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08-07-2025 Vol 19

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

भारत में शिक्षा और परीक्षा की समस्याएं

प्रवेश और प्रतियोगिता परीक्षाओं की इन गड़बड़ियों और शिक्षा व्यवस्था पर पड़ते इनके प्रभाव को लेकर सहज रूप से पूरे देश में चिंता है।

जम्मू कश्मीर में बिगड़ते हालात

जम्मू कश्मीर के हालात बदल रहे हैं। बाहरी लोगों पर हमले और हत्या के बाद अब सुरक्षा बलों पर हमले का सिलसिला तेज हो गया है।

संविधान हत्या दिवस की जरुरत क्यों?

अंत में यह भी समझना मुश्किल है कि इमरजेंसी लागू करना संविधान की हत्या कैसे है? संविधान के अनुच्छेद 352 में इमरजेंसी लगाने का प्रावधान है

राजनीतिक विभाजन कहां तक पहुंच गया

भारत की राजनीति इतनी विभाजित कभी नहीं रही, जितनी अभी है। पार्टियां और नेता एक दूसरे को अब राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं मान रहे हैं, बल्कि शत्रु मान रहे हैं।

क्षत्रपों को काबू में कर पाएंगे राहुल?

कांग्रेस आलाकमान इन राज्यों के चुनाव की कमान सीधे अपने हाथ में लेकर अपने सर्व शक्तिमान होने का संदेश बनवा सकती है।

राजनीतिक और प्रशासनिक जवाबदेही कहां है?

इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के टर्मिनल एक की पार्किंग एरिया में कैनोपी यानी छत गिर गई। इस हादसे में आठ गाड़ियां दब गईं।

जनगणना कब तक स्थगित रहेगी?

नई लोकसभा का पहला सत्र संपन्न हो गया है और अब सरकार मानसून सत्र की तैयारी कर रही है, जिसमें वित्त वर्ष 2024-25 का बजट पेश किया जाएगा।

पहला सत्र तो अच्छा नहीं रहा

राहुल के मन में मोदी के प्रति स्थायी दुश्मनी का भाव बना है और वह राजनीति के दायरे से थोड़ा आगे भी है।

गवाहों, सबूतों पर इतना खतरा क्यों है?

सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां अदालत के सामने खड़े होकर हर आरोपी की जमानत का विरोध करती हैं तो हिंदी फिल्मों का दृश्य सजीव हो जाता है।

परीक्षा सुधारों पर विमर्श कहां है?

क्या एक कमेटी बना देने और उसकी सिफारिशों से परीक्षा की व्यवस्था में सुधार हो जाएगा? यह इतना आसान काम नहीं है।

नए कानून में पुलिस को और ताकत!

अंग्रेजों के जमाने में, 1861 में बने तीन आपराधिक कानूनों को नया नाम मिल गया है और कई अपराधों की धाराएं बदल गई हैं।

सुलह, सद्भाव के मूड में नहीं सरकार

ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी तरह से सरकार के या खुद के कमजोर होने का मैसेज नहीं बनने देना चाहते हैं।

कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की चुनौती

बिना संगठन या बिना कैडर के कैसे पुनर्जीवित होगी? ध्यान रह हर बार जनता चुनाव नहीं लड़ती है। जनता ने एक बार चुनाव लड़ा दिया और अपने पैरों पर...

आरक्षण की सीमा पर नई बहस

पटना हाई कोर्ट ने बिहार में आरक्षण बढ़ाने के कानून को निरस्त कर दिया है। उच्च अदालत ने फैसले को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द किया है।

अखाड़ा न बन जाए इस बार संसद

इस बार मतदाताओं ने ऐसा जनादेश दिया है कि हारने वाला जीत की भावना से भरा है और जश्न मना रहा है तो जीतने वाल हार की फीलिंग लिए...

कई प्रादेशिक पार्टियों के अस्तित्व पर खतरा

इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे कई प्रादेशिक पार्टियों के लिए खतरे की घंटी हैं। कई राज्यों में मजबूत रहीं प्रादेशिक पार्टियों का अस्तित्व खतरे में दिख रहा है।...

