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संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।
  • विचारधारा की लड़ाई कहां है?

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर दावा कर रहे हैं कि यह लोकतंत्र और संविधान को बचाने का चुनाव है और साथ ही यह विचारधारा की लड़ाई भी है। कई विपक्षी नेता संकेतों में कही जा रही इस बात को विस्तार से समझाते हैं और बताते हैं कि अगर नरेंद्र मोदी फिर से चुनाव जीत गए तो वे आगे से चुनाव नहीं होंगे। वे संविधान को खत्म कर देंगे और देश में तानाशाही स्थापित हो जाएगी। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से भारत हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। नफरत फैलाने वाली आरएसएस की...

  • संवेदनशील मुद्दों को चुनाव से दूर रखें

    राज्य और राजनीति का संबंध चोली दामन का है। लेकिन राजनीति का अस्तित्व राज्य के पहले से है। जब राज्य की उत्पत्ति नहीं हुई थी तब भी राजनीति थी। आज भी राज्य से इतर हर जगह राजनीति मौजूद है। परिवारों में राजनीति होती है, काम करने की जगहों पर होती है, खेल के मैदान में होती है आदि आदि। कहने का मतलब यह है कि कोई भी जगह ऐसी नहीं है, जहां राजनीति नहीं है। इसके बावजूद कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनकी संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए उन्हें राजनीति से दूर रखना चाहिए। अगर उनको राजनीति में शामिल...

  • इस चुनाव को इस तरह समझे!

    यह समकालीन राजनीति की सच्चाई और जरुरत भी है कि वस्तुनिष्ठ और तर्कसंगत नहीं रहा जाए। यह अतिवादी समय है, जिसमें हर व्यक्ति अतिश्योक्ति अलंकार का अधिकता के साथ प्रयोग करता है। तभी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पीछे पीछे पूरी भाजपा और आम नागरिकों का एक समूह भी ‘अबकी बार चार सौ पार’ के नारे लगा रहा है। दूसरी ओर विपक्ष के नेताओं का समूह है, जो कह रहा है कि अबकी बार भाजपा दो सौ पार नहीं करेगी। राहुल गांधी कह रहे हैं कि दो सौ सीट नहीं आएगी तो ममता बनर्जी कह...

  • भाजपा का घोषणापत्र और वापसी का भरोसा

    भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र से बहुत लोगों को निराशा हुई है। इसमें कोई फायरवर्क नहीं है। कोई धूम-धड़ाका नहीं है। चौंकाने वाला कोई बड़ा वादा नहीं है। मुफ्त की रेवड़ी वाली कोई नई घोषणा नहीं है। कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के 10 दिन बाद जारी होने के बावजूद इसमें कांग्रेस के वादों का जवाब देने की इच्छा नहीं दिखती है। कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं है। न एनआरसी का जिक्र है और न मथुरा, काशी की चर्चा है। बड़े वादों में से एक समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को दोहराया गया है। लेकिन इसे भी नया नहीं कहा जा...

  • ज्यादा जान कर क्या करेंगे मतदाता?

    सुप्रीम कोर्ट ने ठीक कहा है कि उम्मीदवारों की भी निजता है और मतदाताओं के सामने उनकी सारी जानकारी देने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए। अदालत ने एक अहम फैसले में कहा है कि जिस बात का मतदाताओं से सरोकार नहीं हो या मतदान पर जिससे असर नहीं पड़ता हो उसके बारे में उम्मीदवारों को अपने हलफनामे में बताने की जरुरत नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने साफ  कर दिया है कि इस तरह की जानकारी अगर हलफनामे में नहीं दी गई है तो उस आधार पर किसी उम्मीदवार की जीत को चुनौती नहीं दी जा सकती है और न उसकी...

  • एक बार में क्यों नहीं मानते अदालत की बात?

    पतंजलि समूह के बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगी है। दोनों की ओर से दिए गए हलफनामे की भाषा माफी मांगने जैसी ही है। साथ ही दोनों ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अक्षरशः पालन किया जाएगा। कोई भ्रामक विज्ञापन नहीं जारी होगा और न कोई प्रेस कांफ्रेंस होगी। लेकिन सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार आदेश दिया था या मौखिक टिप्पणी की थी उसी समय क्यों नहीं उसकी बात मान ली गई थी? सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ के कहने के बावजूद भ्रामक विज्ञापन दिए...

  • किसी बहाने सही घोषणापत्र की चर्चा तो हुई

    भारत के चुनावों में सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज वह होता है, जिस पर महात्मा गांधी की फोटो होती है और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के दस्तखत होते है। इसी तरह सबसे कम महत्वपूर्ण दस्तावेज वह होता है, जिसे घोषणापत्र कहा जाता है। इसे बनाने वाला, जारी करने वाला और पढ़ने वाला कोई भी गंभीरता से नहीं लेता है। यह हर भारतीय घरों में लाल कपड़े में लपेट कर रखी गई धार्मिक पोथियों की तरह होता है, जिसे माथे तो सभी लगाते हैं लेकिन पढ़ता कोई नहीं है। अगर गलती से कोई पढ़ भी ले उसकी बातों पर अमल नहीं करता...

