Monday

24-03-2025 Vol 19

विश्व बैंक की चेतावनी

साल 1990 के बाद से सिर्फ 34 मध्य आय वाले देश ही उच्च-आय वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो सके। बाकी मिडल इनकम ट्रैप में फंस कर रह गए। विश्व बैंक के मुताबिक भारत को इस तजुर्बे से सीख लेनी चाहिए।

विश्व बैंक ने भारत को माकूल चेतावनी दी है। कहा है कि 100 से अधिक देशों को उच्च-आय वाला देश बनने की राह में गंभीर बाधाओं से रू-ब-रू होना पड़ सकता है। इनमें भारत भी है। बैंक ने ऐसे देशों को ‘मध्यम-आय के जाल’ से बचने की सलाह दी है। “वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024: द मिडल इनकम ट्रैप” में कहा गया है कि जब देश अमीर होते हैं, तो एक हद पर आकर उनकी प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ठहर जाती है। ऐसा कुछ ठोस वजहों और कुछ नीतिगत अस्थिरता के कारण होता है। बैंक ने ध्यान दिलाया है कि 1990 के बाद से केवल 34 मध्य आय वाले देश ही उच्च-आय वाले देशों की श्रेणी में जा सके। इनमें से एक तिहाई से अधिक देश वे हैं, जो यूरोपीय संघ में शामिल हुए या फिर वे देश हैं, जहां तेल के भंडार मिले। विश्व बैंक के मुताबिक भारत को इस तजुर्बे से सीख लेनी चाहिए। भारत अपने आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। भारत दुनिया की सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

मगर भारत को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है। ये चुनौतियां उसकी प्रगति को बाधित कर सकती हैं। मसलन, छोटे व्यवसायों की चुनौती देश के लिए एक बड़ी बाधा बन सकती है। भारत में आम तजुर्बा यह है कि छोटी कंपनियों के आगे बढ़ने में कठिनाई पेश आती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 90 फीसदी कंपनियों में पांच से कम कर्मचारी हैं। उनमें से कुछ ही कंपनियां 10 से अधिक कर्मचारियों तक बढ़ पाती हैं। यह प्रवृत्ति भारतीय व्यवसायिक माहौल में नियम और बाजार संबंधी बाधाओं का संकेत देती है। कहा गया है कि भारत का मानव संसाधन उसकी सबसे बड़ी संपत्तियों में एक है, मगर प्रतिभाओं के पलायन की चुनौती उसके लिए चिंता का विषय है। इसलिए बैंक ने सुझाव दिया है कि भारत को उच्च कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की क्षमता बढ़ानी चाहिए। बेशक इस रिपोर्ट में कई पहलू हैं, जिन पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। चुनौतियों को नजरअंदाज कर सिर्फ ढोल बजाना अपने लिए जोखिम मोल लेना साबित होगा।

NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *