राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

कंपनियां क्या उपभोक्ताओं को लाभ देंगी?

जीएसटी लागू होने के आठ साल बाद आखिरकार सरकार ने इसकी दरों को तर्कसंगत बनाने और आम उपभोक्ताओं पर से टैक्स का बोझ करने का एक कदम उठाया है। केंद्र और राज्यों की सरकारों ने मिल कर जीएसटी काउंसिल की बैठक में जीएसटी के दो स्लैब खत्म करने और रोजमर्रा की जरुरत की ज्यादातर चीजों को शून्य या पांच फीसदी टैक्स स्लैब में लाने का बड़ा फैसला किया। सरकार ने जीवन और स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम पर लगने वाले टैक्स खत्म कर दिया। इस पर 18 फीसदी टैक्स लगता था। लेकिन सवाल है कि क्या भारत में उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां, कार और व्हाइट गुड्स मतलब टीवी, मोनिटर आदि बनाने वाली कंपनियां और बीमा कंपनियां आम लोगों को इसका लाभ देंगी? अगर लाभ देंगी तो कितना? अगर सरकार ने टैक्स में सात फीसदी, 10 फीसदी या 18 फीसदी की कटौती कर दी तो उसका पूरा लाभ यानी उतने ही फीसदी का लाभ आम लोगों को मिलेगा?

यह बहुत जटिल सवाल है लेकिन कम से कम अभी ऐसा लग रहा है कि कंपनियां पूरा लाभ आम उपभोक्ताओं को ट्रांसफर नहीं करेंगी। इसको लेकर पहले से आशंका जताई जाने लगी है। तभी कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज यानी सीआईआई को अपील करनी पड़ी है कि कंपनियां टैक्स कटौती का लाभ आम लोगों तक पहुंचाएं। अगर कंपनियों ने आम लोगों तक इसका लाभ नहीं पहुंचाया तो जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाने की सारी कवायद विफल हो जाएगी। यह भी याद दिलाया जा रहा है कि कैसे रिजर्व बैंक के बार बार नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के बावजूद बैंक उसका पूरा लाभ आम लोगों को नहीं देते हैं। केंद्रीय बैंक रेपो रेट में एक फीसदी की कटौती कर चुका है लेकिन क्या बैंकों ने आम लोगों के आवास और वाहन लोन की ब्याज दरों में एक फीसदी की कटौती की है? तभी जीएसटी के मामले में भी यह आशंका है कि कंपनियां जीएसटी की दरों में कटौती के आधे के बराबर भी लाभ शायद ही आम लोगों को पहुंचाएं।

कंपनियों ने इसके लिए बहानेबाजी भी शुरू कर दी है। ध्यान रहे कंपनियां जब जीएसटी चुकाती हैं तो उसका एक निश्चित हिस्सा उनको इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में वापस में मिला जाता है। मिसाल के तौर पर सरकार को अगर एक महीने में दो लाख करोड़ रुपए की जीएसटी मिली तो औसतन 20 हजार करोड़ या उससे कुछ ज्यादा का मासिक रिफंड होता है। कंपनियां इस रिफंड की रकम का भार उपभोक्ताओं पर डालेंगी। तभी स्वास्थ्य व जीवन बीमा के प्रीमियम पर टैक्स जीरो किए जाने का कंपनियां विरोध कर रही थीं। उनका कहना था कि उनको इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा, जिससे उनका संचालन खर्च बढ़ जाएगा और वे इसका पूरा लाभ ग्राहकों को नहीं दे पाएंगे। यह समस्या सभी कंपनियों ने बतानी शुरू कर दी। इससे ऐसा लग रहा है कि सरकार के फैसले का कुछ लाभ तो आम लोगों को होगा लेकिन अगर आम लोग यह हिसाब लगा रहे हैं कि सरकार ने छोटी कारों की कीमत में 10 फीसदी की कटौती कर दी है तो कारों की कीमत 10 फीसदी कम हो जाएगी यानी 10 लाख की कार नौ लाख की हो जाएगी तो यह गलतफहमी है। सरकार ने जितने प्रतिशत की कटौती की है उसके आधे के बराबर भी कंपनियां लाभ दे दें तो बड़ी बात होगी। इनपुट टैक्स क्रेडिट के नाम पर तो लाभ कम होंगे ही, तय मानें कि कंपनियां अपने उत्पादों की कीमत भी बढ़ाएंगी। उनको लग रहा कि दशहरा, दिवाली, छठ, भाईदूज का त्योहार है और ऊपर से जीएसटी कटौती के नाम पर सरकार की ओर से डबल दिवाली का हल्ला मचाया गया है। इसलिए ग्राहक बाजार में आएंगे।

Tags :

By NI Political Desk

Get insights from the Nayaindia Political Desk, offering in-depth analysis, updates, and breaking news on Indian politics. From government policies to election coverage, we keep you informed on key political developments shaping the nation.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *