प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के साढ़े 11 हजार प्रतिनिधियों के सामने कमाल की बात कही, जो अगले दिन यानी सोमवार को सभी अखबारों में हेडलाइन बनी। उन्होंने कहा कि सारी दुनिया ने मान लिया है कि मोदी की ही सरकार बनने वाली है इसलिए जुलाई, अगस्त के महीने में विदेश दौरे के निमंत्रण मिल रहे हैं। यह उसी तरह का आधा सच और आधा झूठ है, जैसा महाभारत की लड़ाई के दौरान द्रोणाचार्य के सामने उनके बेटे अश्वथमा के मारे जाने को लेकर युधिष्ठिर ने बोला था। अपने तीसरे कार्यकाल का नैरेटिव से करने के लिए इस तरह के अर्ध सत्य प्रधानमंत्री लगातार बोल रहे है। पिछले दिनों उन्होंने संसद में दिए मल्लिकार्जुन खड़गे के एक बयान को लेकर पूरे देश में ऐसी हवा बनाई, जैसे खड़गे ने कहा हो कि भाजपा को चार सौ सीट मिलने जा रही हैं। हकीकत यह है कि उन्होंने अबकी बार चार सौ पार के भाजपा के नारे पर तंज किया था और कहा था कि विपक्ष इस बार भाजपा को सौ पर रोक देगा।
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बहरहाल, प्रधानमंत्री ने भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में जो कहा उसमें इतना ही सच है कि भारत को दुनिया भर के देशों से निमंत्रण मिल रहे हैं। यह सही है कि क्योंकि वैश्विक कार्यक्रम महीनों पहले तय होते हैं और देशों के प्रधानमंत्रियों व राष्ट्रपतियों को उसका न्योता जाता है। लेकिन यह न्योता नरेंद्र मोदी को नहीं आ रहा है। यह न्योता भारत के प्रधानमंत्री को आ रहा है। प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी रहें या रामलाल जी रहे हैं, जो पद पर होगा वह उस न्योता पर विदेश दौरे पर जाएगा। मिसाल के तौर पर हर साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक होती है, जिसमें दो सौ देशों के राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष हिस्सा लेते हैं। इसका न्योता कई महीने पहले हर देश को जाता है। इसी तरह 18-19 नवंबर को इस साल ब्राजील में जी-20 की बैठक होनी है। उसका भी न्योता सदस्य देशों को कई महीने पहले जाएगा। ऐसे ही ब्रिक्स और आसियान सम्मेलन अक्टूबर में क्रमशः रूस और ऑस्ट्रेलिया में होंगे। इन सबका न्योता महीनों पहले जाता है और सम्मेलन के समय जो प्रधानमंत्री होता है वह उस देश का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्विक सम्मेलनों या दोपक्षीय वार्ताओं का न्योता किसी नेता या पार्टी को नहीं मिलता है, बल्कि देश को, सरकार को, प्रधानमंत्री को मिलता है।