  • धारणा और लोकप्रियता दोनों गवां रहे केजरीवाल

    दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल में बैठ कर क्या सोच रहे होंगे? क्या उनको लग रहा होगा कि दिल्ली के लोगों में उनके प्रति सहानुभूति बन रही है और चुनाव में इसका फायदा होगा? क्या वे सोच रहे होंगे कि उन्होंने महिलाओं को एक एक हजार रुपए देने का वादा किया है या एक बड़ी आबादी को मुफ्त में बिजली और पानी दे रहे हैं तो वह वर्ग ज्यादा मजबूती से साथ में खड़ा होगा? उनकी पार्टी के नेता और कई स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि दिल्ली के उस तबके में भाजपा से नाराजगी होगी, जिसको...

  • संविधान बदलने का इतना हल्ला क्यों मचा है?

    शुरुआत इस सवाल से कर सकते हैं कि क्या कांग्रेस के शशि थरूर और जयराम रमेश को पता नहीं है कि 1950 में अंगीकार किए जाने के बाद भारतीय संविधान कितनी बार बदला जा चुका है? अगर वे जानते हैं तो फिर भाजपा के किसी नेता के संविधान बदलने की बात कहने पर इतनी प्रतिक्रिया क्यों देते हैं? इसी से जुड़ा सवाल यह भी है कि इस मसले पर भाजपा क्यों बैकफुट पर आती है? क्या उसके मन में कोई चोर है, जिसकी वजह से वह घबरा जाती है और सफाई देने लगती है? सोचें, कर्नाटक के फायरब्रांड नेता और...

  • चुनाव आयोग व सरकार दोनों की अब साख का सवाल

    लोकसभा चुनाव 2024 भारत के चुनाव आयोग और केंद्र सरकार दोनों की साख के लिए बहुत अहम हो गया है। वैसे हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने की वजह से भारत के चुनाव पर सबकी नजर भी होती है। लेकिन इस बार चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई और विपक्ष के शोर मचाने की वजह से दुनिया का ध्यान भारत के चुनाव की ओर ज्यादा दिख रहा है। तभी कांग्रेस के बैंक खाते सीज किए जाने और आयकर नोटिस की घटना के बाद अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने कहा...

  • दलबदल के दलदल में राजनीति

    लोकसभा चुनाव के बीच जिस तरह से कांग्रेस के नेता पार्टी बदल कर भाजपा में जा रहे हैं और जाते ही भाजपा की टिकट हासिल कर रहे हैं उसे लेकर सोशल मीडिया में मजाक और मीम्स की बाढ़ आई है। लोकसभा की अनेक सीटों पर भाजपा की ओर से पूर्व कांग्रेसी नेता चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार से हो रहा है। यानी कांग्रेसी और पूर्व कांग्रेसी नेता के बीच लड़ाई है। ऐसा नहीं है कि दलबदल पहले नहीं होता था लेकिन पहले कभी इतने सांस्थायिक रूप से दलबदल देखने को नहीं मिली। इस बार के चुनाव...

  • देर से ही सही पर साथ आया विपक्ष

    देर से ही सही लेकिन विपक्षी पार्टियों का चुनाव अभियान जोर पकड़ रहा है। मार्च के महीने में तीसरी बार विपक्ष की साझा रैली हुई। इसमें संदेह नहीं है कि यह काम विपक्ष को पहले करना चाहिए था क्योंकि विपक्षी एकता और गठबंधन बनाने का प्रयास पिछले साल अप्रैल-मई से चल रहा है और कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत के बाद उसके पास इसके लिए सबसे सुनहरा मौका था। फिर भी कह सकते हैं कि देर आए दुरुस्त आए। विपक्षी पार्टियों ने तीन मार्च को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में साझा रैली की और अपनी ताकत का प्रदर्शन...

  • संपूर्ण प्रभुत्व के लिए भाजपा की राजनीति

    भारतीय जनता पार्टी इस बार अखिल भारतीय राजनीति कर रही है। वह सिर्फ उत्तर भारत या पश्चिम और पूरब के अपने असर वाले इलाकों तक ही सीमित नहीं दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार के चुनाव अभियान का आगाज ही दक्षिण भारत से किया है। यह भी कह सकते हैं कि चुनावी साल यानी वर्ष 2024 की शुरुआत प्रधानमंत्री ने दक्षिण के दौरे से की। पहले 15 दिन में ही वे कई बार दक्षिणी राज्यों में गए। अभी इस साल के पहले तीन महीने में कई दक्षिण भारतीय राज्य ऐसे हैं, जहां प्रधानमंत्री मोदी के पांच पांच...

  • विपक्ष क्यों नाकाम हो रहा है

    आमिर खान की बेहद चर्चित फिल्म ‘दंगल’ में एक दृश्य है, जब महावीर फोगाट अपनी बेटियों को पुरुष पहलवानों से लड़वाने ले जाते हैं तो कुश्ती का आयोजक इसके लिए मना कर देता है। लेकिन फिर उसको उसका दोस्त समझाता है कि उसे फुलटॉस बॉल पर छक्का मारने का मौका मिल रहा है वह उसे ऐसे ही जाने दे रहा है। दोस्त के समझाने पर आयोजक मान जाता है फिर लड़कियां लड़कों से कुश्ती लड़ती हैं, जिसे देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है और इस तरह मजमा जम जाता है। यह कहानी बताने का मकसद यह है कि लोकसभा...

