इस समय तो आतंक भी कूटनीति !
अजीब समय है। ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब आतंकवाद दुनिया की सबसे बड़ी चिंता थी। “वॉर ऑन टेरर” में हर देश की हिस्सेदारी थी। न्यूयॉर्क से लेकर मुंबई तक हर हमला इस बात को फिर से पक्का करता था कि आतंक बुराई है और दुनिया इसके ख़िलाफ़ एकजुट है। दुश्मन को एक धार्मिक पहचान भी दी गई — उसे कहा गया “इस्लामिक आतंकवाद।” तब बताया गया था कि यही इस सदी का निर्णायक युद्ध है — वह संघर्ष जो हमारे युग की पहचान बनेगा। लेकिन इक्कीसवीं सदी, जिसकी स्मृति छोटी और थकान लंबी है, अब पूरा चक्र घूम चुकी...