यह लाख टके का सवाल है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव क्यों रूका है? अभी तो कहा जा रहा है कि पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर की वजह से चुनाव टल गया है। अगले महीने केंद्र सरकार के एक साल पूरे हो रहे हैं और इसके साथ ही जेपी नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए भी एक साल हो जाएंगे। उससे पहले उनको छह महीने का कार्यकाल विस्तार मिला था। उसके बाद से ही किसी न किसी बहाने चुनाव टल रहा है और अब यह यक्ष प्रश्न बन गया है कि प्रदेशों में भाजपा संगठन का चुनाव नहीं हो पा रहा है इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टल रहा है या राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है इसलिए प्रदेशों में चुनाव संपन्न नहीं कराए जा रहे हैं? कहा जा रहा है कि प्रदेशों में चुनाव हो जाएगा उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव टालना संभव नहीं होगा। इसलिए वहां चुनाव रोका गया है।
अगर ऐसा तो फिर सवाल है कि ऐसी क्या मुश्किल हो गई है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति ही नहीं बन पा रही है? नितिन गडकरी से लेकर राजनाथ सिंह और अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक अध्यक्ष चुनने में भाजपा को कभी भी परेशानी नहीं हुई। इस बार ऐसा क्या हो रहा है कि नाम ही तय नहीं हो पा रहा है? इस बात में ज्यादा दम नहीं लग रहा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ चाहता है कि शिवराज सिंह चौहान राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें और नरेंद्र मोदी व अमित शाह ऐसा नहीं चाहते हैं इसलिए फैसला अटका है। इस बीच मनोहर लाल खट्टर से लेकर धर्मेंद्र प्रधान और सुनील बंसल तक के नाम की चर्चा चल रही है। ऐसा लग रहा है कि भाजपा का नेतृत्व अध्यक्ष पद और उसके चुनाव को एक साधारण परिघटना बनाने में लगा हुआ है। अभी तक यह एक बड़ा इवेंट होता था, जिसमें संघ की भूमिका और दूसरी कई चीजों की चर्चा होती है। पिछले एक साल में कामचलाऊ अध्यक्ष रख कर अध्यक्ष के चुनाव को एक साधारण या गैर जरूर इवेंट बना दिया गया है।