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स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।
  • कांग्रेस ओबीसी राजनीति छोड़े, पुरानी समावेशी बने!

    कांग्रेस एक अलग तरह की पार्टी है। भारत की विविधता और समावेशी संस्कृतिकी सच्ची प्रतिनिधि। भाजपा अपने संकीर्ण रवैये की वजह से बन नहीं पाई।कांग्रेस को यही समझना है और अपने आजमाए हुए पुराने नुस्खों से काम करनाहै। भाजपा के हथकंडों में नहीं उलझना है। भाजपा की राजनीति बिल्कुल अलगहै। वह न कांग्रेस के काम में आएगी और न अब देश में ही चल पाएगी। जातिगत जनगणना ठीक है। मगर उसके लिए पहले सरकार बनानी होगी। अपना आधारछोड़कर कांग्रेस यह काम नहीं कर सकती। दलित, पिछड़े, आदिवासियों को ऊपरउठाना कांग्रेस का हमेशा से लक्ष्य रहा है। लेकिन इसके साथ ही...

  • चुनाव बेरोजगारी और महंगाई पर होगा

    राहुल ने राजनीतिक बात कही थी। मोदी जी उसे धार्मिक बना रहे हैं।वैसे ही जैसे कर्नाटक चुनाव मेंनरेंद्र मोदी ने बजरंग दल को बजरंग बली के रुप में पेश किया था।नारे लगाए। कहा जय बजरंग बली कहकर वोट डालने जाना। जनता ने जयबजरंग बली बोला और बीजेपी के खिलाफ वोट डाल आई।मोदीजी ने कर्नाटक चुनाव परिणामों सेकोई सबक नहीं लिया।..इस बार लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ मोदी जी ने राहुल के एक शब्द को पकडॉ शक्ति का पहला मुद्दा  बनाया। इसका मतलब क्या दस साल सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्रीमोदी के पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ नहीं...

  • बीजेपी के पास ध्रुवीकरण के अलावा और कुछ नहीं

    हालात बदलते दिखने लगे हैं। और सबसे पहले यह उस बीजेपी को दिखना शुरू हुए हैजिसका सबसे बड़ा दांव लगा है।हरियाणा में उसने अपना मुख्यमंत्री बदल दिया है। उससे पहले जिस नागरिकताकानून को ठंडे बस्ते में डाल रखा था उसे अचानक निकाल कर लागू कर दिया। जिन गाली देने वालों को खूब आगे बढ़ाते थे उन रमेश बिधुड़ी, प्रज्ञा सिंहका टिकट काट दिया। मोदी अपने तीसरे टर्म के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। हालांकि उनके तरकशमें तीर केवल एक ही है। सांप्रदायिक ध्रुविकरण का। उसी को बार बार वह औरचमका कर नुकीला कर के आजमाते हैं। मगर कहते हैं कि...

  • मीडिया बीस साल से राहुल का विरोधी

    राहुल आज के टारगेट नहीं हैं। बीस साल से हैं। और जिसे गोदी मीडिया आज कह रहे हैं दरअसल वह यथास्थितिवादी मूल्यों को बनाए रखने वाला दक्षिणपंथी सोच का मीडिल क्लास है। उसे राहुल की प्रगतिशीलता पाखंड मुक्त सहजता बहुत परेशान करती है। Rahul Gandhi congress शुरू से जब राहुल दलितों के घर जाते थे तो उसकी पारंपरिक सोच को चोट पहुंचती थी। इधर कांग्रेस में भी ऐसे लोग बड़ी तादाद में थे जो राहुल की धर्मनिरपेक्ष, दलित समर्थक, जनपक्षीय सोच के विरोधी थे। उन्होंने अपने अपने तरीके से राहुल विरोधी मीडिया और पार्टी के व्यक्तियों को खूब आगे बढ़ाया।...

  • समय बड़ा बलवान, युवा उठ रहा बेरोजगारी मुद्दे पर?

    युवाओं का नशा एकदम से उतरा दिखने लगा है। यूपी में पुलिस भर्ती का पर्चालीक होने के बाद बेरोजगारों पर चढ़ा धर्म का नशा काफूर हो गया। दस साल से इस हिन्दु-मुसलमान के नशे में डूबे नौजवान ओवर एज की दहलीज तक आ गए थे। वैकेन्सी निकल नहीं रही थीं। जो निकलती थीं उसकी परीक्षा कैंसिल हो जाती थी। परीक्षा होती थी तो पेपर लीक हो जाता था। कब तक बिना काम धाम के रहकरमोदी, मोदी करते?...यूपी के युवा आंदोलन का ऐसा असर हुआ कि कांग्रेस ने अग्निपथ योजना के खिलाफ अपनी आवाज अचानक तेज कर दी। youth unemployment क्या...

