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संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।
  • वीपी सिंह नए अम्बेडकर हैं!

    डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर इस समय भारतीय राजनीति और कुछ हद तक समाज के भी सबसे बड़े आईकॉन हैं। छह दिसंबर को उनको महापरिनिर्वाण दिवस पर संसद में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने की जैसी कतार लगी वह मिसाल है। पहले सिर्फ कांशीराम और मायावती को उनकी जरुरत थी या रिपब्लिकन पार्टी के अलग अलग धड़े उनके नाम की माला जपते थे। लेकिन अब सबको उनकी जरुरत है। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने तो सरकारी कार्यालयों में महात्मा गांधी की तस्वीरें उतरवा कर अम्बेडकर की तस्वीरें लगा दी हैं। बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यू ने भीम संसद यात्रा...

  • कांग्रेस चुनाव लड़ना सचमुच भूल गई है!

    उत्तर भारत में क्यों कर कांग्रेस डूबी-3: नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भाजपा को चुनाव लड़ने की मशीनरी बना दिया है। और राजनीति में यह अच्छी बात है। ठिक दूसरी तरफ कांग्रेस चुनाव लड़ना भूल गई! कैसे और क्यों?  आज हकीकत है कि कांग्रेस कंपीटिशन मेंन तो चुनाव लड़ने की मशीनरी बनी है बल्कि चुनाव लड़ने की बेसिक्स भी छोड़ बैठी है। दूसरे शब्दों में किस तरह से उम्मीदवारों का चयन होता है, कैसे जमीनी मुद्दे उठाए जाते हैं, किस तरह से प्रदेशों में संगठन काम करता है, कैसे चुनाव अभियान समिति काम करती है,कैसे केंद्रीय टीम के साथ...

  • अराजनीतिक सलाहकारों,यू ट्यूबर्स आंकडेबाजों से डूब रही हैं कांग्रेस

    उत्तर भारत में कांग्रेस क्यों कर डूबी- 2 : कांग्रेस मिजोरम का भी विधानसभा चुनाव हार गई। और बहुत बुरी तरह से। लेकिन यू ट्यूब पर आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले पुराने सैफोलॉजिस्ट योगेंद्र यादव मिजोरम में कांग्रेस को बड़ी ताकत के तौर पर उभरता हुआ बता रहे थे। दावा कर रहे थे कि कांग्रेस के बिना वहां कोई सरकार नहीं बनेगी। मगर कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली जबकि पहली बार चुनाव लड़ी जोरम पीपुल्स मूवमेंट ने दो-तिहाई बहुमत हासिल किया। सोचें, कांग्रेस की आंधी बताई गई तो उसकी सीट पांच से घट कर एक हो गई। इसी तरह...

  • कांग्रेस बैठाती है मैनेजरों को सिर पर!

    उत्तर भारत में क्यों कर कांग्रेस डूबी-1: किंवदंती की तरह दिल्ली के राजनीतिक जानकारों में चर्चा रही है कि 2014 में लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी चुनाव जीत गए तो उनके सलाहकार मैनेजर प्रशांत किशोर ने अपना भविष्य जानने के लिए अमित शाह से बात की। उन्होंने उनसे पूछा– मई के बाद क्या होगा? इस पर अमित शाह का टका सा जवाब था- जून होगा! यह बात भाजपा की ओर से प्रचारित हुई होगी। पर इससे जाहिर हुआ कि चुनाव में सर्वेक्षण करने वाले, चुनाव प्रबंधन का काम करने वाले, नारे गढ़ने और आकर्षक पोस्टर-बैनर-हार्डिंग बनवाने वाले या जनता के...

