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बिहार में छोटी पार्टियों का महत्व

बिहार एक बार फिर छोटी पार्टियों का महत्व बढ़ गया है। जब भाजपा और जदयू एक साथ होते हैं तो छोटी पार्टियों को खास महत्व नहीं मिलता है। लेकिन जब दोनों का तालमेल खत्म होता है तो छोटी पार्टियां अहम हो जाती हैं।

पिछले साल अगस्त में जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ा था और राजद के साथ मिल कर सरकार बनाई थी। उसके बाद से नया ध्रुवीकरण शुरू हो गया है। नई पार्टियां भी बनने लगी हैं और सारी बड़ी पार्टियां छोटी पार्टियों के नेताओं को लुभाने की कोशिश में लग गए हैं। राजद और जदयू गठबंधन के नेता नहीं चाहते हैं कि उनके साथ जुड़ी कोई भी पार्टी गठबंध छोड़े तो दूसरी ओर भाजपा अपना गठबंधन बना रही है, जिसमें वह राजद और जदयू गठबंधन की कुछ पार्टियों को लाना चाहती है।

इस समय लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों खेमे यानी चिराग पासवान और पशुपति पारस का खेमा भाजपा के साथ जुड़ा है। इसके अलावा हाल ही में जदयू से अलग होकर राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी भाजपा के संपर्क में हैं। अब भाजपा की नजर महागठबंधन यानी राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन की दो पार्टियों पर है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के साथ भाजपा नेताओं की बात हो रही है। कुछ दिन पहले ही मुकेश सहनी को वाई प्लस सुरक्षा मिली है। हालांकि मांझी ने रामचरित मानस पर विवादित बयान देकर भाजपा नेताओं को नाराज किया है पर माना जा रहा है कि वे मोलभाव की अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं।

सो, कुशवाहा, चिराग, पारस, मांझी और सहनी ये पांच नेता हैं, जिनको अपना महत्व समझ में आया है और ये नेता मोलभाव कर रहे हैं। दूसरी ओर महागठबंधन में शामिल तीन कम्युनिस्ट पार्टियां भी ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाए हुए हैं तो कांग्रेस भी चेतावनी दे रही है।

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