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21-07-2025 Vol 19

बड़ी, पर अधूरी कामयाबी

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टीआरएफ या लश्कर-ए-तैयबा के कुछ ठिकानों को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने निशाना बनाया। लेकिन उनके समर्थन का पूरा तंत्र नष्ट हो गया है, यह नहीं कहा जा सकता। जब तक यह नहीं होता, हर कामयाबी अधूरी मानी जाएगी।

आतंकवादी संगठन ‘द रेजिस्टैंस फोर्स’ (टीआरएफ) को ‘विदेशी दहशतगर्द संगठनों’ और ‘खास तौर पर चिह्नित वैश्विक आतंकवादी संगठनों’ की सूची में डालने का अमेरिका का फैसला स्वागतयोग्य है। इसे भारतीय कूटनीति की सीमित कामयाबी भी समझा जाएगा। टीआरएफ लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा संगठन है। उसने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमलों की जिम्मेदारी ली थी। तब से भारत सरकार का प्रयास रहा है कि इस संगठन, उससे जुड़े नेटवर्क, और उसके संरक्षकों पर अंतरराष्ट्रीय शिकंजा कसे। कहा जा सकता है कि इस दिशा में अब जाकर पहली सफलता मिली है, मगर अभी ये अधूरी है।

टीआरएफ या उसका मातृ संगठन लश्कर-ए-तैयबा अपनी गतिविधियां पाकिस्तान में रहते हुए चलाते हैं। उनके कुछ ठिकानों को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने निशाना बनाया। लेकिन उनके समर्थन का पूरा तंत्र नष्ट हो गया है, यह नहीं कहा जा सकता। यह तभी हो सकता है, जब पाकिस्तान सरकार आतंकवाद का भारत के खिलाफ इस्तेमाल की रणनीति छोड़े। इसलिए अपेक्षित यह है कि अंतरराष्ट्रीय शक्तियों की निगाह इस ओर खींची जाए और वे ताकतें पाकिस्तान पर इस मकसद के लिए प्रभावशाली दबाव बनाएं। क्या अमेरिका ऐसी भूमिका निभाने को तैयार है?  अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की शैली से इसका संकेत नहीं मिलता। उन्होंने अपने निवास में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर को आमंत्रित किया।

अब चर्चा है कि इस वर्ष क्वॉड शिखर सम्मेलन में भागीदारी के लिए भारत आने के समय ट्रंप पाकिस्तान भी जाएंगे। ट्रंप प्रशासन की ये शैली जारी रही, तो फिर टीआरएफ को आतंकवादी सूची में डालने का उसका कदम महज दिखावटी होकर रह जाएगा। यह भारतीय कूटनीति की भी परीक्षा है। विदेश मंत्री एस। जयशंकर ने कहा है कि टीआरएफ के खिलाफ ताजा अमेरिकी कदम ‘आतंकवाद के खिलाफ भारत और अमेरिका के सहयोग की सशक्त पुष्टि’ है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सहभागियों के साथ भारत का सहयोग जारी रहेगा, ताकि दहशतगर्द संगठनों और उनके प्रॉक्सीज को जवाबदेह ठहराया जा सके। अतः जब तक ऐसा नहीं होता, हर सफलता अधूरी मानी जाएगी। पहलगाम में जघन्य अपराध करने वाले ऐसे आतंकवादियों और उनके संरक्षकों को दंड दिलवाना असल मकसद है। यह लक्ष्य पूरा होना अभी बाकी है।

NI Editorial

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