  • गुलाम नबी, कमलनाथ जैसों का क्या ईमान-धर्म?

    अहसानफरामोश तो अहसानफरामोश ही होता है। जिस कांग्रेस ने सब कुछ दिया, या इसको जम्मू कश्मीर के कांग्रेसी ऐसे भी कहते हैं कि क्या नहीं दिया तो जबउन्होंने कांग्रेस को नहीं बख्शा तो फारुख अब्दुल्ला को स्पेयर करने कासवाल ही नहीं!...कमलनाथ अकेले नहीं हैं। वे अब जाएं या भाजपा द्वारा न लिएजाएं उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने अपना अवसरवादी चेहरा दिखादिया। इतना तो 2019 में राहुल गांधी को नहीं मनाया गया था जितना कमलनाथ को कांग्रेस नेता ने अभी मना रहे हैं।कांग्रेसियों ने सारे दावे कर दिए है कि वे नहीं जा रहे। मगर उनके श्रीमुख से अभी...

  • लोकतंत्र में किसान जैसे दुश्मन सेना!

    किसानों के साथ यह कैसा सलूक?  दुश्मन सेनाको रोकने के लिए जैसे राजे-रजवाड़ों के समय किले के बाहर खाइयां खोद दी जाती थी। शहर केदरवाजों पर बड़ी बड़ी कीलें जड़ दी जाती थीं। दीवार पर खौलते हुए तेल कीकड़ाहियां होती थीं। अभी मंगलवार को जब यह लिख रहे हैं तो हरियाणा केशंभू बार्डर पर पुलिस किसानों पर आसूं गैस के गोले दाग रही है। ऊपर आसमानसे ड्रोन से आंसू गैस के गोले फेंके जो रहे हैं। पत्रकारों को करीब 5किलोमीटर दूर रोक दिया गया है।यह क्या दुश्मन से निपटने से कम है? लोग कहते हैं धर्म का नशा क्या होता...

  • झारखंड, चंडीगढ़ और ‘इंडिया’ का हौसला

    नीतीश कुमार ने गठबंधन बदला मगर उनसे तत्काल विश्वास मत हासिल करने को नहीं कहा गया। लेकिन झारखंड में को केवल विधायक दल का नेता बदला गया और उससे एक दिन में विश्वास मत हासिल करने को कहा गया। नीतीश ने तो सुबह इस्तीफा दिया और शाम को फिर नए गठबंधन के साथ शपथ दिला दी गई। मगर झारखंड में नए मुख्यमंत्री को शपथ दिलाने में जब कि वहां गठबंधन में कोईपरिवर्तन नहीं हुआ था दो दिन तक लटकाया गया। जैसे इन दिनों वसंत अचानक आया लग रहा है वैसे ही राजनीतिक समय भी अचानक बदलता दिख रहा है।  सोमवार...

  • मोदी के नशे का तोड़ क्या?

    उधर के भक्त मोदीजी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते मगर इधर के भक्त किसी काम के नहीं। और बात भक्तों की क्या कांग्रेस के बड़े नेता भी या दूसरे विपक्षी दलों के नेता भी केवल मोदी विरोध को ही हथियार बनाए हुए हैं लेकिन मोदी के और बढ़ते जादू, उनके नशे का तोड़ नहीं ढूंढ पा रहे।...विपक्ष याद रखे भूखे भजन न होई गोपाला!बेरोजगार, महंगाई की मार से त्रस्त जनता ज्यादा समय तक भजन नहीं कर सकती। यही सही और आखिरी समय है जब उसे जगा दिया जाए। भक्त उधर भी हैं। भक्त इधर भी। मगर फर्क है। उधर के...

  • राहुल का यात्रा से सभी विपक्षी दलों को लाभ

    राहुल गांधी की यात्रा से सभी विपक्षी दलों को फायदा मिलेगा। इसलिए क्योंकि जब डर कामाहौल हटेगा तो उसका सभी विरोधी नेताओं को फायदा है। और डर एक ऐसी चीज है जब हटेगीतो जैसे अब कुछ ही दिनों बाद वसंत आने वाला है। कोहरा एकदम से छंट जाएगा।वैसे ही डर की ठिठुरन भी सूरज के तेज निकलने से एकदम से गायब हो जाएगी।और जैसे सूर्य के ताप का फायदा सबको मिलता है वैसे ही राहुल की इस न्यायभारत जोड़ो यात्रा का फायदा सभी विपक्षी दलों को मिलेगा। बशर्त की वेऐन वक्त वे मायावती वाली राजनीति न कर लें। सवाल है...

