नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जो चुनिंदा मुद्दे उठाए थे उनमें एक काले धन का था। उन्होंने बताया था कि दुनिया में कितना काला धन है और इसी संदर्भ में उन्होंने यह जुमला बोला था कि अगर विदेशों में जमा काला धन भारत वापस आ जाए तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए आ जाएंगे। विपक्ष आज तक इसे दोहराता है। उन्होंने दावा किया था कि उनकी सरकार बनी तो प्राथमिकता के आधार पर काला धन वापस लाएगी और काले धन की अर्थव्यवस्था समाप्त करेगी। हालांकि पिछले 11 साल में विदेश में जमा भारतीयों का धन बढ़ गया है। स्विस बैंक में भी पहले से ज्यादा पैसा जमा हो गया है। हालांकि वह सब काला धन है यह नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही काले धन के प्रति प्रधानमंत्री का नजरिया भी बदल गया है।
अब प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कि भारत में निवेश आना चाहिए चाहे वह काले धन के रूप में ही क्यों न हो। पिछले दिनों गुजरात के अहमदाबाद में मारुति सुजुकी के हंसलपुर संयंत्र में पहली इलेक्ट्रिक वाहन ई विटारा के उद्घाटन के दौरान उन्होंने स्वदेशी की परिभाषा बताते हुए कहा, ‘मेरी स्वदेशी की परिभाषा बहुत सरल है। मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि पैसा किसका है, चाहे वह डॉलर हो, पाउंड हो, या वह पैसा काला हो या गोरा। लेकिन उस पैसे से जो उत्पादन होता है, उसमें मेरे देशवासियों का पसीना होना चाहिए’। जब प्रधानमंत्री ने कह दिया कि पैसा काला हो या गोरा उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है तो फिर काले धन के खिलाफ लड़ाई या ईडी की कार्रवाइयों का क्या मतलब है?