पिछले कुछ दिनों से यह राजनीति देखने को मिल रही है कि भाजपा विरोधी पार्टियों की सरकारें विधानसभा में किस्म किस्म के प्रस्ताव पास कर रही हैं। ऐसे मामलों में विधानसभा से प्रस्ताव पास किए जा रहे हैं, जो सीधे तौर पर राज्य सरकारों से नहीं जुड़े हैं।
राज्य सूची से बाहर के विषयों पर भी अगर केंद्र सरकार ने कोई कानून बनाया है और राज्यों को उस पर आपत्ति है तो उस कानून के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास कर दिया जा रहा है। हालांकि इन प्रस्तावों से केंद्र सरकार के कानून पर कोई असर नहीं हो रहा है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि राजनीतिक स्तर पर विरोध प्रकट करने के साथ साथ अब पार्टियां राज्य सरकार की ओर से भी केंद्र के विरोध का मैसेज दे रही हैं।
किसी को पता नहीं था कि बिल में क्या है। सरकार ने उसे अभी तक संसद में पेश भी नहीं किया है। फिर भी एमके स्टालिन सरकार ने विधानसभा में उसके खिलाफ प्रस्ताव पास करा दिया। ऐसे ही उससे पहले तेलंगाना विधानसभा में परिसीमन के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया। सोचें, अभी तक परिसीमन की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
सबको पता है कि जनगणना के बाद ही परिसीमन का काम होगा। लेकिन तेलंगाना से लेकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु की विधानसभा में उसके खिलाफ प्रस्ताव पास किया जा रहा है।
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