  • विपक्ष जान ले अभी नहीं तो कभी नहीं!

    समय बहुत कम बचा है। इसमें राहुल की यात्रा भी है। सीट शेयरिंग फाइनल और उसमें दिखे की सबकी कुर्बानी है जल्दी से जल्दी सबके सामने लाना है। विपक्ष को भाजपा को देखना चाहिए और हो सके तो थोड़ा सीखना भी चाहिए कि किस तरह ठीक लोकसभा चुनाव से पहले वह राम मंदिर का उद्घाटन कर रही है। 22जनवरी के बाद मोदी इसी मुद्दे को लेकर चुनाव में जाएंगे।…लालू जी को फिर उस बात को जोर देकर दोहराना चाहिए जो उन्होंने विपक्षी एकता की मुंबई मीटिंग में कही थी कि हमारी सबकी भावना यह है कि दो सीटें चाहे कम...

  • आडवाणी, डा जोशी से भला क्या दिक्कत?

    भारत में वरिष्ठ जनों का हमेशा सम्मान होता रहा है। मगर दक्षिणपंथी और प्रतिक्रियावादी शोर मचाए होते हैं हम संस्कारी है। बुजुर्गों का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी सेवा करते हैं। मगर सच्चाई वही होती है जो अभी भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने आडवाणी और डा जोशी को राम मंदिर को न्यौता यह कहते हुए दिया कि भाईसाहब आप आने की तकलीफ नहीं करना। आपको परेशानी होगी।....बहरहाल, निराश होने का कोई कारण नहीं। समय है चला जाएगा। हमारा एक दोस्त पत्रकार कहता है कि जब अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा भी नहीं रहेगा! दक्षिणपंथ और प्रतिक्रियावाद किसी परंपरा, संस्कृति,...

  • कांग्रेस सुधरे, ‘इंडिया’ में सही सीट शेयरिंग हो तभी…

    2024 लोकसभा कांग्रेस के लिए आखिरी मौका है। मैच अभी भी गया नहीं है। हाथमें है। बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी शिक्षा, चिकित्सा आज भी बड़े इश्यू हैं। अगर इन्हें लेकर एक सीट पर एक लड़ लिए तो मोदी जी के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। हिन्दू-मुसलमान कुछ नहीं चलेगा। बस सीट शेयरिंग इस भावना से हो जाए कि हमारी जैसे भी हो सीटें आए तो लड़ाई कांटे की हो सकती है। ....दस साल हो गए लेकिन कांग्रेस अपनी कमियां खोजने में पूरी तरह असफल रही। और दस साल क्या?  कांग्रेस का पतन 2012 से शुरू हो गया था। दो तरीके होते...

  • कांग्रेस को कांग्रेसी नेताओं ने मारा

    पूरे पांच साल गहलोत औरपायलट लड़ते रहे।...गहलोत तो वैसे भी जब भी मुख्यमंत्री बने हैं कभी बात नहीं करते। हार कर वापस आने के बाद ही मिलते हैं। इसलिए उनका पांच साल तक नहीं मिलना कोई नई बात नहीं है। वह तो एक प्रसंग आ गया तो उनका नाम लिख दिया। नहीं तो कांग्रेस में अधिकांश नेता ऐसे हैं जो पावर में रहते हुए चाहे वह सरकार का हो या संगठन का कभी बात नहीं करते। अपने अहंकार को वे अपना बड़प्पन समझते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि वे कितने छोटे होते चले जा रहे हैं। कांग्रेस हार...

  • अब राहुल ट्वंटी – 20 वाले शाट मारने लगे!

    पहली बार है जब कांग्रेस भाजापा से बातों की लड़ाई में आगे जा रही है। प्रियंका भी मोदी जी को खूब जवाब देती हैं। जनता को यह अंदाज बहुत पसंदआता है। राहुल यह समझ गए हैं। वे अब ट्वंटी ट्वंटी में उसी के हिसाब सेखेल रहे हैं। क्रास बैट। बाल को जोर से मारना है। कैसे मारना है। बेटसीधा, फुट वर्क यह सब उन्होंने टेस्ट के लिए रख दिया है।पहले राहुल ट्वंटी ट्वंटी में भी टेस्ट मैच जैसी क्लासिक बैटिंग कर रहे थे। अब धांय धूं करने लगे हैं। राहुल गांधी ने कहा है उनके ऊपर 24 मुकदमे कर दिए...

