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19-07-2025 Vol 19

कूटनीति में क्यों झूठा बना रहना?

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कूटनीति तो और भी देश करते हैं। अमेरिका, चीन और रूस भी कूटनीति करते हैं। नाटो के देश भी कूटनीति करते हैं। लेकिन सब नाम लेकर देशों के बारे में अपनी बात कहते हैं। सिर्फ दोस्त बताने के लिए नहीं, बल्कि हमला करने के लिए भी वे देशों और नेताओं के नाम लेते हैं। हाल ही में नाटो के प्रमुख मार्क रूटे ने रूस के साथ कारोबार करने वाले देशों पर सौ फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी तो भारत, चीन और ब्राजील का नाम लिया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाम लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का दावा किया। नाम लेकर कहा कि इंडोनेशिया से जीरो टैरिफ का करार हुआ है और भारत के साथ भी ऐसा ही करार होगा। वे नाम लेकर यूक्रेन और रूस की बात करते हैं, ईरान और इजराइल की बात करते हैं, भारत और पाकिस्तान की बात करते हैं लेकिन भारत का कोई नेता न ट्रंप का नाम लेता है, न शी जिनफिंग का नाम लेता है और न मार्क रूटे का नाम लेता है।

क्या यह कूटनीति सिर्फ भारत को आती है कि किसी का नाम मत लो, इशारों में अपनी बात कहो? नाटो के प्रमुख मार्क रूटे ने भारत, चीन और ब्राजील पर सौ फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी, जिसके जवाब में भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत को अपने हित पता हैं और दोहरा मापदंड नहीं चलेगा। पहले तो रूटे की बात का जवाब विदेश मंत्री को देना चाहिए था। दूसरे, यह बताना चाहिए था कि दोहरा मापदंड क्या है? क्या यह सचाई नहीं है कि भारत रूस से तेल खरीदता है और उसे रिफाइन करने के बाद यूरोप के देशों को ही बेचता है? फिर यह बात बताने में क्या समस्या है? जिस सौदे को लेकर भारत पर टैरिफ लगाने की बात हो रही है उसका लाभार्थी यूरोप भी है। लेकिन इसकी बजाय भारत की ओर से कूटनीतिक भाषा में इशारा किया जा गया।

यही स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मामले में है। उन्होंने कहा है कि इंडोनेशिया के साथ जीरो टैरिफ पर समझौता हुआ है यानी अमेरिकी सामानों पर इंडोनेशिया जीरो टैक्स लगाएगा। इसके बाद उन्होंने दावा किया कि भारत के साथ भी इसी तरह का समझौता होगा। इसके जवाब में भारत की ओर से सिर्फ इतना कहा गया कि इंतजार कीजिए। इसमें क्या इंतजार करने वाली बात है? क्या ट्रंप की तरह भारत भी सीधे नहीं कह सकता है कि कोई जीरो टैरिफ का समझौता नहीं होने जा रहा है। वैसे भी यह समझौता नहीं हो सकता है कि अमेरिका हर हाल में 10 फीसदी बेसलाइन टैरिफ लगाएगा और भारत जीरो टैरिफ कर दे! लेकिन भारत की ओर से यह नहीं कहा जाएगा।

ऐसे ही राष्ट्रपति ट्रंप ने 20 बार से ज्यादा कहा है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार रोकने और टैरिफ लगाने की धमकी देकर सीजफायर कराया। लेकिन क्या मजाल जो भारत एक बार भी कह दे कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं। भारत ने हर बार इशारों में कहा कि सीजफायर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता हुई थी और व्यापार की कोई बात नहीं हुई थी। प्रधानमंत्री भी जी 7 देशों के सम्मेलन में बोले तो इतना ही कहा कि पाकिस्तान के कहने पर सीजफायर की वार्ता हुई थी और सीजफायर हुआ था। उनसे भी यह कहते नहीं बना कि अमेरिका के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों का दावा गलत है।

यही हाल चीन के मामले में है। चीन ने भारत पर व्यापार पाबंदियां लगाई हैं और टैरिफ बढ़ाया है। उसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान खुल कर पाकिस्तान की मदद की। यह बात भारतीय सेना के कई अधिकारियों ने भी बताई है। फिर भी भारत की ओर से चीन का नाम नहीं लिया जा रहा है। इतना होने के बावजूद भारत के रक्षा मंत्री शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक के लिए किंगदाओ गए और विदेश मंत्री भी एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने के लिए तियानजिन गए। विदेश मंत्री एस जय़शंकर की तो चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार के साथ तस्वीरें आईं। उन्होंने बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग के साथ तस्वीरें खिंचवाईं और बड़े गर्व से उसे सोशल मीडिया में जारी किया गया। एससीओ की इन दोनों बैठकों से भारत को कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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