Wednesday

30-04-2025 Vol 19

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

मजबूरी में मध्य वर्ग को रैवड़ी

modi budget 2025: सरकार ने कोई नीतिगत बदलाव नहीं किया है। जिस आर्थिक सुधार की उम्मीद की जा रही थी वह कहीं नहीं दिखी है।

जनता के मुद्दों पर नहीं, रेवडियों पर चुनाव

लोकतंत्र की अनेक परिभाषाओं में एक परिभाषा यह है कि, ‘इसमें जनता को अधिकतम भ्रम दिया जाता है और न्यूनतम अधिकार दिए जाते हैं’।

बजट से सबकी अपनी अपनी उम्मीदें

budget 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट एक फरवरी को पेश होगा।

लोगों की शोषक, नाकारा नियामक एजेंसियां

भारत में जितनी नियामक एजेंसियां हैं, शायद दुनिया के किसी और देश में उतनी नहीं होंगी।

कांग्रेसी की दिल्ली चुनाव की दुविधा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी दुविधा में दिख रही है। पार्टी ने जिस उत्साह और जोश के साथ चुनाव अभियान की शुरुआत की थी वह धीरे धीरे समाप्त...

राजनीतिक रूपकों को बदलने की जरुरत

राजनीति में हमेशा ऐसा होता है कि सेमीफाइनल हारने वाला भी फाइनल खेलता है और कई बार तो ऐसा भी होता है कि सेमीफाइनल हारने वाला फाइनल जीत जाता...

जन आंदोलनों का बंद होता रास्ता

इतिहास के अंत की घोषणा की तरह क्या जन आंदोलनों के अंत की भी घोषणा की जा सकती है? कई लोग मानेंगे कि ऐसा कहना जल्दबाजी है या आधा...

महाकुंभ पर तो चुप रह सकते थे!

क्या वे मान रहे हैं कि महाकुंभ में जो लोग डुबकी लगा रहे हैं वे भाजपा के मतदाता हैं और जितनी ज्यादा संख्या बताई जाएगी उतना ज्यादा फायदा भाजपा...

सब कुछ मुफ्त, बम्पर घोषणाएं!

चुनाव जीतने के लिए मुफ्त में चीजें और सेवाएं बांटने की राजनीति की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं। हर चुनाव के बाद पार्टियां कुछ नई चीज ला...

सेवा विस्तार और ‘मुफ्त की रेवड़ी’ पर चर्चा

पिछले हफ्ते दो खबरें आईं, जिन पर मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई। परंतु दोनों खबरें ऐसी हैं

सोशल मीडिया की राजनीतिक ताकत कितनी?

दुनिया में और खास कर अमेरिका में तो प्रमाणित है कि सोशल मीडिया के दम पर चुनाव लड़ा और जीता जा सकता है।

चुनाव को लेकर विपक्ष की क्या योजना?

अगर विपक्ष का आचरण ऐसा ही रहा तो वह आम मतदाताओं के मन में अपने प्रति कोई सहानुभूति पैदा नहीं कर पाएगा।

शोषण का विचार ही खतरनाक है

ग्रीस यानी यूनान के ‘एक्सीडेंटल वित्त मंत्री’ रहे यानिस वरौफाकिस ने पुरानी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को खत्म करके तकनीक की सामंतवादी व्यवस्था, जिसे उन्होंने ‘टेक्नोफ्यूडलिज्म’ नाम दिया है

बहुकोणीय लड़ाई और लोकतंत्र की चुनौती

भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई गई है। तभी इस बात की शिकायत नहीं की जा सकती है कि बहुत सारी पार्टियां हर दिन बन रही हैं और चुनाव...

दिल्ली में क्या खत्म होगा भाजपा का इंतजार?

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी तीन दशक से सत्ता में आने की प्रतीक्षा कर रही है। उसने 1993 में दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव जीता था और उसके बाद...

नेताओं का आचरण कैसे सुधरेगा?

भाजपा में तो इस बात की होड़ मची है कि कौन सा नेता विपक्ष के नेताओं को कितनी बुरी तरह से जलील कर सकता है

किसान और छात्र आंदोलन की चुनौती

नए साल की शुरुआत किसान और छात्रों के आंदोलन के साथ हुई है। पिछले साल फरवरी में पंजाब और हरियाणा के शंभू व खनौरी बॉर्डर पर किसानों ने आंदोलन...

मजूबती के लिए क्या करेगी कांग्रेस?

कांग्रेस को जनता से कनेक्ट और संवाद का पुराना तरीका विकसित करना होगा। पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की बात शीर्ष नेताओं को सुननी होगी।

परिवारवाद कैसे समाप्त होगा?

नए साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक प्रमुख लक्ष्य राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति दिलाने का होना चाहिए। उन्होंने बड़ी प्रतिबद्धता के साथ यह लक्ष्य तय किया है।

सदी की चौथाई तक का सफर

इक्कीसवीं सदी का 25वां साल शुरू हो गया। सबको बधाई! मंगल शुभकामनाएं! वर्ष 2025 समाप्त होगा तो यह सदी एक चौथाई गुजर चुकी होगी।

वर्ष 2024 का राजनीतिक सूत्र क्या है?

दुनिया भर में अंग्रेजी शब्दकोष के लिए वर्ष के शब्द चुने जाते हैं। जैसे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ‘ब्रेन रॉट’ को वर्ष का शब्द चुना है।

दलित जागृति का लाभार्थी कौन होगा?

उत्तर प्रदेश कांशीराम के प्रयोग की धरती थी, जहां मायावती के नेतृत्व में उनका प्रयोग सफल हुआ। परंतु यह सफलता ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी।

दलित राजनीति का मंडल काल

जिस तरह से नब्बे के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद पिछड़ी जातियों की राजनीतिक चेतना का उफान आया था और देश की पूरी राजनीति...

