विपक्षी पार्टियां संसद के मानसून सत्र में एकजुट दिख रही हैं और सरकार के लिए मुश्किल भी खड़ी कर रही हैं लेकिन नैरेटिव सेट करने का मुद्दा हर बार की तरह इस बार भी गंवा दिया है। इस बार मौका था कि उप राष्ट्रपति के चुनाव का। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद जैसे ही चुनाव आयोग ने उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की घोषणा की और अधिसूचना जारी की वैसे ही विपक्ष को अपने उम्मीदवार की घोषणा कर देनी चाहिए थी। इस साल बिहार का चुनाव है और अगले साल पांच राज्यों के चुनाव हैं, जिनमें तीन दक्षिण भारत के और दो पूर्वी भारत के हैं। इस हिसाब से विपक्ष अपना उम्मीदवार घोषित करके सत्तापक्ष पर दबाव बना सकता था। लेकिन पता नहीं क्यों विपक्षी पार्टियों ने भाजपा की ओर से उम्मीदवार की घोषणा होने का इंतजार किया। भाजपा ने सहयोगी पार्टियों से राय के आधार पर तमिलनाडु के नेता सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बना दिया।
बताया जा रहा है कि पहले विपक्ष में इस बात की चर्चा चल रही थी कि दक्षिण भारत का कोई उम्मीदवार दिया जाए क्योंकि तीन राज्यों में चुनाव है और दक्षिण का उम्मीदवार देने से भाजपा के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू पर दबाव बनेगा तो साथ ही अन्ना डीएमके पर भी दवाब बनेगा। ध्यान रहे विपक्षी पार्टियों को पता है कि उनका उम्मीदवार चुनाव नहीं जीतेगा, चाहे जिसे उम्मीदवार बनाया जाए। इसका मतलब है कि उम्मीदवार के नाम, उसकी जाति और उसके क्षेत्र के हिसाब से राजनीति साधने की कोशिश होनी है। ऐसे में विपक्ष अगर पहले उम्मीदवार घोषित करता तो उसका अलग मैसेज जाता। यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि क्षेत्रीय आधार पर अगर एकाध पार्टियां विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन भी कर दें तब भी उसका उम्मीदवार नहीं जीतेगा। तभी सत्तापक्ष के उम्मीदवार का इंतजार करने का कोई अर्थ समझ में नहीं आता है।
अब सवाल है कि विपक्ष क्या करेगा? क्या विपक्ष भी दक्षिण भारत से उम्मीदवार उतारेगा या कोई नया दांव चलेगा? दक्षिण भारत के उम्मीदवार की चर्चा इसलिए है क्योंकि राधाकृष्णन की दावेदारी से एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके पर दबाव बना है। आखिरी बार तमिलनाडु से एपीजे अब्दुल कलाम को भाजपा ने ही राष्ट्रपति बनाया था। तब डीएमके भाजपा के साथ थी। अब फिर तमिलनाडु का उप राष्ट्रपति बनाने का दांव भाजपा ने चला है तो डीएमके उनका विरोध नहीं कर सकती है। अब सिर्फ दो विकल्प हैं या तो विपक्ष भी तमिलनाडु से ही उम्मीदवार उतारे या फिर स्टालिन की पार्टी भाजपा उम्मीदवार को वोट दे। तभी तमिलनाडु के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की बजाय विपक्ष को अब बिहार से उम्मीदवार बनाना चाहिए। बिहार से किसी अति पिछड़ी जाति के किसी दलित को अगर उम्मीदवार बनाया जाता है तो नीतीश कुमार के साथ साथ भाजपा के सहयोगी भी दबाव में आएंगे। चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा पर भी दबाव बनेगा। हालांकि विपक्ष का उम्मीदवार तब भी जीत नहीं पाएगा लेकिन बिहार में सोशल इंजीनियरिंग का मैसेज बनेगा। विपक्षी पार्टियां बहुजन की राजनीति का श्रेय लेंगी। हालांकि राधाकृष्णन भी पिछड़ी जाति के हैं लेकिन बिहार से किसी अति पिछड़ा या दलित को उम्मीदवार बनाने का अलग असर होगा और वह असर बिहार के साथ साथ पश्चिम बंगाल और असम में भी काम आएगा। कहा जा रहा है कि विपक्ष किसी अराजनीतिक व्यक्ति को उम्मीदवार बना सकती है। अराजनीतिक व्यक्ति भी बिहार, बंगाल या असम का हो तो विपक्ष की राजनीति कुछ सधेगी।