  • राज्यपालों की भूमिका पर विचार जरूरी

    इन दिनों राजनीति में इस्तेमाल किए जा रहे मुहावरे के हिसाब से कहें तो आजादी के 75 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ कि राज्यपालों के ऊपर सर्वोच्च अदालत को इतनी सख्त टिप्पणियां करनी पड़े, जितनी अभी करनी पड़ रही है। आजादी के बाद कई बार राज्यपालों की भूमिका पर सवाल उठे हैं लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि सांस्थायिक रूप से राज्यपाल राज्य सरकारों के कामकाज में दखल दें, विधेयक रोकें, सरकारों पर गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी करें और समानांतर सरकार चलाने की कोशिश करें। राज्यपालों के ऐसे आचरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार बेहद तीखी टिप्पणियां की...

  • सिल्क्यारा सुरंग दुर्घटना के सबक

    उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिल्क्यारा की निर्माणाधीन सुरंग में हुए दुखद हादसे का अंत सुखद रहा है। सुरंग में फंसे सभी 41 मजदूरों को 17वें दिन सकुशल निकाल लिया गया। लेकिन इस घटना से कुछ सवाल खड़े हुए हैं और कुछ सबक भी मिले हैं, जिन पर सरकारों के साथ साथ इस तरह के सामरिक व रणनीतिक रूप से अहम और बेहद संवेदनशील काम करने वाली निजी कंपनियों को भी ध्यान देना चाहिए। इस हादसे के बाद एक अच्छी बात यह भी हुई है कि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने देश के अलग अलग हिस्सों में बन रही...

  • मोदी का मकसद, कांग्रेस चुनौती न बने!

    भाजपा ने क्यों पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इतनी ताकत झोंकी? लोकसभा चुनाव से ठीक पहले क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने को इस तरह दांव पर लगाया? क्यों मोदी और अमित शाह दोनों ने इन चुनावों को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है? क्यों ऐन केन प्रकारेण चुनाव जीतने की कोशिश हो रही है? आखिर पांच साल पहले भी तो इन राज्यों के चुनाव हुए थे और  उनमें भी भाजपा हार गई थी, लेकिन उसके बाद लोकसभा चुनाव में पहले से ज्यादा सीटों के साथ जीती फिर इस बार इतनी चिंता करने की क्या जरूरत है? क्या भाजपा को...

  • केजरीवाल के सामने राजनीतिक संकट

    आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल देश भर में चुनाव लड़ते और हारते रहे हैं लेकिन यह उनकी राजनीति का हिस्सा होता है। इससे उनके लिए राजनीतिक मुश्किल खड़ी नहीं होती है, बल्कि कुछ न कुछ फायदा ही होता है। उनकी पार्टी का विस्तार होता है और नए लोग जुड़ते हैं। इसी राजनीति में उन्होंने दो राज्यों-दिल्ली और पंजाब में सरकार बना ली और दो राज्यों- गुजरात व गोवा में इतना वोट हासिल कर लिया कि उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। इतना सब होने के बावजूद अब उनकी राजनीतिक राह मुश्किल...

  • बिहार में लागू 75 प्रतिशत आरक्षण, अब पूरे देश में इसकी होगी होड़!

    बिहार में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का कानून लागू हो गया है। छत्तीसगढ़ और झारखंड से उलट बिहार में राज्यपाल ने आरक्षण बढ़ाने के लिए विधानसभा से पास किए गए कानून को मंजूरी दे दी है। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने 18 नवंबर को शिक्षण संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ाने के दो विधेयकों को मंजूरी दी और राज्य सरकार ने 21 नवंबर को इसकी गजट अधिसूचना जारी करके इसे लागू करने का ऐलान कर दिया। इस कानून के लागू होने के बाद बिहार में आरक्षण की सीमा 75 फीसदी हो गई है। इसमें 65 फीसदी आरक्षण...

  • लोकसभा चुनाव के लिए मुद्दों की तलाश

    यह सिर्फ कहने की बात नहीं है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव देश की राजनीति को दिशा देने वाले होंगे और इनसे पता चलेगा कि अगला लोकसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा। यह आमतौर पर हर चुनाव के बारे में कहा जाता है लेकिन इस बार पांच राज्यों के चुनाव का मामला थोड़ा अलग है। इन पांचों राज्यों में उन सारे दांव-पेंच की परीक्षा होने वाली है, जिनके दम पर लोकसभा का अगला चुनाव लड़ा जाना है। लोकसभा चुनाव में आजमाए जाने वाले तमाम हथियारों को इन चुनावों में धार दिया जा रहा है। चाहे हिंदुत्व के मुद्दे...

