भारतीय सेना की कार्रवाई बहुत कामयाब रही। सेना ने छह और सात मई की दरम्यानी रात को पाकिस्तान की सरजमीं पर स्थित आतंकवादी ठिकानों को बड़े सटीक तरीके से निशाना बनाया और उनको तबाह कर दिया। इतना ही नहीं पाकिस्तान की ओर से किए गए सारे हमलों को नाकाम कर दिया। 10 मई की शाम को हुए सीजफायर का उल्लंघन करके जब पाकिस्तान ने फायरिंग की तो भारतीय सेना ने उन तमाम चौकियों को मिट्टी में मिला दिया, जहां से फायरिंग हुई थी।
सो, कह सकते हैं कि भारत का सैन्य अभियान बहुत कामयाब रहा। लेकिन भारत की कूटनीति कामयाब नहीं रही है। अब भारत एक और कूटनीति कर रहा है। दुनिया भर के देशों में अपना डेलिगेशन भेज रहा है ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बताने के लिए। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कूटनीति में भारत को कितनी कामयाबी मिलती है?
कूटनीति में भारत की परीक्षा बाकी
अभी तक की स्थिति तो यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के विरोध के बावजूद पाकिस्तान को करीब 12 हजार करोड़ रुपए का कर्ज मिला। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की तस्वीर साझा करके पूछा कि इटली के साथ इतने नजदीकी संबंध हैं तो इटली को भारत क्यों नहीं तैयार कर सका कि वह आईएमएफ में पाकिस्तान को कर्ज देने के खिलाफ वोट करे? पाकिस्तान को कर्ज देने के खिलाफ भारत ने भी वोट नहीं किया।
भारत ने बहिष्कार किया। ऐसे ही कूटनीतिक हलके में यह सवाल उठ रहा है कि अगर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्यापार करने की धमकी देकर भारत की सैन्य कार्रवाई रोक रहे हैं तो सचमुच युद्ध छिड़ जाने के बाद वे किस तरह से ब्लैकमेल कर सकते हैं! क्या अमेरिका के राष्ट्रपति युद्ध रूकवाने के लिए यह धमकी दे सकते हैं कि वे हथियार नहीं देंगे या अपने हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने देंगे?
यह भले अभी कल्पना लग रही है लेकिन भारत को ऐसी भी किसी चुनौती के लिए तैयार रहना चाहिए। आखिर पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की से ट्रंप परिवार के हित जुड़ने की खबरें आ रही हैं।
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