यह लाख टके का सवाल है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग अलग फील्ड के विशेषज्ञों को लैटरल एंट्री के जरिए लाकर केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव बनाना शुरू किया तो उस प्रक्रिया को क्यों रोक दिया गया? पिछले साल आखिरी बार इसकी वैकेंसी निकली थी लेकिन आननफानन में उसे वापस ले लिया गया। पिछले दिनों इसे लेकर सांसदों ने कुछ सवाल पूछे थे, जिनके जवाब में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि लैटरल एंट्री से होने वाली नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। तभी सवाल है कि क्या इसी वजह से यह प्रक्रिया रोक दी गई? क्या केंद्र सरकार को सोशल मीडिया में बन रहे नैरेटिव की चिंता थी और आरक्षण विरोधी ठहराए जाने की चिंता में उसने इसे रोक दिया?
केंद्र में इस योजना के शुरू होने का श्रेय प्रशांत किशोर लेते हैं। उन्होंने कहा है कि उनकी सलाह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह योजना शुरू की थी। वे दावा कर रहे हैं कि बिहार में उनकी सरकार बनी तो वे लैटरल एंट्री के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को बहाल करेंगे और बिहार की नौकरशाही की नकेल कसेंगे। ध्यान रहे इस देश में जो भी बड़ा बदलाव हुआ है वह नॉन आईएएस यानी लैटरल एंट्री वालों ने किया है। हरित क्रांति एमएस स्वामीनाथन ने की तो दूध की श्वेत क्रांति जॉर्ज कुरियन ने की थी। अंतरिक्ष की क्रांति विक्रम साराभाई ने तो एटॉमिक क्रांति होमी जहांगीर भाभा ने की। मिसाइल की क्रांति एपीजे अब्दुल कलाम ने तो संचार क्रांति सैम पित्रोदा ने की। जरुरत ऐसे लोगों को खोजने की है। लैटरल एंट्री के जरिए भाई भतीजों की भर्ती होगी तो कुछ नहीं हो पाएगा।