राजधानी दिल्ली और एनसीआर के इलाके में एक नया संघर्ष शुरू हो गया है। पहले प्रदूषण के खिलाफ जंग होती थी। लेकिन अब प्रदूषण का सही डाटा हासिल करने की लड़ाई चल रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी या सेंट्रल एयर क्वालिटी मैनेजमेंट यानी सीएक्यूएम की ओर से जो डाटा दिया जा रहा है उस पर किसी को भरोसा नहीं हो रहा है। तभी खुद सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि सरकार बताए कि वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई मापने का क्या तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है और यह कितना सही है। जब इस बात की सुनवाई हो रही थी तब सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्ति एमिकस क्यूरी यानी अदालत मित्र अपराजिता सिंह ने कई ऐसी बातें बताईं, जिनके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया।
अपराजिता सिंह ने अखबारों में छपी खबरों के आधार पर बताया कि दिल्ली सरकार ऐसी जगहों पर पानी का छिड़काव नियमित रूप से करा रही है, जहां वायु गुणवत्ता मापने के केंद्र हैं। ऐसी जगहों पर पानी का छिड़काव करने से एक्यूआई कम आ रहा है। इसी तरह बहुत सारे मोनिटरिंग सेंटर्स के बंद होने की खबरें भी हैं। यह आरोप भी लगा है कि सरकार पीक ऑवर के डाटा को आकलन में शामिल नहीं कर रही है, जिससे औसत आंकड़ा कम हो जा रहा है। दिवाली के अगले दिन भी ऐसा ही हुआ था। बताया जा रहा है कि वायु गुणवत्ता की माप लेने वाली निजी एजेंसियों का एक्यूआई का आंकड़ा बहुत ज्यादा हो रहा है, जबकि सरकारी आंकड़ा बहुत कम हो रहा है।