  • जीत हार जो भी हो मोदीजी की होगी

    भाजपा और उसका समर्थक मीडिया पहले से ही कहानी बनाने लगा है। ताकि 2024के चुनाव में फ्रेश मोदी जी को पेश किया जा सके। मोदी जी और मीडिया को अभी भी यह भरोसा है कि नरेटिव, परसपेक्शन ( कहानी, छवि ) ही असली चीज है।और सच्चाई कोई पढ़ना नहीं चाहता। मोदी जी का कद बहुत बड़ा है और विधानसभा चुनाव बहुत छोटे हैं इसलिए इसके नतीजों से मोदी जी के प्रभाव का आकलन नहीं हो सकता।...अच्छी रणनीति है! बड़ा खिलाड़ी बड़ा मैच ही जीतेगा। लेकिन वे यह भूल गए कि दूसरा भी बड़ा नहीं बहुत बड़ा खिलाड़ी बन चुका है।...

  • ‘इंडिया’ के तब राहुल एक छत्र नेता!

    मोदी जी ने जब चुनाव प्रचार के दौरान मध्य प्रदेश में कहा कि कांग्रेस तो सरकार में आने के लिए लोगों से सोने का महल बनवाने का वादा भी कर सकती हैतो लोगों में यह चर्चा शुरू हो गई कि कांग्रेस ने वादा क्या किया, बनवा ही दिए थे।…मोदी जी का हर अस्त्र इन दिनों राहुल की तरफ जा रहा है। पूरी भाजपा, मीडिया सबको राहुल फोबिया हो गया है। “ ले तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफिल में है! “ इन दिनों कुछ इस ही तरह हो रहा है। जिसे पप्पू कहकर खारिज करने की कोशिशकी थी वही...

  • कांग्रेस का इन चुनावों में जीतना जरूरी!

    मोदी जी अंदर से घबराए हुए हैं। मिजोरम गए नहीं। साढ़े नौ साल में यह पहला चुनाव है जब प्रधानमंत्री किसीचुनाव वाले राज्य में भाषण देने नहीं गए हों। विधानसभा तो छोड़िए मोदी जीतो नगर निगम और पालिकाओं के चुनाव में भी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन इधरहिन्दी बेल्ट के तीनों राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश केचुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़े जा रहे हैं। तीनों राज्यों का भाजपा काकोई स्थानीय नेता पिक्चर में नहीं है।तो साख तो प्रधानमंत्री की दांव पर लगी है। मिजरोम में पूरा और छत्तीसगढ़ में पहले दौर का मतदान होने के साथ ही मौसमबदलने की...

  • प्रजा जब आज्ञाकारी तो चुनावी चंदे का हिसाब क्यों?

    केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि जनता को यह जानने का हक नहीं है कि राजनीतिक दलों मतलब भाजपा को मिलने वाला चंदा कहां से आ रहा है, कौन दे रहा है! इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी चेतावनी दी है कि वह नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करे। अर्थात इलेक्टोरल बांड के नियम आदि बनाने या समझने की कोशिश नहीं करे।... अब प्रगति का अर्थ भी बदल दिया गया है। बताया जाता है कि मोदी जी आप पर जो शासन कर रहे हैं वह आपका सौभाग्य है। हर हर मोदी का...

  • नफरत को हराना हो पहला चुनावी मकसद!

    प्रधानमंत्री मोदी बहुत से सवालों से घिरने लगे हैं। उनके पास बचाव का एक ही रास्ता है। हिन्दू-मुसलमान! उसमें फंसने से सब को बचना चाहिए!...सबसे बड़ी बात नफरत और विभाजन की राजनीति खत्म करने की है। इसीराजनीति के तहत मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई गई और उनके विरोध के नामपर दलित, पिछड़ों, आदिवासियों को इकट्ठा किया गया। ...ऐसे में जब मुख्य उद्देश्य इन विधानसभाओं को जीतकर 2024 के लिए बड़ीताकत बनना है तो इस बहस से बचना चाहिए कि किस वर्ग को कितने टिकट दिए। कांग्रेस में मुसलमानों के जो नेता हुए हैं क्या उन्होंने मुसलमानों केविकास, शिक्षा के लिए...

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