केंद्र-राज्य संबंधों के लिए सही जनादेश

गर केंद्र में कोई बहुत मजबूत या ज्यादा बड़े बहुमत वाली सरकार आ जाती है तो शासन के संघीय ढांचे के लिए चुनौती पैदा हो जाती है।

पार्टियां स्पीकर से नहीं मतदाताओं से बचती हैं!

कांग्रेस और लेफ्ट का पूरा इकोसिस्टम भी इस प्रचार में लगा है कि अगर लोकसभा का स्पीकर भाजपा का बना तो नायडू और नीतीश की पार्टी नहीं बचेगी।

नीट परीक्षा में गड़बड़ियां तो है! दोषी कौन?

सवाल है कि अगर किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है और एनटीए में क्लैट की परीक्षा में अपनाए जाने वाले नियम को नीट-यूजी पर लागू किया तो फिर...

शासन की निरंतरता और गठबंधन की मजबूरी

कुल मिला कर देश की आर्थिक, सामरिक, सामाजिक नीतियों में कम से कम मंत्रियों के जरिए निरंतरता का संदेश दिया गया है।

चुनाव नतीजे की तीन अहम बातें

तीन में सबसे पहली बात है अयोध्या यानी फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा का हार जाना। दूसरी बात है दक्षिण भारत में भाजपा के वोट में बढ़ोतरी

गठबंधन सरकार और मोदी का एजेंडा

कुछ राजनीतिक मसले तो गठबंधन की सरकार के बावजूद आगे बढ़ेंगे लेकिन परिसीमन, यूसीसी या धर्म से जुड़े मुद्दों पर सरकार के लिए सहमति बनाने की मजबूरी होगी।

मोदी के तीसरे कार्यकाल की चुनौतियां

प्रधानमंत्री स्वंय और भाजपा के अन्य नेता खूब आत्मविश्वास दिखा रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि सरकार के संचालन में कोई समस्या नहीं होगी। परंतु हकीकत उनको...

अबकी बार विपक्ष को मौका

इस बार उसने बहुत मजबूत विपक्ष चुना है। इतना मजबूत, जितना आजाद भारत के इतिहास में कभी नहीं रहा है।

सहज राजनीति के दिन लौटे?

क्या अब केंद्र में ज्यादा समावेशी सरकार बनेगी और क्या संघवाद की जिस अवधारणा को पिछले 10 साल से चुनौती मिल रही थी वह चुनौती समाप्त हो जाएगी?

नतीजा जो हो, प्रचार अच्छा नहीं था!

यह अब तक का सबसे लंबा चुनाव प्रचार अभियान था और यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि लोकतांत्रिक मर्यादा के स्थापित पैमानों पर सबसे खराब प्रचार अभियान...

संविधान का मुख्य चुनावी मुद्दा बन जाना

भाजपा का इतिहास भी ऐसा रहा है कि वह संविधान और आरक्षण दोनों की समीक्षा की बात करती रही है।

मतदाता क्यों मुंह मोड़ रहे हैं?

छह चरण के चुनाव के बाद मतदान के आंकड़े दूसरी कहानी बयां कर रहे हैं।

सीटों की संख्या का मनोवैज्ञानिक दांव

इस बार हर व्यक्ति एक दूसरे से पूछ रहा है कि क्या भाजपा को 370 और एनडीए को चार सौ सीटें आ जाएंगी?

छह मुद्दे, जो इस चुनाव में नहीं हैं

दोनों तरफ से गारंटियों की बात हो रही है। एकदम खटाखटा! और साथ ही दोनों तरफ से एक दूसरे के बारे में झूठ बोला जा रहा है।

चुनाव आयोग गूंगा, अंधा, बहरा है!

ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रधानमंत्री ने चुनाव आयोग की बात पर ध्यान देने की जरुरत नहीं समझी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी आयोग की बात पर कोई...

क्षेत्रीयता की भावना बढ़ रही है

पहले भी अलग अलग राज्यों के नेता प्रधानमंत्री होते थे लेकिन उनकी वजह से राज्यों में विभाजन इसलिए नहीं होता था क्योंकि प्रधानमंत्री ही हर राज्य में चुनाव लड़ते...

