प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी बॉन्ड का बचाव किया है। उन्होंने कहा है कि इसे राजनीति में काला धन रोकने के लिए लाया गया था। हालांकि इसके जो आंकड़े सामने आए हैं उनसे पता चला है कि कितनी ही कंपनियां सिर्फ बॉन्ड खरीद कर चंदा देने के लिए बनीं। तीन साल से कम पुरानी कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करके चंदा दिया। कई कंपनियों ने अपने मुनाफे के सौ गुना तक चंदा दिया।
कई घाटे में चल रही कंपनियों ने भी मोटा चंदा दिया। यह भी खबर आई कि कई सौ करोड़ के बॉन्ड किसने खरीदे यह पता ही नहीं है। एक रिपोर्ट यह भी थी कि कुछ किसानों ने मुआवजे के कागज पर दस्तखत कराए गए और उनके नाम पर चुनावी बॉन्ड खरीद लिए गए। इन खबरों से चुनावी बॉन्ड में काले धन का खूब इस्तेमाल होने के संकेत मिलते हैं।
लेकिन इससे ज्यादा दिलचस्प तर्क यह था कि इस कानून की वजह से लोग चंदा देने वालों को जान पा रहे हैं। यह बात खुद प्रधानमंत्री ने अपने इंटरव्यू में कही है। सोचें, इस कानून में प्रावधान किया गया था कि चंदा देने वालों के बारे में किसी को जानकारी नहीं दी जाएगी। जब इसको चुनौती दी गई तो केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत में कहा कि जनता को यह जानने का हक नहीं है कि किस पार्टी को किसने चंदा दिया।
अदालत में सरकार ने हर तरह से इसकी गोपनीयता बनाए रखने का प्रयास किया लेकिन जब अदालत के फैसले से सब कुछ सार्वजनिक हो गया तो प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि इस कानून की वजह से लोग चंदा देने वालों को जान पा रहे हैं। असलियत यह है कि कानून की वजह से नहीं, बल्कि अदालत के फैसले की वजह से लोग चंदा देने वालों की हकीकत जान पा रहे हैं।