delhi election 2025: कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले कुछ दिनों से अपने को ओबीसी और दलित सरोकार के चैम्पियन के तौर पर भारतीय राजनीति में स्थापित करने के प्रयास में जुटे हैं।
इसका क्या फलाफल होगा इस पर अभी विश्लेषण की जरुरत नहीं है। लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि पिछली सदी के छठे दशक के अंत में यानी जब से गैर कांग्रेसवाद की राजनीति मजबूती से स्थापित हुई तभी से कांग्रेस ओबीसी और दलित का समर्थन गंवाती जा रही है।
दूसरी अहम बात यह है कि नब्बे के दशक की शुरुआत में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद से किसी सवर्ण नेता के पिछड़े और दलित के सरोकार का चैंपियन बनने की संभावना लगभग खत्म हो गई है।
पिछड़ों और दलितों के अपने नेतृत्व की तलाश पूरी हो गई है। उनको किसी और की ओर देखने की जरुरत नहीं है। (delhi election 2025)
हां, मुस्लिम जरूर अभी अपना नेता खोज रहे हैं और जब तक नहीं मिला है, तब तक राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी आदि में अपना मसीहा देख रहे हैं।
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इंदिरा गांधी के समय भरोसा कायम
बहरहाल, अब राहुल गांधी जाति गणना और आरक्षण बढ़ाने की अपनी लफ्फाजी से आगे बढ़े हैं और पिछले दिनों एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘इंदिरा गांधी के समय में पिछड़े और दलितों का पूरा भरोसा कायम था।
दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के लोग जानते थे कि इंदिरा गांधी उनके लिए लड़ेंगी और मरेंगी। लेकिन 1990 के दशक से यह भरोसा कम होता जा रहा है और मैं इसे देख सकता हूं’।
उनकी इस बात पर भीड़ में से किसी ने पीवी नरसिंह राव का नाम लिया और कहा कि उनके कार्यकाल से ही भरोसा कम हुआ तो राहुल गांधी ने कहा, ‘मैं नाम नहीं लूंगा लेकिन सचाई है और कांग्रेस पार्टी को इस सचाई को स्वीकार करना चाहिए’।
राहुल ने नाम नहीं लिया लेकिन ओबीसी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक का समर्थन गंवाने का ठीकरा नरसिंह राव के ऊपर फोड़ दिया।
यह पिछले साढ़े चार दशक की राजनीति का वह अधूरा सच है, जिसे राहुल ने अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से प्रस्तुत किया।(delhi election 2025)
अधूरा सच भी झूठ के बराबर(delhi election 2025)
सबसे पहले तो यह समझने की जरुरत है कि कांग्रेस ने ओबीसी का समर्थन गंवाया तभी गैर कांग्रेसवाद की राजनीति मजबूत हुई।
बिहार और उत्तर प्रदेश से लेकर अनेक राज्यों में संविद सरकारों का बनना और गैर कांग्रेस पार्टियों के पिछड़ी जातियों के नेताओं का मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना वह बिंदु है, जहां से कांग्रेस ने ओबीसी का समर्थन गंवाना शुरू किया।
दूसरी सचाई यह है कि इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से ओबीसी की अनदेखी की क्योंकि उनको लगता था कि इस राजनीति से दलित और सवर्ण दोनों कांग्रेस के साथ मजबूती से जुड़े रहेंगे।
तभी दशकों तक यह धारणा बनी रही कि दलित, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक कांग्रेस का सबसे मजबूत वोट आधार है और उसके दम पर कांग्रेस राज करती रहेगी।(delhi election 2025)
नब्बे के दशक की शुरुआत में जब बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा टूटा तो मुस्लिम का और बहुजन समाज पार्टी व अन्य दलित पार्टियों का उभार हुआ तो दलित समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग शुरू हुआ।
तभी राहुल जब कांग्रेस की ऐतिहासिक भूलों की बात कर रहे थे और माफी मांगने के मूड में थे तो उनको सचाई सामने रख कर उसके परिप्रेक्ष्य में बात करनी चाहिए थी।
लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने उसी कार्यक्रम में कहा कि वे झूठ नहीं बोलते हैं लेकिन अधूरा सच भी तो झूठ के बराबर ही होता है!
नरसिंह राव 1991 में प्रधानमंत्री बने
दिवंगत पीवी नरसिंह राव की साख बिगाड़ कर या उन पर ठीकरा फोड़ कर कांग्रेस की ऐतिहासिक गलतियों पर परदा नहीं डाला जा सकता है।(delhi election 2025)
नरसिंह राव तो 1991 में कांग्रेस के अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री बने थे और तब तक मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू हो चुकी थी। बिहार में लालू प्रसाद और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन चुके थे।
फिर ओबीसी राजनीति के उभार में नरसिंह राव की नीतियां कैसे दोषी हुईं? राहुल यह क्यों नहीं बता रहे हैं कि 1979 में जब बीपी मंडल की अध्यक्षता वाले मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने की सिफारिश केंद्र सरकार को सौंप दी थी तो 1980 में सत्ता में आईं इंदिरा गांधी ने या उसके बाद 1984 से 1989 तक प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी ने उसे क्यों नहीं लागू किया था?