विपक्ष को मानों जीत का मंत्र मिला हो?

देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने पूरे देश में इस मुद्दे पर जन आंदोलन शुरू करने के ऐलान किया है।

ताकतवर जातियों का सियासी समय खत्म!

भारत की राजनीति का सिर्फ ऊपरी आवरण नहीं बदल रहा है, बल्कि वह अंदर से बदल रही है।

एक साथ चुनाव से पहले सुधारों की जरुरत

चुनाव आयोग यह जरूर कहता है कि वह पूरे देश का चुनाव एक साथ कराने में सक्षम है और तैयार है। यह अलग बात है कि चार राज्यों के...

‘एक देश, दो चुनाव’ ज्यादा बेहतर विकल्प है

देश में हर साल चुनाव हो या हर छह महीने पर चुनाव हो यह सचमुच अच्छी बात नहीं है।

कांग्रेस को पंचर तृणमूल, सपा को क्या मिला?

संसद का शीतकालीन सत्र कई मायने में बहुत दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम वाला रहा है।

संविधान के 75 साल का क्या हासिल?

भारत के संविधान का 75 साल का क्या वही हासिल है, जो लोकसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के सांसदों ने बताया है

ब्याज दर में कटौती समाधान नहीं है

भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कामकाज संभाल लिया है। उनको भी उसी तरह वित्त मंत्रालय का अनुभव है, जैसे उनके पूर्ववर्ती शक्तिकांत दास को था।

केजरीवाल अब लहर पर सवार नहीं हैं

दिल्ली का इस बार का चुनाव पिछले तीन चुनावों से अलग होने जा रहा है।

नेता विपक्ष ‘गद्दार’ और अमेरिका दुश्मन!

संसद के शीतकालीन सत्र में हर दिन राजनीति का नया रंग देखने को मिल रहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने किसी हाल में अडानी का मुद्दा नहीं छोड़ने...

राहुल के नेतृत्व पर गंभीर सवाल

भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी के विपक्ष का सर्वमान्य नेता होने की जो धारणा बनी थी वह सवालों के घेरे में आ गई है।

फड़नवीस के सामने बड़ी चुनौतियां

देवेंद्र फड़नवीस लौट कर आ गए हैं। उन्होंने पांच साल पहले कहा था- पानी उतरता देख कर किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समुंदर हूं लौट कर आऊंगा।

जीत गए तब भी सब जायज नहीं है!

जीत जारी कमियों को ढक देती है। जो जीत जाता है वह सिकंदर कहलाता है और कोई उस पर सवाल नहीं उठाता है। जीत गए तो गलतियां भी मास्टरस्ट्रोक...

तीसरा मोर्चा बनाने के प्रयास शुरू होंगे

लोकसभा के बाद हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव के जो नतीजे आए हैं उनसे देश की राजनीति में नया विमर्श भी शुरू हुआ है और ऐसा लग रहा...

पहले भाजपा की राजनीति को समझे कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छे प्रदर्शन से भी कोई सबक नहीं लिया है और न हरियाणा की अप्रत्याशित हार से उसने कुछ सीखा है और न...

कांग्रेस को छोड़ कर सब जानते हैं उसका हाल

मीर तकी मीर का शेर है, ‘पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने न जाने गुल ही न जाने बाग तो सारा जाने है’। कांग्रेस का भी...

आदिवासी राजनीति साधने का विफल प्रयास

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पारंपरिक राजनीति में कुछ बुनियादी बदलाव शुरू किए थे।

भाजपा की ओबीसी वोट की पहेली?

हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे हैरान करने वाले थे। दोनों राज्यों में सामान्य समझ यह कह रही थी कि भाजपा का गठबंधन चुनाव हार रहा है।

भाजपा की अदृश्य चुनावी लहर

Maharashtra election result: परंतु पिछले कुछ चुनावों से ऐसा देखने को मिल रहा है कि भाजपा की सुनामी चल रही होती है और किसी को पता ही नहीं चलता...

लोकसभा चुनाव के बाद क्या बदल गया

एक्जिट पोल के अनुमान आने के पहले से यह सवाल उठने लगा था कि आखिर लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा क्या बदल गया, जिससे भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में...

क्या मुफ्त की चीजें जीत की गारंटी होती हैं?

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में दोनों मुख्य गठबंधन मतदाताओं को अनेक सेवाएं और वस्तुएं मुफ्त में देने के वादे पर चुनाव लड़े हैं।

प्रदूषण सिर्फ आंकड़ों का मामला नहीं है

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की भयावहता बताने के लिए वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई के आंकड़े बताए जाते हैं।

चुनाव में एनडीए और ‘इंडिया’ का फर्क

विधानसभा चुनाव लड़ रही दोनों मुख्य पार्टियों या गठबंधनों के उठाए मुद्दों पर चर्चा थोड़ा जोखिम का काम है क्योंकि इन दिनों चुनाव आमतौर पर मुद्दों पर नहीं लड़े...

बुलडोजर ‘न्याय’ क्या रूकेगा?

यह लाख टके का सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की ओर से बुलडोजर ‘न्याय’ पर रोक लगाने का फैसला सुनाने के बाद अब राज्यों की सरकारें किसी भी...

उपचुनावों से न बनेगा, न बिगड़ेगा!

एकाध अपवादों को छोड़ दें तो आमतौर पर उपचुनावों का देश या राज्य की राजनीति पर कोई खास असर नहीं होता है।

विरोधाभासों से विपक्ष को मुश्किल

एक देश के तौर पर तो यह बात ठीक है कि भारत विरोधाभासों वाला देश है, जिसके बारे में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था कि ‘विरूद्धों में...