अमेरिका की प्रतिष्ठित ‘टाइम’ पत्रिका ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली एक सौ लोगों की सूची प्रकाशित की है। इस साल की सूची में भारत का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं है। पिछले 21 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी भारतीय को ‘टाइम’ पत्रिका के सौ सबसे शक्तिशाली लोगों की सूची में जगह नहीं मिली है। सोचें, इस सूची में अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, चीन के राष्ट्रपति हैं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और मेक्सिको के राष्ट्रपति भी हैं। यहां तक कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस भी इस सूची में हैं।
लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो अमेरिका के एक शहर से निकलने वाली पत्रिका ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ की सूची में हर साल सबसे ज्यादा लोकप्रियता रेटिंग वाले नेता बनते हैं उनको जगह नहीं मिली। ‘टाइम’ पत्रिका ने 2021 में आखिरी बार प्रधानमंत्री मोदी को शक्तिशाली लोगों की सूची में शामिल किया था।
भारत की वैश्विक स्थिति: डंका या नकारात्मक धारणा?
उसके बाद उन्होंने 2023 में जी 20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया, 2024 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बन कर रिकॉर्ड बनाया, रूस व यूक्रेन युद्ध समाप्त कराने की पहल के लिए व्लादिमीर पुतिन ने उनको धन्यवाद दिया, वे नोबल पुरस्कार के लिए मनोनीत हुए और अमेरिका जाकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कारोबारी इलॉन मस्क से भी मिले लेकिन ‘टाइम’ पत्रिका ने इन सबको महत्व ही नहीं दिया। लगातार चार साल से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे बड़ी आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री को ‘टाइम’ की सूची में जगह नहीं मिल पा रही है।
सोचे, पिछले कई बरसों से देश में यह नैरेटिव चल रहा है कि, ‘दुनिया में भारत का डंका बज रहा है’ जबकि के ‘टाइम’ की सूची में अब प्रधानमंत्री को भी जगह नहीं है। ऐसा लग रहा है कि कथित डंके की आवाज धीमी पड़ती जा रही है। हाल के दिनों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे लगा है कि दुनिया के देशों में भारत के प्रति नजरिया बदल रहा है।
कह सकते हैं कि विश्व बिरादरी में भारत के प्रति नकारात्मक धारणा बन रही है। यह बात इस तथ्य से भी समझ में आ रही है कि अब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता को लगभग हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करके या बयान जारी करके दुनिया के किसी न किसी देश की किसी न किसी बात का खंडन करना पड़ रहा है। कभी अमेरिका की किसी एजेंसी की रिपोर्ट को खारिज किया जा रहा है तो कभी पाकिस्तान के सेना प्रमुख की बात का जवाब दिया जा रहा है तो कभी बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुखिया के प्रेस सचिव के बयान का खंडन करना पड़ रहा है।
उधर भारत के पासपोर्ट की रैंकिंग गिरने का सिलसिला जारी है। 2025 के हेनली पासपोर्ट रैंकिंग में भारत 85वें स्थान पर है, जो 2024 में 80वें स्थान पर था। सोचें, 84 छोटे बड़े देशों के पासपोर्ट की स्थिति भारत से मजबूत है। उन देशों में भी क्या मीडिया अपने प्रधानमंत्री का वैसे ही डंका बजा रहा होगा, जैसे भारत में बज रहा है?
मालदीव और नेपाल जैसे पड़ोसी देश पहली विदेश यात्रा पर भारत आने की परंपरा तोड़ कर पहली विदेश यात्रा पर चीन गए। ऐसा लग रहा है कि हर वैश्विक परिघटना पर चुप्पी रखने, हर मामले में कूटनीतिक रूप से सही होने वाले बयान देने, पड़ोसी देशों के बीच अलग थलग होने और देश में आर्थिक सुस्ती व टकराव की वजह से दुनिया के देशों की धारणा बदल रही है।
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