सरकारी स्कूलों में दाखिले में गिरावट संभवतः दीर्घकालिक रुझान बनता जा रहा है। क्यों? क्या अब प्राइवेट स्कूल ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं? या बढ़ती आर्थिक मुसीबतों के साथ बच्चों को पढ़ाना कठिन होता जा रहा है?
यह सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए बेहद चिंताजनक सूचना है कि 23 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्राइमरी और सेकंडरी स्तर पर सरकारी स्कूलों में दाखिले में वर्ष 2024-25 के दौरान भारी गिरावट आई। अब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों से 30 जून तक रिपोर्ट भेज कर इसके कारण बताने को कहा है।
साथ ही उनसे स्थिति में सुधार के सुझाव भी मांगे गए हैँ। आंकड़े हाल में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की तरफ से आयोजित बैठक में सामने आए, जिसमें 33 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक पीएम- पोषण योजना की समीक्षा और बजट पर विचार करने के लिए बुलाई गई थी।
दाखिले घटने की वजहें क्या हैं
समीक्षा के दौरान 23 राज्यों में दाखिलों में गिरावट संबंधी तथ्य सामने आए। जिन राज्यों में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज हुई, उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल शामिल हैँ। इन राज्यों में जन्म दर आज भी ऊंची बनी हुई है। यानी कम बच्चों का जन्म दाखिले में कमी का कारण नहीं हो सकता। यूपी में तो 21 लाख 83 हजार कम छात्रों ने पिछले शैक्षिक सत्र में दाखिला लिया। बिहार में 6.14 लाख, राजस्थान में 5.63 लाख और पश्चिम बंगाल में 4.01 लाख कम बच्चे सरकारी स्कूलों में आए।
यहां याद करना उचित होगा कि स्कूली दाखिले में आ रही गिरावट की पहली सूचना पिछले वर्ष यूडीआईएसई+ रिपोर्ट से सामने आई थी, जो 2018-19 और 2021-22 के आंकड़ों की तुलना पर आधारित थी। अब पीएम-पोषण संबंधी आंकड़ों से जाहिर हुआ है कि ये ट्रेंड 2024-25 में भी जारी रहा। इस आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारी स्कूलों में दाखिले में गिरावट एक दीर्घकालिक रुझान बनता जा रहा है। क्यों?
क्या ऐसा सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में गिरावट या पीएम- पोषण जैसी योजना में अमल में ढिलाई की वजह से हो रहा है? क्या बच्चों के माता-पिता अब प्राइवेट स्कूलों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं? या बढ़ती आर्थिक मुसीबतों के साथ आम परिवारों के लिए अपने बच्चों को पढ़ाना कठिन होता जा रहा है? इस संबंध में पूर्ण समीक्षा और सुधार के उपायों की तुरंत आवश्यकता है।
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