लगातार 10 साल कांग्रेस की सरकार थी, इंदिरा और राजीव गांधी ने प्रचंड बहुमत से शासन किया लेकिन पिछड़ों को आरक्षण देने की सिफारिश धूल खाती रही और आज राहुल गांधी उसके बाद प्रधानमंत्री बने नरसिंह राव को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं!
राहुल गांधी इस बात को नहीं जानते
असलियत यह है कि इंदिरा और राजीव गांधी दोनों अपने दलित, ब्राह्मण यानी सवर्ण और मुस्लिम वोट के भरोसे में रहे और ओबीसी वोट की ओर ध्यान नहीं दिया।
उन्होंने मान लिया था कि ओबीसी वोट समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ है। उनको यह भी लगता रहा कि अगर इस समीकरण में छेड़छाड़ करेंगे तो हिंदुवादी राजनीति करने वाली पार्टियों को फायदा हो सकता है।
इसलिए भारतीय राजनीति में मौजूद इस सामाजिक विभाजन की यथास्थिति को कायम रहने दिया गया। ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी इस बात को नहीं जानते हैं।(delhi election 2025)
उनको निश्चित रूप से पता होगा कि कांग्रेस ने अस्सी के दशक में क्या राजनीति की। यह ध्यान रखने की बात है कि अस्सी के दशक में कांग्रेस ने जो राजनीति की वही राजनीति नब्बे के दशक में जारी रही। कम से कम ओबीसी वोट के संदर्भ में यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है।
नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री (delhi election 2025)
इस बात को समझने के लिए कई बातें कही जा सकती हैं लेकिन हिंदी पट्टी के उस समय के चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सूची से भी इसे समझा जा सकता है।(delhi election 2025)
1980 से 1990 के बीच बिहार में कांग्रेस की सरकार रही और इस दौरान डॉ. जगन्नाथ मिश्र, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा आजाद, सत्येंद्र नारायण सिंह और फिर डॉ. जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने और इतिहास गवाह है कि उसके बाद पिछले 35 साल में फिर कोई अगड़ी जाति का नेता बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बना।
इसी अवधि में इंदिरा और राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश में विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्रीपति मिश्र, नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह और फिर नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया।
इन दोनों नेताओं ने इसी अवधि में मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा फिर अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा और फिर श्यामाचरण शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाया।
यानी हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों में 10 साल तक इंदिरा और राजीव गांधी ने सिर्फ ब्राह्मण या राजपूत मुख्यमंत्री बनाए।(delhi election 2025)
अगर राजस्थान की बात करें तो वहां एक साल 38 दिन के जगन्नाथ पहाड़िया के राज को छोड़ दें तो कांग्रेस ने नौ साल में शिवचरण माथुर, हीरालाल देवपुरा, हरिदेव जोशी, फिर शिवचरण माथुर और फिर हरिदेव जोशी को सीएम बनाया।
यानी हिंदी पट्टी के चार बड़े राज्यों में, जिनसे आज सात राज्य बने हैं, कांग्रेस ने दस साल में एक भी पिछड़ा मुख्यमंत्री नहीं बनाया और राहुल गांधी नब्बे के दशक की राजनीति को दोष दे रहे हैं!
कांग्रेस ने 27 वर्षों में क्या राजनीति की
राहुल गांधी को खुद सक्रिय राजनीति करते हुए 21 साल हो गए और सोनिया गांधी 27 साल पहले कांग्रेस अध्यक्ष बनी थीं।(delhi election 2025)
कांग्रेस ने इन 27 वर्षों में क्या राजनीति की है उस पर भी अगर राहुल गांधी वस्तुनिष्ठ ढंग से विचार करेंगे तो उनको समझ में आएगा कि कहां गलती हुई है।
यह अच्छी बात है कि वे ऐतिहासिक गलतियों को स्वीकार कर रहे हैं लेकिन उसे ठीक करने का उनका प्रयास मुहजंबानी ज्यादा है और व्यावहारिक कम है।(delhi election 2025)
ऐतिहासिक गलतियों को स्वीकार करते हुए भी वे यह प्रयास कर रहे हैं कि नेहरू, गांधी परिवार की राजनीति पर सवाल नहीं उठे और जिस एक नरसिंह राव को कांग्रेस नेता पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से बदनाम करने में लगे हैं उन्हीं को अपने परिवार की राजनीतिक गलतियों के लिए भी जिम्मेदार ठहरा दिया जाए।
उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए कि पिछड़े, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक का अगर मोहभंग हुआ है तो असली कारण क्या है और वे, उनकी मां और बहन मिल कर क्यों दलित, आदिवासी, पिछड़े को कांग्रेस में वापस नहीं ला रहे हैं। दूसरे के सिर गलती मढ़ कर इन समूहों का विश्वास जीत लेने का भरोसा उन्हें नहीं पालना चाहिए।