इस साल मेडिकल में दाखिले की नीट यूजी की परीक्षा के नतीजे आए तो यह खबर चारों तरफ प्रमुखता से छपी कि शीर्ष एक सौ छात्रों में सबसे ज्यादा राजस्थान के हैं। इसके साथ ही यह भी खबर थी बिहार और झारखंड से किसी छात्र को शीर्ष सौ में जगह नही मिली। सोचें, बिहार से पिछली बार सात छात्रों को सौ फीसदी अंक मिले थे। लेकिन इस बार किसी को नहीं मिला। एक तो यह खबर है। लेकिन इसके साथ ही सभी अखबारों में अगल बगल में ही यह भी खबर लगी है कि नीट यूजी की ऑल इंडिया चौथी रैंक मृणाल किशोर झा को मिली है और आठवीं रैंक भव्य चिराग झा को मिली है। ये दोनों बिहार मूल के हैं।
यानी बिहार मूल के दो छात्र शीर्ष 10 में स्थान बना रहे हैं लेकिन बिहार से किसी भी बच्चे को शीर्ष सौ में स्थान नहीं मिल रहा है? है न कंफ्यूजन पैदा करने वाली बात? ऐसा इसलिए है क्योंकि बिहार में शिक्षा की पूरी व्यवस्था चौपट हो गई है और लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए बिहार से बाहर भेज दिया है। इसलिए बिहार के नतीजे अच्छे नहीं होते हैं लेकिन बिहारी छात्र बिहार के बाहर रह कर अच्छा नतीजा दे रहे हैं। अगर नीट यूजी की सूची की बारीकी से पड़ताल हो तो पता चलेगा कि दिल्ली, एनसीआर से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और बेंगलुरू, मुंबई में रहने वाले बिहार के अनेक छात्र शीर्ष सौ में हैं। यही यूपीएससी की परीक्षा में भी होता है। इसका कारण यही है कि नीतीश कुमार के राज में भी बिहार की शिक्षा का भट्ठा बैठता रहा। लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शिक्षा का हार्डवेयर खराब किया यानी स्कूल, कॉलेज जर्जर हुए और नियुक्तियां बंद हुई लेकिन नीतीश के राज में पूरा सॉफ्टवेयर खराब हो गया। फर्जी और अनपढ़ लोगों को नियुक्त करके शिक्षा व्यवस्था को खत्म कर दिया गया।