विपक्ष है 2004 के सिंड्रोम में!

विपक्षी पार्टियां 2004 के लोकसभा चुनाव के सिंड्रोम से प्रभावित दिख रही हैं।

भाजपा का उलझा हुआ चुनाव प्रचार

भारतीय जनता पार्टी बहुत स्पष्ट और वैचारिक रूप से ठोस मुद्दों के ऊपर लोकसभा चुनाव का प्रचार नहीं कर रही है और न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों का...

चार चरण के बाद चुनाव कहां?

लोकसभा चुनाव 2024 समापन की ओर बढ़ रहा है। चार चरण में दो तिहाई से ज्यादा सीटों पर मतदान हो चुका है। आखिरी तीन चरण में अब 163 सीटों...

विपक्ष आराम से चुनाव लड़ रहा है

10 साल तक प्रधानमंत्री रहने के बाद नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार में जी जान लगाए हुए हैं तो इस चुनाव को आखिरी चुनाव बता रहा विपक्ष रूटीन अंदाज में...

झूठे वादों के जाल में नहीं फंसते मतदाता

हमें जनता के नीर क्षीर विवेक पर भरोसा करना चाहिए। वे जिसे चुन रहे होंगे, ठीक ही चुन रहे होंगे।

चुनाव के मुद्दे पहले से तय होते हैं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जमानत पर जेल से छूटने के बाद भाजपा के लिए मुश्किल बढ़ा रहे हैं।

सिर्फ आचार संहिता काफी नहीं है

लोकतंत्र के लिए एक बड़े राजनीतिक विचारक ने कहा था कि इसमें अधिकतम भ्रम दिया जाता है और न्यूनतम सत्ता दी जाती है। जनता के हाथ में कुछ नहीं...

बिना लहर के चुनाव का सस्पेंस

नरेंद्र मोदी के नाम के अंडरकरंट से इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन ऊपर से कोई चुनावी लहर नहीं दिखाई दी।

भाजपा के सहयोगियों का क्या होगा?

एक श्रेणी ऐसी पार्टियों की है, जो अब भी भाजपा के साथ हैं और दूसरी श्रेणी ऐसे दलों की है, जो कभी भाजपा के साथ रहे हैं लेकिन अब...

रायबरेली, अमेठी का बेसिर पैर का फैसला

राहुल जीत कर सीट खाली कर देंगे और तब प्रियंका लड़ेंगी लेकिन अभी यह मैसेज गया है कि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में राहुल की टीम ने प्रियंका को...

अभिनेताओं और खिलाड़ियों को क्यों चुनना?

तभी सवाल है कि फिर अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी या गैंगेस्टर और बाहुबली को क्यों संसद सदस्य के तौर पर चुनना चाहिए?

भाजपा जीती तो क्या कयामत आएगी?

अगर राहुल गांधी और कांग्रेस व दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेताओं की बातों पर यकीन करें तो ऐसा ही होगा।

भाजपा प्रोपेगेंडा में, कांग्रेस आई तो यह होगा…

भाजपा ऐसी बातें कर रही हैं, जिनका जिक्र सारे फसाने में नही है। यहां वही बातें लिखी जा रही हैं, जो भाजपा कह रही है।

कांग्रेस के मुद्दों पर लड़ रही भाजपा!

भाजपा का पूरा चुनाव प्रचार ही बदल गया है। भाजपा अब तक जिन मुद्दों पर प्रचार कर रही थी वो सारे मुद्दे हाशिए में चले गए हैं। उनकी जगह...

केंद्र और राज्यों में इतने झगड़े!

केंद्र में बहुत मजबूत सरकार होती है तो राज्यों के साथ विवाद बढ़ता है क्योंकि तब केंद्र की प्रवृत्ति किसी न किसी तरह से राज्यों को नियंत्रित करने की...

मोदी का वह अंहकार और अब?

सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह चिंता सताने लगी कि कांग्रेस सत्ता में आ गई तो क्या कर देगी?