  • स्थानीय आरक्षण की बहस क्या अब खत्म होगी?

    हरियाणा में स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी सीटें आरक्षित करने के राज्य सरकार के कानून को पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने इस ममले में बहुत स्पष्ट और दो टूक फैसला सुनाया है। पहले 2022 में भी अदालत ने इस कानून पर रोक लगा दी थी लेकिन तब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया था और सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि वह विस्तार से सुनवाई करके गुण-दोष के आधार पर इस कानून के बारे में फैसला सुनाए। सो, हाई कोर्ट के दो...

  • मोदी की तरह राहुल का प्रचार

    ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टीम में से किसी ने नरेंद्र मोदी के 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। क्योंकि इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी उसी तर्ज पर प्रचार कर रहे हैं, जिस तर्ज पर मोदी ने शुरू किया था। प्रधानमंत्री मोदी अब भी उस प्रचार अभियान के कुछ हिस्सों को दोहराते रहते हैं। हालांकि कुछ मुद्दे वे छोड़ चुके हैं। उन्होंने जो मुद्दे छोड़ दिए राहुल की टीम उन्हें भी भाषणों में या चुनावी नैरेटिव बनाने में इस्तेमाल कर रही है।...

  • एक मैच हारे और विश्व कप हार गए!

    भारत के 140 करोड़ लोगों की उम्मीदें टूट गईं। भारत एकदिवसीय क्रिकेट के विश्व कप का फाइनल मुकाबला हार गया। भारत को यह विश्व कप जीतना था। भारतीय टीम चैम्पियन की तरह खेल रही थी। दुनिया की जो नौ टीमें विश्व कप खेलने भारत आई थीं उन सभी टीमों को भारत ने लीग मुकाबले में हराया था। ऑस्ट्रेलिया को भी अपने पहले मैच में ही छह विकेट से हराया था। लीग राउंड में भारत ने अपने सभी नौ मैच जीते थे और शानदार प्रदर्शन कर रही न्यूजीलैंड की टीम को सेमी फाइनल में हरा कर परफेक्ट टेन स्कोर के साथ...

  • देश में दलबदल नहीं रूकने वाला!

    पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इन सभी राज्यों के उम्मीदवारों की सूची देखने पर बहुत दिलचस्प तस्वीर उभर कर आती है। चाहे देश की सबसे पुरानी पार्टी हो या दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी हो या सबसे कम समय में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली पार्टी हो या बहुजन की पार्टी हो सबने खुले दिल से दलबदल करने वालों को टिकट दी है। कई उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जिनको अपनी पार्टी छोड़ने के 24 घंटे के अंदर दूसरी पार्टी से टिकट मिल गई। एक पार्टी से कई कई बार विधायक रहे बड़े नेताओं ने...

  • आलोचना की भी सीमा होनी चाहिए

    भारत का एक प्राचीन नीति श्लोक है- अति सर्वत्र वर्जयेत्! कई जगह इसकी विस्तार में व्याख्या मिलती है। एक व्याख्या के मुताबिक अति रूपवती होने की वजह से सीता का हरण हुआ, अति अहंकारी होने की वजह से रावण का वध हुआ और अति दानशील होने की वजह से राजा बलि को अपना सब कुछ गंवाना पड़ा। इसलिए अति से बचना चाहिए और हर कार्य में संतुलन बनाए रखना चाहिए। भारतीय जीवन दर्शन में हर तरह के अतिरेक से बचने की सलाह दी गई है और कहा गया है कि किसी भी चीज की अति व्यक्ति के गुणों को भी...

