंकि राज्य की 20 में से 19 लोकसभा सीटें कांग्रेस गठबंधन के पास है। पहले तो उन्हें लेफ्ट के लिए सीटें छोड़नी होंगी और उसके बाद जब विधानसभा चुनाव में दोनों एक दूसरे के खिलाफ लड़ने जाएंगे तो दोनों की साख बिगड़ी हुई होगी। उसमें भी कांग्रेस की साख पर ज्यादा बट्टा लगा होगा। इसलिए वहां भी तालमेल होने की संभावना नहीं है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें