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  • 400-400 ही क्यों, 500 क्यों नहीं?

    कहावत है थोथा चना, बाजे घना! और यह बात जनसंघ-भाजपा की राजनीति पर शुरू से लागू है। मेरी याद्दाश्त में यूपी में जनसंघ द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को मुख्यमंत्री बनाने का हल्ला करके विधानसभा चुनाव जीतने की हवाबाजी से लेकर 2004 में शाइनिंग इंडिया और अब विकसित भारत से 400 सीट का शोर इस बात का प्रमाण है कि ढोलबाजी में भाजपा का जवाब नहीं है। Lok Sabha Elections 2024 पिछले सप्ताह भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। और भाजपा के प्रतिनिधियों ने पार्टी की दशा पर नहीं सोचा। बूझा नहीं कि पार्टी किस तरह कांग्रेसियों, दलबदलुओं, सत्तालोलुपों से भरती हुई...

  • बिहार, झारखंड में कांटे की लड़ाई

    भारतीय जनता पार्टी 370 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिन राज्यों में पिछली बार का प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद कर रही है उनमें बिहार और झारखंड दोनों शामिल हैं। बिहार में पिछली बार 40 में से 39 सीटें एनडीए को मिली थी जिसमें भाजपा को अकेले 17 सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा को इसमें मुश्किल दिख रही थी तो उसने किसी तरह से राजद और जदयू का गठबंधन तुड़वा कर नीतीश कुमार के साथ तालमेल किया है। इसके बावजूद भाजपा को गारंटी नहीं है कि वह पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी। Lok Sabha elections 2024 इसी तरह झारखंड...

  • विपक्ष के गढ़ में क्या खिलेगा कमल?

    यह भी अहम सवाल है कि क्या भाजपा किसी ऐसे राज्य में चुनाव जीत पाएगी, जहां इससे पहले वह कभी नहीं जीती है? क्या वह आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में खाता खोल पाएगी? ध्यान रहे दक्षिण भारत के पांच बड़े राज्यों में कर्नाटक में उसका वर्चस्व रहा है और तेलंगाना में उसने तेजी से अपना आधार बनाया है। फिर भी इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भाजपा के लिए स्थितियां पहले जैसी अनुकूल नहीं रह गई हैं। तेलंगाना में पिछली बार भाजपा ने चार सीटें जीती थीं और कांग्रेस को तीन सीट मिली थी। एक...

  • भीड़ में खोई जिंदगी!

    मैं पंद्रह-बीस दिन भीड़ में खोया रहा। दिल्ली की भीड़, ट्रेन की भीड़, शादी की भीड़, एयरपोर्ट की भीड़! और ठंड-ठिठुरन, प्रदूषण, बदबू, बदहजमी, धुंध में ऐसा फंसा कि समझ नहीं आया कि करें तो क्या करें! लिखें तो क्या लिखें! कुछ वर्षों से मैं दीपावली के बाद, सर्दियों में दिल्ली से दूर राजस्थान में रहता हूं। लेकिन इस वर्ष दिल्ली में अभिन्न परिवारों से शादियों के न्योते थे तो दिल्ली आना पड़ा। और ठंड, भीड़, प्रदूषण से बच नहीं पाया। बुखार, वायरल, खांसी से दिमाग झनझनाया। और सवाल बना कि हम हो क्या गए हैं? सही है शुरू से...

  • लिखना क्यों? सार्थक क्या?

    गुजरे सप्ताह अंग्रेजी के वरिष्ठ संपादक टीएन नायनन ने 25 वर्षों से चले आ रहे अपने साप्ताहिक आर्थिक कॉलम को बंद करने की बात कहते हुए लिखा- उम्र के साथ सक्रिय पत्रकारिता से दूर होते जाने के कारण हर सप्ताह अब कुछ सार्थक कहना मुश्किल होता गया है। यह पढ़ मुझे खराब लगा। इसलिए कि मैं टीएन नायनन को पढ़ता रहा हूं। फिर अंग्रेजी पत्रकारों में भी तो नायनन, स्वामीनाथन अय्यर, शेखर गुप्ता, तवलीन, स्वप्नदास गुप्ता, प्रतापभानु मेहता, प्रभु चावला, बलबीर पुंज, जैसे मुश्किल से दर्जन भर पत्रकार होंगे जो दशकों से नियमित लिख रहे हैं और जिन्होंने विषय, विचार,...

  • युवाओं की भीड़ का भदेस भारत!

    गुजरे सप्ताह अंग्रेजी के वरिष्ठ संपादक टीएन नायनन ने 25 वर्षों से चले आ रहे अपने साप्ताहिक आर्थिक कॉलम को बंद करने की बात कहते हुए लिखा- उम्र के साथ सक्रिय पत्रकारिता से दूर होते जाने के कारण हर सप्ताह अब कुछ सार्थक कहना मुश्किल होता गया है। यह पढ़ मुझे खराब लगा। इसलिए कि मैं टीएन नायनन को पढ़ता रहा हूं। फिर अंग्रेजी पत्रकारों में भी तो नायनन, स्वामीनाथन अय्यर, शेखर गुप्ता, तवलीन, स्वप्नदास गुप्ता, प्रतापभानु मेहता, प्रभु चावला, बलबीर पुंज, जैसे मुश्किल से दर्जन भर पत्रकार होंगे जो दशकों से नियमित लिख रहे हैं और जिन्होंने विषय, विचार,...

  • मध्य वर्ग और ‘क्रिमी’ भीड की दशा!

    गुजरे सप्ताह अंग्रेजी के वरिष्ठ संपादक टीएन नायनन ने 25 वर्षों से चले आ रहे अपने साप्ताहिक आर्थिक कॉलम को बंद करने की बात कहते हुए लिखा- उम्र के साथ सक्रिय पत्रकारिता से दूर होते जाने के कारण हर सप्ताह अब कुछ सार्थक कहना मुश्किल होता गया है। यह पढ़ मुझे खराब लगा। इसलिए कि मैं टीएन नायनन को पढ़ता रहा हूं। फिर अंग्रेजी पत्रकारों में भी तो नायनन, स्वामीनाथन अय्यर, शेखर गुप्ता, तवलीन, स्वप्नदास गुप्ता, प्रतापभानु मेहता, प्रभु चावला, बलबीर पुंज, जैसे मुश्किल से दर्जन भर पत्रकार होंगे जो दशकों से नियमित लिख रहे हैं और जिन्होंने विषय, विचार,...

  • बेतरतीब विकास और बीमार भारत

    गुजरे सप्ताह अंग्रेजी के वरिष्ठ संपादक टीएन नायनन ने 25 वर्षों से चले आ रहे अपने साप्ताहिक आर्थिक कॉलम को बंद करने की बात कहते हुए लिखा- उम्र के साथ सक्रिय पत्रकारिता से दूर होते जाने के कारण हर सप्ताह अब कुछ सार्थक कहना मुश्किल होता गया है। यह पढ़ मुझे खराब लगा। इसलिए कि मैं टीएन नायनन को पढ़ता रहा हूं। फिर अंग्रेजी पत्रकारों में भी तो नायनन, स्वामीनाथन अय्यर, शेखर गुप्ता, तवलीन, स्वप्नदास गुप्ता, प्रतापभानु मेहता, प्रभु चावला, बलबीर पुंज, जैसे मुश्किल से दर्जन भर पत्रकार होंगे जो दशकों से नियमित लिख रहे हैं और जिन्होंने विषय, विचार,...

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