  • बिहार की राजनीति में नया कुछ भी नहीं

    जाति गणना के आंकड़े आने और आरक्षण की सीमा बढ़ाने के बिहार सरकार के फैसले के बाद हर तरफ यह सुनने को मिल रहा है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने राजनीति की दिशा बदल दी है। ऐसा लग रहा है जैसे इन दोनों नेताओं ने कोई नई राजनीति की है। लेकिन असल में इस राजनीति में कुछ भी नया नहीं है। पिछले 50 साल से ज्यादा समय से बिहार में यही राजनीति हो रही है और कुछ हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मंडल राजनीति से मजबूत हुए अन्य पिछड़ी जाति के नेताओं की कृपा से पूरे देश...

  • अदालत के आदेश का अनादर चिंताजनक

    दिवाली के अगले दिन छपे हुए अखबार तो नहीं आए लेकिन अखबारों और न्यूज चैनलों की वेबसाइट पर जो सुर्खियां दिखीं वो बेहद चिंताजनक थीं। एक न्यूज चैनल की हेडलाइन थी ‘धुएं में उड़ा सुप्रीम कोर्ट का आदेश’ तो एक दूसरी वेबसाइट ने लिखा ‘दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ीं’। दिवाली की रात दिल्ली के लोगों के एक समूह ने पटाखों पर पाबंदी के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाईं तो दूसरा समूह सर्वोच्च अदालत के आदेश के बेशर्म अनादर का बेबस साक्षी बना और सुबह होते होते पूरे देश को इसका पता चल गया। सो,...

  • स्थायी समस्या का मौसमी समाधान

    दिल्ली और उत्तर भारत के ज्यादातर शहरों में प्रदूषण की समस्या चिरस्थायी है। हर साल सर्दियों में आसमान में धूल और धुंध की काली चादर छाई रहती है। धीरे धीरे बहुत छोटे आकार के बेहद नुकसानदेह धूल कण यानी पीएम 2.5 हवा में बढ़ते जा रहे हैं। साथ ही नाइट्रोजन हाइड्रोऑक्साइड यानी एनओ2 की मात्रा भी बढ़ती जा रही है, जो इस बात का संकेत है कि गाड़ियों के धुएं से होने वाले प्रदूषण को कम करने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई हैं। ऐसा नहीं है कि सर्दियों के अलावा साल के बाकी समय में दिल्ली और उत्तर भारत...

  • उफ! बिहार की दुर्दशा, सभी जिम्मेवार

    बिहार सरकार ने सात नवंबर को विधानमंडल में बिहार की दुर्दशा के दस्तावेज पेश किए। इससे पहले दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर बिहार सरकार ने जाति गणना के आंकड़े जारी किए थे, जिससे पता चला था कि बिहार में 63 फीसदी आबादी पिछड़ी जातियों की है, अनुसूचित जाति की आबादी 20 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी एक फीसदी है, जबकि सवर्ण आबादी सिर्फ साढ़े 15 फीसदी है। इसके बाद सात नवंबर को बिहार सरकार ने इन जातियों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति के आंकड़े पेश किए, जिससे इन सबकी सामूहिक दुर्दशा का पता...

  • भाजपा भी जात राजनीति के खेल में

    भारतीय जनता पार्टी व्यापक रूप से जाति की राजनीति को हिंदुत्व की राजनीति का विरोधी मानती रही है। तभी वह जातीय समीकरण बनाने, सोशल इंजीनियरिंग करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जाति बता कर वोट मांगने के बावजूद एक बड़ा नैरेटिव हिंदुत्व का बना कर रखती है। उसके दायरे में ही वह जाति की राजनीति करती है। कह सकते हैं कि उसकी बारीक राजनीति जाति के प्रबंधन वाली होती है और बड़ी राजनीति हिंदुत्व की होती है। परंतु अब कांग्रेस और उसके गठबंधन की पार्टियों द्वारा जाति के मुद्दे को राजनीति का केंद्रीय मुद्दा बना देने के बाद लगता है...

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