कांग्रेस पार्टी कमाल करती है। उसने पहले इस बात का विवाद बनाया कि उसके कहे के हिसाब से सरकार ने विदेशी दौरे के लिए नेताओं का चुनाव नहीं किया। ऑपरेशन सिंदूर पर दुनिया को जानकारी देने जा रहे भारतीय डेलिगेशन के लिए कांग्रेस ने चार नाम दिए थे, जिसमें से सरकार ने सिर्फ एक नाम चुना और बाकी चार नाम अपनी पसंद से चुने। कांग्रेस ने इस पर खूब विवाद बनाया।
बाद में सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार ने कांग्रेस से नाम नहीं मांगे थे, बल्कि सूचना दी थी कि उसके चार सांसद विदेश दौरे पर भारत के डेलिगेशन में जाएंगे। बहरहाल, नाम का विवाद खड़ा करने के बाद अब कांग्रेस ने अंतरात्मा की आवाज पर विदेश में बोलने का निर्देश देकर अलग विवाद खड़ा कर दिया है।
कांग्रेस की दोहरी भूमिका पर बहस
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि वह सरकार की ओर से चुने गए पांचों सांसदों को विदेश जाने से रोक नहीं रहे हैं लेकिन कांग्रेस चाहती है कि सांसद अंतरात्मा की आवाज के आधार पर अपनी बात रखें। अब सवाल है कि कांग्रेस की अंतरात्मा की आवाज क्या है? क्या कांग्रेस चाहती है कि विदेश जाकर भारतीय डेलिगेशन में शामिल उसके सांसद या नेता पार्टी की राय रखें? यह सही है कि कांग्रेस ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार के साथ रही।
लेकिन सीजफायर की टाइमिंग और उसमें अमेरिकी दखल को लेकर कांग्रेस की राय अलग है। कांग्रेस की राय यह भी है कि सरकार इस पर राजनीति कर रही है। तो क्या उसके सांसद यह राय प्रस्तुत करेंगे या पार्टी राय से अलग वही राय प्रस्तुत करेंगे, बाकी डेलिगेशन के सदस्य बोलेंगे? हालांकि लगता नहीं है कि कोई सदस्य वहां अपनी निजी या पार्टी की राय रखेगा। सब एक स्वर में ही बोलेंगे।
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