कांस्टीट्यूशन क्लब के सेक्रेटरी एडमिनिस्ट्रेशन का चुनाव भाजपा के सांसद राजीव प्रताप रूड़ी जीत गए। दो दशक बाद भी क्लब पर उनका कब्जा बरकरार रहा। उन्होंने भाजपा के ही पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को एक सौ से ज्यादा वोट से हराया। सोचें, सात सौ से कम वोट पड़े थे और उसमें वे एक सौ से अधिक वोट से जीते, जबकि बालियान को सत्ता का उम्मीदवार माना जा रहा था। कांस्टीट्यूशन क्लब का चुनाव इससे पहले कभी भी राष्ट्रीय महत्व का नहीं बना था। यहां तक कि इसकी चर्चा भी आम नहीं होती थी। चुपचाप चुनाव होते थे और रूड़ी जीत जाते थे क्योंकि पिछले दो दशक से इस क्लब की कायापलट का काम वे कर रहे हैं। लेकिन इस बार यह चुनाव भाजपा बनाम भाजपा हो गया।
चुनाव के लिए जब संजीव बालियान ने नामांकन किया तो कहा गया कि वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उम्मीदवार हैं। कहा गया कि यह चुनाव पुरानी यानी अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी और नई भाजपा यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच है। तभी नतीजों को बाद कहा गया कि रूड़ी ने बालियान को नहीं, बल्कि अमित शाह को हराया। नई भाजपा को हरा कर पुरानी भाजपा जीती है। हालांकि इसका भाजपा के अंदर रूड़ी के राजनीतिक करियर पर क्या असर होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता है लेकिन इतना तय है कि जिस तरह से यह चुनाव लड़ा गया और उनको हराने का प्रयास हुआ, उसमें उनकी जीत से उनका कद बढ़ा है।
सोचें, उनको हराने के लिए भाजपा के सारे दिग्गज नेता वोट डालने आए। खुद अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा वोट डालने पहुंचे। तमाम केंद्रीय मंत्रियों ने वोट किया। आंध्र प्रदेश के सीएम रमेश और झारखंड के निशिकांत दुबे खुल कर प्रचार कर रहे थे। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक प्रबंधन हो रहा था। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के नाम पर सांसदों को फोन करके बालियान को वोट डालने के लिए कहा जा रहा था। निशिकांत दुबे ने वोटिंग से पहले मीडिया में बयान दिया कि यह क्लब सांसदों, पूर्व सांसदों और उनके परिवार के लिए है, लेकिन इसे आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, पायलटों और दलालों का बना दिया गया है। यह रूड़ी के ऊपर बड़ा हमला था। लेकिन रूड़ी ने बहुत संयम और शालीनता से चुनाव लड़ा।
एक तरफ भाजपा के तमाम दिग्गज नेता बालियान के लिए वोट डालने पहुंचे तो दूसरी ओर कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के नेता रूड़ी को वोट डालने पहुंचे। खुद सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांस्टीट्यूशन क्लब जाकर वोट डाला। कह सकते हैं कि रूड़ी विपक्षी उम्मीदवार हो गए थे। यहां तक कहा जा रहा है कि राहुल गांधी परदे के पीछे से उनके लिए प्रबंधन कर रहे थे। लेकिन वे सिर्फ विपक्षी वोट से नहीं जीते। तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी जैसे नेता महुआ मोइत्रा की वजह से रूड़ी का विरोध कर रहे थे। यह भी खबर है कि बिहार से होने के बावजूद तृणमूल सांसद कीर्ति आजाद भी रूड़ी का विरोध कर रहे थे। बिहार लॉबी में विभाजन था तो प्रतिष्ठा की लड़ाई के बावजूद ठाकुर भी बंटे हुए थे। राजनाथ सिंह वोट डालने नहीं पहुंचे, जिनके बारे में कहा जा रहा था कि वे रूड़ी का समर्थन करेंगे। इससे रूड़ी समर्थक निराश भी हुए। दूसरी ओर बालियान के सैकड़ों समर्थक फूल और माला लेकर पहुंचे थे क्योंकि उनको लग रहा था कि जब अमित शाह का समर्थन है तो बालियान ही जीतेंगे। लेकिन रूड़ी ने बालियान को हरा दिया। यह छोटा चुनाव था लेकिन इस नतीजे का बड़ा राजनीतिक संदेश है और वह संदेश दूर तक जाएगा।