Wednesday

30-04-2025 Vol 19

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

विपक्ष पर कार्रवाई कही उलटी न पड़े!

जिस रफ्तार से कार्रवाई शुरू की है उससे क्या भाजपा को राजनीतिक लाभ होगा या विपक्ष के प्रति आम लोगों के बीच सहानुभूति बनेगी?

पूर्वोतर का मुख्यधारा से जुड़ाव

पूरा देश जिस समय होली का त्योहार मना रहे थे उस समय त्रिपुरा में माणिक साहा दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे।

चुनाव आयोग पर फैसले से क्या बदलेगा?

नियुक्तियों में न्यायपालिका के शामिल होने से उसके पारदर्शी और साफ-सुथरा होने की गारंटी नहीं होती है।

‘ईडी से एकजुट’ हुए नेताओं की नादानी!

आम लोगों को जो जितनी अच्छी कहानी सुना सकता है, उसके सफल होने की संभावना उतनी ज्यादा होती है।

पाक की अस्थिरता, भारत के लिए चुनौती!

भारत में जश्न मनाया जा रहा है कि पाकिस्तान दिवालिया हो गया। मीडिया में और खासतौर से सोशल मीडिया में इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टरस्ट्रोक का नतीजा बताया...

चीन को लेकर थोड़ी गंभीरता दिखी

इसे देर आए दुरुस्त आए कह सकते हैं। हाल के दिनों में संभवतः पहली बार चीन के खतरे को लेकर भारत सरकार की गंभीरता दिखी है।

क्या पंजाब का इतिहास दोहरा रहा है?

पंजाब पर बुरे दौर का साया सत्तर या अस्सी के दशक में नहीं पड़ा था। उसकी बुनियादी साठ के दशक में ही पड़ गई थी

विपक्षी एकता का कौन सा मॉडल?

देश के राष्ट्रीय चुनावों में विपक्षी एकता के वैसे तो कई मॉडल आजमाए गए हैं लेकिन तीन मॉडल सफल हुए हैं।

यूक्रेन युद्ध का एक साल!

संभवतः किसी ने सोचा नहीं होगा कि 21वीं सदी में दो देशों के बीच इतना लंबा पारंपरिक युद्ध चल सकता है।

विपक्षी एकता का आधा अधूरा प्रयास

विपक्षी पार्टियों की रणनीति को लेकर हाल में कई वक्तव्य आए हैं, जिन पर बारीकी से और वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करने की जरूरत है।

संगठन नहीं सांसद, विधायक ही पार्टी हैं!

लोकतंत्र में चुनाव लड़ने वाली पार्टी महत्वपूर्ण होती है। कोई भी नेता पार्टी से ऊपर या उससे ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होता है।

भारत विरोधी ताकतों की साजिश!

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री आई और हिंडनबर्ग रिसर्च ने वित्तीय गड़बड़ियों की एक रिपोर्ट पेश की तो विदेशी ताकतों की साजिश वाला नैरेटिव चलाया जा रहा है। 

अगला चुनाव विचारधारा पर होगा!

अगला लोकसभा चुनाव या उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों का केंद्रीय मुद्दा क्या होगा?

नकल रोकने का कानून पर्याप्त नहीं

उत्तराखंड की सरकार एक कानून लेकर आई है, जिससे परीक्षाओं की पवित्रता बहाल करने की उम्मीद की जा रही है।

संसदीय विमर्श के विषय और भाषा!

विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों कानून की बारीकियों पर विचार करने और बेहतर कानून बनाने की बजाय व्यक्तियों और घटनाओं पर अपनी भड़ास निकाल रहे होते हैं।

राहुल को वैकल्पिक दृष्टि बतानी होगी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने को एक परिपक्व और सकारात्मक विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित करने के प्रयास में काफी हद तक सफल हुए हैं।

बेटी बचाओ का असम मॉडल

असम की हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार बेटी बचाओ अभियान में लगी है और मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि यह अभियान 2026 के विधानसभा चुनाव तक चलता रहेगा।

सामाजिक सुरक्षा प्राथमिकता से बाहर!

भारत लोक कल्याणकारी राज्य है इसके बावजूद देश में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है।

अदानी को बचाना मजबूरी है!

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद गौतम अदानी की कंपनी ने अपनी सफाई में जो कुछ कहा वह इस बात का संकेत था कि आगे यह कहानी क्या...