  • आखिर क्यों केजरीवाल गिरफ्तार हुए?

    दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं उनमें मुख्य रूप से दो सवाल हैं। पहला, क्या लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए वे कोई चुनौती खड़ी कर रहे थे? दूसरा, क्या उनकी गिरफ्तारी के बगैर शराब नीति में हुए कथित घोटाले की जांच आगे नहीं बढ़ रही थी? इन दोनों सवालों का जवाब नकारात्मक है। न तो केजरीवाल लोकसभा चुनाव में देश के स्तर पर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर रहे थे और न उनके बाहर रहने से जांच प्रभावित हो रही थी। केंद्रीय एजेंसियां डेढ़ साल से ज्यादा समय से...

  • भाजपा की असली लड़ाई प्रादेशिक पार्टियों से

    वैसे तो इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भी कई राज्यों में भाजपा को अच्छी टक्कर देती दिख रही है। दक्षिण में कर्नाटक से लेकर उत्तर में हरियाणा तक कांग्रेस कई राज्यों में मजबूती से लड़ रही है। लेकिन भाजपा को असली चिंता कांग्रेस की नहीं, बल्कि प्रादेशिक पार्टियों की है। उसके लिए अहम राज्यों में प्रादेशिक पार्टियां मजबूत हैं और उनके खिलाफ लड़ाई का इतिहास भी भाजपा के बहुत अनुकूल नहीं रहा है। हालांकि कहा जा सकता है कि प्रादेशिक पार्टियों के साथ विधानसभा चुनाव की लड़ाई में भाजपा कमजोर पड़ती है लेकिन लोकसभा में वह उनको मात...

  • बॉन्ड और ईवीएम पर विपक्ष का दोहरा रवैया

    यह कमाल की बात है कि विपक्षी पार्टियां कई चीजों का मुहंजबानी विरोध करती हैं, उसके खिलाफ अभियान भी चलाती हैं लेकिन उसे लेकर दृढ़ नैतिक बल नहीं दिखाती हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम दो मामलों में यह साफ दिख रहा है। चुनावी चंदे के लिए इस्तेमाल हुए चुनावी बॉन्ड और लोकसभा व चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम के इस्तेमाल का मामला ऐसा है, जिस पर विपक्षी पार्टियों ने अपना विरोध तो जताया लेकिन इनके प्रतिरोध में कोई दृढ़ नैतिक बल नहीं दिखाया। इसका नतीजा यह हुआ है कि विपक्षी पार्टियों...

  • ऐसे कराएंगे एक साथ चुनाव!

    क्या अद्भुत विडम्बना है कि जिस दिन ‘एक देश, एक चुनाव’ पर विचार के लिए बनी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति को सौंपी उसके अगले दिन चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 सात चरणों में कराने का ऐलान किया! एक तरफ लोकसभा और देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का हुंकारा था तो दूसरी ओर लोकसभा और चार राज्यों का विधानसभा चुनाव सात चरणों में और 81 दिन में कराने की घोषणा थी! कुछ और तथ्यों को इसमें जोड़ें तो विडम्बना और बड़ी हो जाती है। One...

  • चुनावी बॉन्ड से आगे क्या रास्ता?

    राजनीतिक चंदे के लिए बनाई गई चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था विफल हो गई है। चुनावी चंदे को साफ-सुथरा बनाने और राजनीति में काले धन का प्रवाह रोकने के घोषित उद्देश्य से लाया गया यह कानून अपने उद्देश्य में पूरी तरह से असफल रहा है। उलटे इससे जुड़े अनेक ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं, जिससे लग रहा है कि यह अपने आप में काले धन के प्रसार का माध्यम बन गया था। हैरानी इस बात को लेकर है कि सरकार के स्तर पर इसकी विफलता को स्वीकार करने की बजाय इसका बचाव किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले...

  • भाजपा के दक्कन अभियान की चुनौतियां

    भौगोलिक रूप से हिमालय की चढ़ाई मुश्किल मानी जाती है लेकिन राजनीतिक रूप से उत्तर भारत की पार्टियों और शासकों के लिए दक्कन का अभियान हमेशा मुश्किल रहा है। मध्य काल में मुगल शासकों के लिए भी दक्कन की चुनौती हमेशा रही तो अंग्रेज, पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी सबने भारत का अपना अभियान दक्कन से शुरू किया लेकिन किसी का साम्राज्य दक्कन में ज्यादा फला-फूला नहीं। South India big challenge for BJP सबसे सफल औपनिवेशिक ताकत यानी ब्रिटिश राज भी गंगा के मैदानी इलाकों में ही समृद्ध हुआ। सतपुड़ा के घने जंगलों और विंध्य पर्वत के दक्षिण में उनको भी नाकों...

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