मजबूरी में मध्य वर्ग की चिंता

राजनीतिक दलों साथ आमतौर पर ऐसा होता है कि वे या तो जनादेश की गलत व्याख्या कर लेती हैं या उसे फॉर गारंटेड मान लेती हैं।

चुनावी साल का फीलगुड बजट

केंद्रीय वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2023-24 के आम बजट में ऐलान किया है कि सरकार पूंजीगत खर्च में 33 फीसदी की बढ़ोतरी करेगी।

मानस के बहाने मंडल राजनीति की वापसी

मंडल राजनीति की वापसी हो सकती है और तब कमंडल यानी मंदिर की राजनीति के बरक्स जातियों को खड़ा किया जाएगा

याद रहेगा राहुल का यह सकारात्मक अभियान

कन्याकुमारी से कश्मीर तक 135 दिन में साढ़े तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलने के बाद राहुल गांधी ने यात्रा को विराम देते हुए कहा कि यह समापन...

विपक्ष अभी मुद्दे तलाश रहा है

भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के मुकाबले विपक्ष के पास क्या है? हिंदुत्व बनाम क्या? क्या हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व का खुला विरोध लोकसभा चुनाव का केंद्रीय मुद्दा हो सकता...

राम के बाद अब मानस पर राजनीति

भारत में कोई भी चीज राजनीति की परिधि से परे नहीं है और कोई भी चीज इतनी पवित्र नहीं है कि उस पर राजनीति न हो।

एक नए बाबा की जरूरत थी

देश को एक नए और चमत्कारिक बाबा की जरूरत थी। बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने वह जरूरत पूरी की है।

मजबूत कांग्रेस किसी को पसंद नहीं

राहुल गांधी के नेतृत्व में हो रही भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस मजबूत हो रही है या ऐसे कह सकते हैं कि उसके कमजोर होने की प्रक्रिया थम गई...

न्यायपालिका की साख बिगाड़ कर क्या मिलेगा?

सवाल है कि सरकार उसकी साख क्यों खराब करना चाहती है? उससे क्या हासिल होगा? उलटे मौजूदा न्यायिक व्यवस्था में हर बड़े मसले पर सरकार को संरक्षण मिल रहा...

रिमोट ईवीएम से संदेह और बढ़ेगा

देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां चुनाव की शुचिता पर सवाल उठा रही हैं।

फीलगुड का साल हो सकता है 2023

नया साल देश के नागरिकों के लिए फीलगुड का साल हो सकता है। सोचें, सारी दुनिया आर्थिक मंदी की चिंता में है।

मजबूत हो रही हैं क्षेत्रीय पार्टियां

ओड़िशा में बीजू जनता दल ने स्थापना के 25 साल पूरे किए हैं तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के 25 साल पूरे हुए हैं।

सरकारें कृपा नहीं कर रही पर अहसान जतला रही!

केंद्र सरकार देश के 81.35 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज देगी तो साथ साथ उनको यह भी बताएगी कि यह अनाज उनको किसकी कृपा से मिल रहा...

चुनाव और यात्रा से बदलता विमर्श

लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो यात्रा पूर्णता की ओर बढ़ रही है वैसे वैसे देश की राजनीति का...

विदेशी विश्वविद्यालयों का इतना हल्ला क्यों?

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपना कैंपस खोलने की इजाजत देने के नियमों का एक मसौदा जारी किया है। इस मसौदे को लेकर ...

नेताओं पर कैसे लगाम लगाएंगी पार्टियां!

यह सुप्रीम कोर्ट की सदिच्छा है, जो उसने कहा कि नेताओं, सांसदों, विधायकों या मंत्रियों के बेतुके बयानों पर रोक लगाने का काम पार्टियों को खुद करना चाहिए।

चुनाव हैं पर उनसे 2024 तय नहीं होगा

वैसे तो भारत में हर साल चुनाव होते हैं लेकिन 2023 का साल इस मायने में अलग है क्योंकि इस साल जितने चुनाव हैं उतने किसी एक साल में...

माफी तो फिर भी सरकार को ही मांगनी चाहिए!

सर्वोच्च अदालत ने बहुमत के फैसले में कहा है कि नोटबंदी का फैसला करने की प्रक्रिया सही थी। हालांकि उसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।

2024 की प्रतीक्षा और तैयारियों का वर्ष

अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले 2023 का साल उस चुनाव की तैयारियों और उसकी प्रतीक्षा का साल होगा।